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अंग्रेजों के जमाने जैसी ही है आज भी भारत के जेलों की हालत

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, रविवार, 13 अप्रैल 2025 (10:46 IST)
समीरात्मज मिश्र
पूर्व आईपीएस अधिकारी भी मानते हैं कि अंग्रेजों के जमाने में जिस तरह कैदियों को जेल में रखा जाता था वह भारत की जेलों में आज भी जारी है। जेल में 80 फीसदी विचाराधीन कैदी हैं, और इनकी वजह से वहां भारी भीड़ है।
 
 
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग यानी एनएचआरसी ने देश भर की जेलों में बंद कैदियों की दिक्कतों का खुद संज्ञान लेते हुए सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के मुख्य सचिवों को नोटिस जारी किया है। आयोग ने एक बयान में कहा है कि जेलों में बंद कैदियों को तमाम दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है, खासकर महिला कैदियों को। आयोग ने जेलों की जिन प्रमुख समस्याओं को नोटिस किया है उनमें जेलों में क्षमता से ज्यादा कैदियों का होना, जेलों में बुनियादी सुविधाओं और स्वास्थ्य सुविधाओं का अभाव शामिल है।
 
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने अपने बयान में कहा है, "देश भर की विभिन्न जेलों का दौरा करने के बाद तैयार रिपोर्ट और शिकायतों के माध्यम से इन मुद्दों को आयोग के संज्ञान में लाया गया है।”
 
इसके बाद आयोग ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के मुख्य सचिवों को नोटिस जारी कर उनसे चार हफ्ते के भीतर रिपोर्ट मांगी है। आयोग ने ये भी बताया है कि जो रिपोर्ट सौंपी जाए उसमें किन बातों का जिक्र होना चाहिए।
 
महिला कैदियों की स्थिति
आयोग ने राज्यों से जो जानकारी मांगी है उनमें राज्य की जेलों में बंद महिला कैदियों की संख्या बताने को कहा है। इसके साथ ही बच्चों के साथ रहने वाली महिला कैदियों की संख्या भी मांगी गई है। आयोग ने दोषी और विचाराधीन महिला कैदियों की संख्या भी मांगी है यानी जिन्हें अभी सजा नहीं मिली है, सिर्फ ट्रायल चल रहा है। इसके अलावा उन विचाराधीन महिला और पुरुष कैदियों का भी आयोग ने ब्योरा मांगा है जो एक साल से ज्यादा समय से जेल में बंद हैं।
 
आयोग ने महिला कैदियों के सम्मान और सुरक्षा के अधिकारों के उल्लंघन, उनके खिलाफ बढ़ती हिंसा के कारण मानसिक तनाव, पर्याप्त शौचालयों का अभाव, सैनिटरी नैपकिन और स्वच्छ पेयजल सुविधाओं जैसी बुनियादी जरूरतों के पूरा नहीं होने पर चिंता जताई है।
 
आयोग ने अपने बयान में जेलों में मिलने वाले भोजन की गुणवत्ता पर भी सवाल उठाया है जिसकी वजह स कुपोषण होता है, खासकर गर्भवती महिलाओं और स्तनपान कराने वाली मांओं के मामलों में। इसके अलावा महिला कैदियों के साथ रहने वाले बच्चों की शिक्षा, कैदियों को मिलने वाली कानूनी सहायता, व्यावसायिक प्रशिक्षण, पुनर्वास जैसे मामलों में भी चिंता जताई गई है।
 
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भारत में जेलों की स्थिति
करीब दो साल पहले संसद में गृह मामलों की स्थायी समिति ने ‘जेल-स्थितियां, बुनियादी ढांचा और सुधार' पर अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की थी जिसमें जेलों में क्षमता से ज्यादा कैदियों पर चिंता जताई गई थी।
 
समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि देश भर की जेलों में कैदियों की औसत दर 130 फीसदी है। यानी यदि जेल की क्षमता सौ कैदियों की है तो वहां 130 कैदी रह रहे हैं। रिपोर्ट के मुताबिक, उत्तर प्रदेश, बिहार, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल और दिल्लीऔर मध्य प्रदेश सहित छह राज्यों की जेलों में भारत के आधे से ज्यादा कैदी बंद हैं।
 
समिति ने ज्यादा भीड़भाड़ वाली जेलों से कैदियों को उसी राज्य के भीतर या दूसरे राज्यों की जेलों में ट्रांसफर करने की सिफारिश की थी।
 
समिति ने भी उन मुद्दों पर सवाल उठाए थे जिन पर मानवाधिकार आयोग ने संज्ञान लिया है। इसके अलावा समिति ने जेल कर्मचारियों की कमी और जेल की नौकरियों में महिलाओं की कम संख्या पर भी सवाल उठाए थे और सिफारिश की थी कि खाली पदों को तीन महीने के भीतर भरा जाना चाहिए।
 
