प्रभाकर मणि तिवारी (कोलकाता से, बीबीसी हिन्दी डॉट कॉम के लिए)
पश्चिम बंगाल में चक्रवाती तूफ़ान यास से हुए नुक़सान और इसके लिए मिलने वाली केंद्रीय राहत पर राजनीति लगातार तेज़ हो रही है। तूफ़ान से हुए नुक़सान का जायज़ा लेने के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने शुक्रवार को ओडिशा और पश्चिम बंगाल का दौरा किया। मेदिनीपुर के कलाईकुंडा एयरबेस पर मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने प्रधानमंत्री की अगवानी की और उनको तूफ़ान से हुए नुकसान पर रिपोर्ट सौंपकर 20 हजार करोड़ रुपए की मांग की।
लेकिन उसके एक घंटे के भीतर ही प्रधानमंत्री कार्यालय ने ओडिशा के लिए तो पांच सौ करोड़ की रकम जारी करने का एलान किया। लेकिन पश्चिम बंगाल और झारखंड के लिए भी उतनी ही रकम जारी की गई। यानी हर राज्य के लिए 250 करोड़ रुपए। इससे ममता बनर्जी काफ़ी नाराज बताई जाती हैं। हालांकि उन्होंने इस पर कोई टिप्पणी नहीं की है।
वहीं केंद्र और राज्य के बीच लगातार तेज़ होती कड़वाहट के बीच शुक्रवार रात को अचानक राज्य के मुख्य सचिव आलापन बनर्जी का तबादला दिल्ली कर दिया गया। अभी इसी सप्ताह उनको 3 महीने का सेवा विस्तार दिया गया था।
मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने इस मामले पर अब तक कोई टिप्पणी नहीं की है। लेकिन टीएमसी के प्रवक्ता कुणाल घोष ने इसे राजनीतिक बदले की भावना से की गई कार्रवाई करार दिया है।
घोष ने कहा, 'बीजेपी बंगाल विधानसभा चुनाव में अपनी हार नहीं पचा पा रही है। इसलिए वह ममता बनर्जी सरकार को परेशान करने की हरसंभव कोशिश कर रही है।'
राजनीतिक हलकों में माना जा रहा है कि केंद्र और राज्य के बीच जारी टकराव के तहत ही ऐसा किया गया है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के बंगाल दौरे पर मुख्यमंत्री के साथ मुख्य सचिव भी थे। लेकिन उन दोनों ने समीक्षा बैठक में हिस्सा नहीं लिया।
सरकारी सूत्रों ने बताया कि मुख्य सचिव को सोमवार यानी 31 मई को ही अपने पद पर कार्यभार संभालने को कहा गया है।
समीक्षा बैठक को लेकर राजनीति
प्रधानमंत्री की ओर से कलाईकुंडा में आयोजित की समीक्षा बैठक में ममता बनर्जी के शामिल नहीं होने के मुद्दे पर भी राजनीति हो रही है।
राज्यपाल जगदीप धनखड़ के अलावा बीजेपी के तमाम नेताओं ने इसके लिए ममता पर हमला करते हुए उनको कठघरे में खड़ किया है। हालांकि ममता बनर्जी ने इस पर सफाई देते हुए कहा है कि उनको दीघा के तूफ़ान प्रभावित इलाकों के हवाई दौरे पर जाना था और उनका दौरा पहले से तय था, इसलिए वे प्रधानमंत्री की बैठक में शामिल नहीं हो सकीं।
लेकिन बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा से लेकर केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह तक ने इसके लिए ममता पर जमकर हमले किए हैं।
बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने अपने ट्वीट में कहा है कि चक्रवाती तूफान यास से हुए नुकसान की समीक्षा के लिए पश्चिम बंगाल में हुई प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की बैठक से मुख्यमंत्री ममता बनर्जी नदारद रहीं और ऐसा करके उन्होंने संवैधानिक मर्यादाओं और सहकारी संघवाद की हत्या की है।
लेकिन ममता बनर्जी ने आख़िर प्रधानमंत्री की बैठक में हिस्सा क्यों नहीं लिया?
