प्रभाकर मणि तिवारी
पूर्वोत्तर राज्य मिजोरम में हाल में हुई जांच से पता चला कि राज्य के विभिन्न सरकारी विभागों में करीब साढ़े तीन हजार ऐसे लोग काम करते हैं जो सरकारी कर्मचारी हैं ही नहीं। इनमें से एक हजार के करीब तो केवल फर्जी शिक्षक हैं।
पूर्वोत्तर राज्य मिजोरम में फर्जी सरकारी शिक्षकों के कारण हजारों बच्चों का भविष्य खतरे में है। दरअसल, राज्य विभिन्न सरकारी विभागों में करीब साढ़े तीन हजार ऐसे लोग काम करते हैं जो सरकारी कर्मचारी हैं ही नहीं। इन पदों पर काम करने वाले सरकारी कर्मचारियों ने अपनी जगह दूसरे लोगों का काम पर रखा है। इनमें से एक हजार से ज्यादा अकेले शिक्षा विभाग में हैं। राज्य में करीब 50 हजार सरकारी कर्मचारी हैं।
मिजोरम के मुख्यमंत्री लालदूहोमा डीडब्ल्यू को बताते हैं कि सरकार इस मुद्दे पर गंभीर है। ऐसे कर्मचारियों को बर्खास्त या निलंबित भी किया जा सकता है। कुछ मामलों में दोषी कर्मचारियों से वेतन भी वापस लिया जा सकता है।
यह मामला सामने आने के बाद सरकार ने इसकी जांच के आदेश दिए गए थे। करीब तीन महीने तक चली जांच के दौरान ऐसे कर्मचारियों की शिनाख्त के बाद अब उन सबको 30 दिनों के भीतर अपनी ड्यूटी पर पहुंचने को कहा गया है। ऐसा नहीं करने की सूरत में उनके खिलाफ अनिवार्य सेवानिवृत्ति समेत दूसरी अनुशासनात्मक व कानूनी कार्रवाई की जाएगी। नियत समय पर ड्यूटी पर नहीं पहुंचने वाले कर्मचारियों के खिलाफ इस कार्यकाल को अवैध अनुपस्थिति मानते हुए अनिवार्य सेवानिवृत्ति दी जा सकती है और पेंशन से भी वंचित किया जा सकता है। इसके अलावा उनको कानूनी कार्रवाई का भी सामना करना होगा।
जांच रिपोर्ट मंत्रिमंडल की पिछली बैठक में पेश करने पर इस पर विचार के बाद सरकार ने इसे गंभीर मामला मानते हुए इसके आधार पर फौरन कार्रवाई का आदेश दिया। सरकार का कहना है कि अपनी जगह किसी और से काम कराना और सरकार से पूरा वेतन लेना सेवा शर्तों का उल्लंघन है। सरकार ने तमाम विभाग प्रमुखों को 45 दिनों के भीतर इस आदेश के लागू होने की रिपोर्ट देने को कहा है। अगर वो ऐसा नहीं करते तो उनको बी विभागीय कार्रवाई का सामना करना होगा।
लंबे समय से चल रहा था खेल
ऐसी खबरें लंबे समय से आ रही थीं लेकिन पहले की सरकारों ने इसकी कभी कोई जांच नहीं कराई थी। बीते साल दिसंबर में विधानसभा चुनाव के बाद निजाम बदला और लालदूहोमा के नेतृत्व वाली जोरम पीपुल्स मूवमेंट (जेडपीएम) सरकार सत्ता में आई। मुख्यमंत्री लालदूहोमा ने कुर्सी संभालते ही इस मामले की जांच के आदेश दिए थे। अब उसकी रिपोर्ट सामने आई है। राज्य सरकार के कर्मचारियों की तादाद करीब 50 हजार है। इसे ध्यान रखते हुए साढ़े तीन हजार की तादाद अच्छी-खासी है।
जांच रिपोर्ट में कहा गया था कि साढ़े तीन हजार से ज्यादा सरकारी कर्मचारियों ने अपनी जगह किसी और को काम पर लगा रखा है और खुद वे दूसरा कामकाज करते हैं। इन फर्जी या डमी कर्मचारियों में से एक तिहाई अकेले शिक्षाविभाग में ही हैं। यह सब कब से चल रहा है, यह पता नहीं चल सका है। लेकिन सरकार ने इस मामले को गंभीरता से लेते हुए हाल में मंत्रिमंडल की बैठक में ऐसे कर्मचारियों के खिलाफ कार्रवाई का फैसला किया।