यूपी में वरिष्ठ पदों पर रह चुके आईपीएस अधिकारी अमिताभ ठाकुर को पुलिस विभाग में व्याप्त खामियों को उजागर करने की वजह से कुछ साल पहले जबरन रिटायर कर दिया गया था। अमिताभ ठाकुर आईजी रूल्स एंड मैन्युअल्स के पद पर रह चुके हैं। रिटायर करने के बाद उन्हें गिरफ्तार भी किया गया था जिसकी वजह से वो कई दिनों तक जेल में भी रहे। डीडब्ल्यू से बातचीत में अमिताभ ठाकुर कहते हैं कि उनके पास एक अफसर और कैदी, दोनों के अनुभव हैं।
 
असली समस्या कहां है?
पहले उन्होंने एक अफसर के अनुभव को साझा किया। अमिताभ ठाकुर कहते हैं, "क्षमता से ज्यादा कैदी तो सबसे बड़ी समस्या है ही। जेल मैन्युअल में कैदियों की संख्या को लेकर कोई स्पष्टता नहीं है कि किसी जेल में कितने अधिकतम कैदी रहेंगे। संख्या का निर्धारण क्यों और कैसे होगा, यह भी स्पष्ट नहीं है।”
 
अमिताभ ठाकुर आगे कहते हैं, "दूसरी सबसे बड़ी समस्या हमारी न्यायिक व्यवस्था में है जिसकी वजह से विचाराधीन कैदियों की संख्या इतनी ज्यादा है। विचाराधीन कैदी पूरी दुनिया में कहीं भी इतने ज्यादा नहीं हैं। हमारे यहां तो जेलों में करीब अस्सी फीसदी विचाराधीन कैदी ही हैं जबकि तमाम देशों में यह संख्या शून्य है। इस पर न्यायालयों को विचार करने की जरूरत है।”
 
जेलों में बढ़ती भीड़ पर सुप्रीम कोर्ट भी कई बार चिंता जता चुका है। नेशनल क्राइम रिकार्ड्स ब्यूरो यानी एनसीआरबी के मुताबिक, 31 दिसंबर, 2021 तक भारतीय जेलों में कुल 5,54,034 कैदी थे लेकिन इनमें से महज 22 फीसद कैदी ही ऐसे थे जिन्हें अदालतों ने दोषी साबित किया था और वो उसकी सजा काट रहे थे। बाकी कैदी विचाराधीन थे। इनकी संख्या लगातार बढ़ती जा रही है।
 
नेशनल ज्यूडिशियल डाटा ग्रिड के आंकड़ों के मुताबिक देश भर की निचली अदालतों में चार करोड़ से ज्यादा मामले लंबित हैं और इनमें से ज्यादातर मामले ऐसे हैं जो एक साल से ज्यादा पुराने हैं।
 
सुप्रीम कोर्ट के वकील अभिषेक सिंह कहते हैं कि जेलों में इतनी ज्यादा संख्या में विचाराधीन कैदियों का होना ना केवल क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम के कामकाज पर सवाल उठाता है बल्कि जेलों में बंद कैदियों के लिए अमानवीय स्थिति भी पैदा करता है। जेलों में बुनियादी सुविधाओं की कमी के लिए भी एक कारण क्षमता से ज्यादा कैदियों का होना है।
 
भ्रष्टाचार बड़ा मुद्दा है
अमिताभ ठाकुर कहते हैं, "मेरा अनुभव यह है कि जेल मैन्युअल में जो बातें कही भी गई हैं, उनके दोबारा मूल्यांकन की जरूरत है। खाना तो खराब नहीं है लेकिन अन्य बुनियादी सुविधाओं की बहुत कमी है।"
 
अमिताभ ठाकुर ने कहा कि अनुच्छेद 19 के मुताबिक, जीवन जीने का अधिकार कैदियों को भी है, "लेकिन जेल के अफसर और कर्मचारियों को ऐसा नहीं लगता है। जेल को लगता है कि हम खाना दे रहे हैं यही बहुत है। इन्हें और किसी चीज की जरूरत नहीं है। जबकि जेल में रहने वाले व्यक्ति को जेल के भीतर बेहतर जीवन सुनिश्चित कराना सरकार की जिम्मेदारी है। उन्होंने डीडब्ल्यू से कहा, "सच्चाई ये है कि कागज पर जो दे भी रहे हैं, उनमें भ्रष्टाचार और बंदरबांट हो रही है।"
 
अमिताभ ठाकुर के मुताबिक, "सुविधाओं का 60-70 फीसदी हिस्सा तो भ्रष्टाचार में चला जा रहा है। कैदियों से उगाही अलग से हो रही है। नहीं देने पर उनके साथ मार-पीट करना आम बात है। कुल मिलाकर यह जेल की संस्कृति बन गई है।”
 
अमिताभ ठाकुर कहते हैं, "मैं जब लखनऊ जेल में बंद था तब मैंने जवाहर लाल नेहरू के लखनऊ जेल के अनुभव के बारे में पढ़ा था। नेहरू ने जेल के अपने जो अनुभव लिखे थे, उन्हें पढ़ते हुए ऐसा लग रहा था जैसे मैं अपने अनुभव बयां कर रहा हूं, यानी तब से लेकर अब तक जेल के सिस्टम और जेल के अफसरों के रवैये में कोई बदलाव नहीं है।”

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