तृणमूल कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता नाम नहीं छापने की शर्त पर बताते हैं, 'गुरुवार शाम तक ममता का बैठक में शामिल होना तय था। लेकिन जब इस बात की जानकारी मिली कि बैठक में विपक्ष के नेता शुभेंदु अधिकारी भी हिस्सा लेंगे तो ममता ने बैठक में शामिल नहीं होने का फ़ैसला किया। टीएमसी की ओर से प्रधानमंत्री दफ़्तर को भी इसकी जानकारी दे दी गई थी।'
ध्यान रहे कि कभी ममता के क़रीबी रहे शुभेंदु ने पूर्व मेदिनीपुर ज़िले की नंदीग्राम सीट पर कांटे के मुक़ाबले में उनको पराजित किया था। हालांकि ममता समेत उनकी पार्टी के तमाम नेता चुनाव के नतीजों पर सवाल उठाते रहे हैं।
'20 हजार करोड़ की मांग'
प्रधानमंत्री की अगवानी और उनको रिपोर्ट सौंपने के बाद ममता हेलीकॉप्टर से दीघा रवाना हो गई थीं। वहां तूफ़ान से सबसे ज़्यादा नुक़सान हुआ है। ममता ने दीघा में पत्रकारों से बातचीत के दौरान कहा, 'यहां प्रशासनिक अधिकारियों के साथ पहले से ही बैठक तय थी। प्रधानमंत्री की समीक्षा बैठक के बारे में बाद में सूचना दी गई थी। इसलिए मैं प्रधानमंत्री की समीक्षा बैठक में हिस्सा नहीं ले सकी। मैंने प्रधानमंत्री से दीघा के लिए 20 हजार करोड़ की मांग करते हुए एक रिपोर्ट सौंपी और उनसे अनुमति लेकर दीघा के लिए रवाना हो गई।'
ममता का कहना था कि अब इसे मीडिया में ग़लत तरीके से दिखाया जा रहा है जबकि मेरी कोई ग़लती नहीं है। हो सकता है कि राज्य को केंद्र से कोई आर्थिक सहायता नहीं मिले।
प्रधानमंत्री की समीक्षा बैठक में ममता के नहीं होने के बावजूद केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान, राज्यपाल जगदीप धनखड़ और विपक्ष के नेता शुभेंदु अधिकारी मौजूद थे।
केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने तो ममता पर जनकल्याण से अपने अहंकार को ऊपर रखने का आरोप लगाया है। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने इसे स्तब्ध करने वाला बताया है।
केंद्रीय मंत्री राजनाथ सिंह ने अपने ट्वीट में कहा, 'पश्चिम बंगाल का आज का घटनाक्रम स्तब्ध करने वाला है। मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री व्यक्ति नहीं संस्था हैं। दोनों जन सेवा का संकल्प और संविधान के प्रति निष्ठा की शपथ लेकर दायित्व ग्रहण करते हैं।'
उन्होंने अपने एक अन्य ट्वीट में कहा कि आपदा काल में बंगाल की जनता को सहायता देने के भाव से आए हुए प्रधानमंत्री के साथ इस प्रकार का व्यवहार पीड़ादायक है। जन सेवा के संकल्प व संवैधानिक कर्तव्य से ऊपर राजनीतिक मतभेदों को रखने का यह एक दुर्भाग्यपूर्ण उदाहरण है, जो भारतीय संघीय व्यवस्था की मूल भावना को भी आहत करने वाला है।
सरकारी सूत्रों का कहना है कि पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और मुख्य सचिव आलापान बनर्जी समीक्षा बैठक में क़रीब आधे घंटे की देरी से पहुंचे जबकि वे उसी परिसर में थे।
बैठक में आने के बाद ममता बनर्जी ने चक्रवात के असर से जुड़े दस्तावेज़ प्रधानमंत्री को सौंप दिए और यह कहते हुए बैठक से चली गई कि उनको दूसरी बैठकों में हिस्सा लेना है।
राज्यपाल जगदीप धनखड़ ने इस मुद्दे पर लगातार कई ट्वीट करते हुए ममता को कठघरे में खड़ा किया। उनका कहना था कि प्रधानमंत्री की बैठक का ममता की ओर से बायकॉट संविधान और संघवाद की भावना के ख़िलाफ़ है। यह आम लोगों या राज्य के हित में नहीं है। विपक्ष के नेता शुभेंदु अधिकारी ने अपने ट्वीट में इसे सहकारी संघवाद के सिद्धांत के लिए एक काला दिन बताया है।
उनका कहना था कि ममता ने एक बार फिर साबित कर दिया है कि वे राज्य के लोगों के दर्द के प्रति कितनी असंवेदनशील हैं।
'मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री व्यक्ति नहीं संस्था हैं'
ममता ने गुरुवार को दावा किया था कि यास से राज्य को 15 हज़ार करोड़ का नुक़सान हुआ है। इस पर प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष दिलीप घोष ने उनकी खिंचाई करते हुए सवाल किया था कि आख़िर मुख्यमंत्री को इतनी जल्दी यह आंकड़ा कहां से मिला?
उन्होंने कहा कि हालात सामान्य नहीं होने तक तूफ़ान से हुए नुक़सन का सटीक आकलन संभव नहीं है।
राजनीतिक पर्यवेक्षक प्रोफ़ेसर समीरन पाल कहते हैं, 'शायद मोदी के प्रति ममता की कड़वाहट अभी खत्म नहीं हुई है। दरअसल, वे समीक्षा बैठक में शुभेंदु अधिकारी को बुलाने से काफ़ी नाराज़ थीं। एक दिन पहले उन्होंने प्रधानमंत्री कार्यालय को भेजे पत्र में यह बात साफ़ कर दी थी।'
पाल कहते हैं कि भारी कड़वाहट वाले विधानसभा चुनाव बीत जाने के बावजूद टीएमसी और बीजेपी के बीच पैदा हुई खाई कम नहीं हुई है।
वो कहते हैं कि केंद्र ने भी शायद ममता को ठेस पहुंचाने के लिए ही शुभेंदु को बैठक में बुलाया था, इसलिए ममता बैठक में शामिल नहीं हुईं और प्रधानमंत्री को जरूरी कागज़ात सौंपकर वहां से निकल गईं।(फोटो साभार: संजय दास बीबीसी)