दुनियाभर में आतंकवाद और भ्रष्टाचार के खिलाफ काम करने वाले अंतरराष्ट्रीय संगठन एफएटीएफ ने पाकिस्तान को अपनी ग्रे लिस्ट से नहीं हटाने का फैसला लिया है। पाकिस्तान को अब तक इस कारण अरबों डॉलर का नुकसान हो चुका है।
फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स ने गुरुवार को बताया कि पाकिस्तानी सरकार आतंकवाद के खिलाफ 27 सूत्री एजेंडे में से 3 को पूरा करने में विफल रही है। इसी वजह से टास्क फोर्स ने उसे ग्रे लिस्ट में बरकरार रखने का फैसला किया है। एफएटीएफ ने अपने बयान में कहा है कि पाकिस्तान संयुक्त राष्ट्र द्वारा प्रतिबंधित घोषित आतंकवादियों के खिलाफ कोई भी ठोस कार्रवाई नहीं कर पाया है। अंतरराष्ट्रीय निगरानी संस्था ने पाकिस्तान को ग्रे लिस्ट में जून 2018 से डाल रखा है और उसे आतंकी गुटों के खिलाफ कार्रवाई करने और उनके धन के स्रोतों को खत्म करने के लिए कहता आया है।
अरबों डॉलर का नुकसान
दूसरी ओर एक रिपोर्ट में यह कहा गया है कि पाकिस्तान को 2008 से 3 बार एफएटीएफ की ग्रे लिस्ट में आने के कारण अरबों रुपए का नुकसान झेलना पड़ा है। पाकिस्तान स्थित तबादलाब नाम के एक स्वतंत्र थिंक टैंक द्वारा प्रकाशित शोध पत्र में निष्कर्षों को साझा किया गया जिसका शीर्षक है- 'वैश्विक राजनीति की कीमत चुकाना- पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था पर एफएटीएफ ग्रे-लिस्टिंग का प्रभाव।' शोध में पता चला है कि 2008 से लेकर 2019 तक देश को 38 अरब डॉलर का नुकसान हुआ और इस से संभवतः जीडीपी में भी गिरावट देखने को मिली।
शोध के लेखक ने तर्क दिया कि डाटा से संकेत मिल रहे हैं कि एफएटीएफ की ग्रे सूची से पाकिस्तान को हटाने के बाद कई बार अर्थव्यवस्था उभरी है, जैसा कि 2017 और 2018 में जीडीपी के स्तर में वृद्धि से स्पष्ट है। रिपोर्ट में कहा गया कि 38 अरब डॉलर के घाटे के एक बड़े हिस्से को घरेलू और सरकारी खपत खर्च में कमी के लिए जिम्मेदार ठहराया जा सकता है।
देश की अर्थव्यवस्था पर असर
रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि एफएटीएफ ग्रे-लिस्टिंग से अर्थव्यवस्था पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। अर्थव्यवस्था के भविष्य को लेकर आशंकाओं के बीच स्थानीय निवेश, निर्यात और विदेशी निवेश में गिरावट होगी। रिपोर्ट के निष्कर्ष ऐसे समय में आए हैं, जब मनी लॉन्ड्रिंग और आतंक के वित्तपोषण को रोकने के लिए एफएटीएफ के वैश्विक मानकों का पालन करने के लिए की गई कार्रवाइयों पर पाकिस्तान की प्रगति की पेरिस में एफएटीएफ की प्लेनरी मीटिंग में समीक्षा की गई। जानकारों का मानना है कि ग्रे सूची से पाकिस्तान के बाहर निकलने की संभावना कम है, क्योंकि देश में मनी लॉन्ड्रिंग और आतंक के वित्तपोषण कानून पूरी तरह से वैश्विक मानकों के अनुरूप नहीं हैं।