इस मामले की जांच करने वाली टीम ने संबंधित कर्मचारियों से भी पूछताछ की थी। उनमें से कइयों ने तो इसके लिए बेहद अजीबोगरीब कारण बताए थे। कुछ कर्मचारियों ने स्वास्थ्य का हवाला दिया तो कुछ ने निजी वजहें गिनाईं। कुछ कर्मचारियों का कहना था कि दुर्गम इलाकों में पोस्टिंग वाली जगहों पर सरकारी आवास की सुविधा नहीं होने और भाषाई दिक्कत के कारण उन लोगों ने अपनी जगह स्थानीय व्यक्ति से काम करने को कहा था।
रिपोर्ट के मुताबिक, सत्तर से ज्यादा कर्मचारी तो ऐसे हैं जो अपनी जगह किसी और को तैनाती देकर उच्च शिक्षा के लिए राज्य से बाहर चले गए थे। करीब तीन दर्जन लोगों ने इसकी कोई वजह ही नहीं बताई। लेकिन जांच में यह तथ्य सामने आया है कि दुर्गम पर्वतीय इलाकों में पोस्टिंग वाले ऐसे लोग मजे से राजधानी आइजोल स्थित अपने घर पर रहते हुए दूसरा काम-धंधा कर रहे थे।
ये फर्जीवाड़ा काम कैसे करता है
जांच से पता चला कि यह फर्जी कर्मचारी असली सरकारी कर्मचारियों की जगह काम करते थे और अपना वेतन उन कर्मचारियों से ही लेते थे। सरकारी कोष से वेतन तो असली कर्मचारियों के बैंक खाते में ही जाता था। बाद में वह उसका एक हिस्सा इन फर्जी कर्मचारियों को दे देते थे। अब रिपोर्ट सामने आने के बाद यह मामला सरकार के लिए सिरदर्द बन गया है।
लेकिन सबसे ज्यादा मुश्किल शिक्षा विभाग में है। यहां 1,115 शिक्षक असली शिक्षकों की जगह बच्चों को पढ़ा रहे थे। इससे अब बच्चों के भविष्य के साथ खिलवाड़ का सवाल भी उठ रहा है।
मिजोरम के सुदूर सीमावर्ती इलाके चंफई में एक स्कूली छात्र के पिता के. लावतलांग डीडब्ल्यू से कहते हैं, मेरा बेटा पहली कक्षा से इसी स्कूल में पढ़ रहा है। वह अब आठवीं में है। जांच रिपोर्ट से पता चला है कि स्कूल के 14 में से 11 शिक्षक असल में शिक्षक थे ही नहीं। वह लोग किसी और की जगह पढ़ा रहे थे। पता नहीं उनकी शैक्षणिक योग्यता कैसी थी?
उनका दावा है कि कुछ लोगों ने पढ़ाई तो कला विषयों की है, लेकिन विज्ञान और गणित पढ़ा रहे थे। उन्होंने ऐसे सरकारी शिक्षकों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की मांग की।
राज्य के दूसरे हिस्सों से भी ऐसी ही आवाजें उठ रही हैं। शिक्षाविद भी इसे गंभीर और चिंताजनक मानते हैं। एक शिक्षाविद् और सेवानिवृत्त प्रोफेसर लालबियाकमाविया कहते हैं, 'यह हैरत और चिंता का विषय है कि इतने लंबे समय से राज्य में यह खेल चल रहा था। लेकिन किसी ने भी इसके खिलाफ आवाज नहीं उठाई थी। पहले भी ऐसी शिकायतें मिलती रही थीं। लेकिन सरकार ने कभी इन पर ध्यान नहीं दिया। ऐसे प्रॉक्सी शिक्षकों को तत्काल प्रभाव से हटा कर दोषी सरकारी शिक्षकों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जानी चाहिए।'
उनका कहना था कि ऊपर के अधिकारियों की मिलीभगत के बिना यह सब लंबे समय तक नहीं चल सकता था। उनकी भी शिनाख्त कर कड़ी कार्रवाई की जानी चाहिए।