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नगालैंड ने रचा इतिहास, 58 साल बाद बजा सदन में राष्ट्रगान

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DW

, मंगलवार, 23 फ़रवरी 2021 (17:43 IST)
रिपोर्ट : प्रभाकर मणि तिवारी
 
अलगाववाद और हिंसा के लिए सुर्खियां बटोरने वाला नगालैंड अब विधानसभा में राष्ट्रगान बजाने के लिए सुर्खियों में है। 58 साल पहले अलग राज्य बनने के बाद से वहां कभी राष्ट्रगान नहीं बजा।
  
भारत का पूर्वोत्तर राज्य नगालैंड अलग राज्य का दर्जा पाने के बाद से ही अक्सर उग्रवाद, अलगाववाद और हिंसा के लिए ही सुर्खियां बटोरता रहा है। लेकिन पहली बार वह इनसे इतर किसी मुद्दे की वजह से सुर्खियां बटोर रहा है। एक दिसंबर, 1963 को असम से काटकर नगालैंड को अलग राज्य का दर्जा दिया गया था। लेकिन अब करीब 58 साल बाद पहली बार विधानसभा के बजट अधिवेशन के दौरान सदन में राष्ट्रगान बजाया गया है। यही नहीं एक अन्य राज्य त्रिपुरा में भी वर्ष 2018 में बीजेपी सरकार के सत्ता मेंआने के बाद ही सदन में पहली बार राष्ट्रगान बजाया गया था। खासकर नगालैंड के लिए इसे ऐतिहासिक क्षण कहा जा रहा है। सोशल मीडिया पर यह मामला काफी सुर्खियां बटोर रहा है।
 
पूर्वोत्तर का इतिहास
 
1947 में देश की आजादी के समय नगालैंड असम का ही हिस्सा था। उसके बाद एक दिसंबर, 1963 को इसे अलग राज्य का दर्जा दिया गया। राज्य में जनवरी, 1964 में हुए विधानसभा चुनावों के बाद फरवरी में पहली विधानसभा का गठन किया गया था। लेकिन तबसे इस महीने तक कभी विधानसभा में राष्ट्रगान की धुन नहीं गूंजी थी। विधानसभा आयुक्त डॉ. पीजे एंटनी कहते हैं कि सदन में राष्ट्रगान बजाने पर किसी तरह की रोक नहीं थी। लेकिन इसके बावजूद यहां राष्ट्रगान क्यों नहीं गाया जाता था, इस बारे में कोई ठोस जानकारी नहीं मिलती।
 
लेकिन विधानसभा अध्यक्ष शारिंगेन लॉन्गकुमेर ने इस महीने बजट अधिवेशन शुरू होने के मौके पर राज्यपाल के अभिभाषण से पहले राष्ट्रगान चलाने का फैसला किया। इसके लिए राज्य सरकार से भी पहले अनुमति ले ली गई थी। उसके बाद राज्यपाल के सदन में प्रवेश करने पर पहली बार राष्ट्रगान बजाया गया और मास्क पहने हुए सभी विधायकों ने एक साथ खड़े होकर इसका सम्मान भी किया। देश आजाद होने के पहले से ही पहले जातीय हिंसा और उसके बाद अलगाववादी आंदोलनों के शिकार रहे नगालैंड के लिए इसे ऐतिहासिक क्षण माना जा रहा है।
 
विधानसभा अध्यक्ष का फैसला
 
विधानसभा अध्यक्ष एस लॉन्गकुमेर कहते हैं कि मैंने सदन में राज्यपाल के अभिभाषण से पहले राष्ट्रगान बजाने का सुझाव दिया था। सरकार ने भी इस प्रस्ताव का समर्थन किया। उन्होंने भी इस सवाल पर कोई टिप्पणी करने से इंकार कर दिया कि बाकी राज्यों की तरह नगालैंड में भी अब तक राष्ट्रगान पहले क्यों नहीं बजाया जाता था। वह कहते हैं, मैं यहां सदन में राष्ट्रगान बजाने की इस परंपरा की शुरुआत कर गर्वित महसूस कर रहा हूं। तेरहवीं विधानसभा का हिस्सा बनने के बाद से ही मैं सदन में राष्ट्रगान की कमी महसूस करता था। अध्यक्ष बनने के बाद मैंने मुख्यमंत्री से इस मुद्दे पर राय-मशविरा किया। उनकी हरी झंडी मिलने पर सदन में इसे बजाने का रास्ता साफ हो गया।
 
लॉन्गकुमेर वर्ष 2019 के उपचुनाव में नेशनलिस्ट डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी (एनडीपीपी) के सदस्य के तौर चुन कर विधानसभा पहुंचे थे। राज्य के विधायक व पूर्व विधानसभा अध्यक्ष सी साजो कहते हैं कि यहां पहले कभी यह परंपरा नहीं रही। लेकिन प्रोटोकॉल के मुताबिक अगर राज्यपाल चाहें तो सदन में राष्ट्रगान बजाया जा सकता है। इसका फैसला विधानसभा अध्यक्ष पर निर्भर होता है।
 
बीजेपी की पहल
 
इससे पहले पड़ोसी राज्य त्रिपुरा की विधानसभा में भी पहली बार 23 मार्च, 2018 को राष्ट्रगान की धुन गूंजी थी। मुख्यमंत्री बिप्लब देब के आफिसर ऑन स्पेशल ड्यूटी (ओएसडी) संजय मिश्र इसकी पुष्टि करते हैं। मिश्र बताते हैं कि राज्य में बीजेपी की सरकार का गठन होने के बाद सदन के पहले अधिवेशन में मुख्यमंत्री के कहने पर राष्ट्रगान की धुन बजाई गई थी।
 
पहले तो मुख्यमंत्री कार्यालय में तिरंगा भी नहीं होता था। लेकिन अब उसे वहां लगा दिया गया है। प्रदेश बीजेपी के प्रवक्ता नवेंदु भट्टाचार्य कहते हैं कि त्रिपुरा पर लंबे समय तक लेफ्ट का शासन रहा था। शायद लेफ्ट के नेता उतने राष्ट्रवादी नहीं थे। इसी वजह से न तो मुख्यमंत्री दफ्तर में तिरंगा रहता था और न ही सदन में राष्ट्रगान की धुन बजाई जाती थी।
 
संवैधानिक विशेषज्ञों का कहना है कि राज्य विधानसभा में राष्ट्रगान बजाना अनिवार्य नहीं है। इसे एक परंपरा के तौर पर बजाया जाता है। लोकसभा के महासचिव रहे सुभाष कश्यप कहते हैं कि संविधान में ऐसा कुछ नहीं है कि जिसमें राष्ट्रगान बजाना अनिवार्य किया गया हो। यह तो इस गीत के सम्मान का मामला है। एक अन्य संविधान विशेषज्ञ सी दोरेंद्र सिंह कहते हैं कि देर से ही सही, नगालैंड विधानसभा में राष्ट्रगान का बजना इस बात का संकेत है कि यह राज्य अलगाववाद को अलविदा कर राष्ट्र की मुख्यधारा में शामिल होने की तैयारी कर रहा है। राज्य में बीते 24 वर्षों से जारी शांति प्रक्रिया अब अपनी मंजिल तक पहुंचने वाली है।

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