यूरोपीय संघ ने आने वाले महीनों में गैस का इस्तेमाल 15 फीसदी घटाने का प्रस्ताव दिया है। क्या यूरोप के उद्योग धंधे को ऊर्जा ओर सर्दियों में घरों को गर्म रखने में यूरोप सफल होगा?
बुधवार को दिये प्रस्तावों का मकसद यूरोपीय देशों में उद्योग-धंधों को पूरी तरह ठप होने से बचाना है। यूरोपीय देशों के सामने रूसी प्राकृतिक गैस की घटती आपूर्ति से निपटने की चुनौती है। जल्द उपाय न किये गये, तो न सिर्फ उद्योग-धंधे ठप होंगे, बल्कि अगली सर्दियों में घरों को गर्म रख पाना भी मुश्किल होगा। यूरोपीय संघ ने सदस्य देशों को आगाह भी किया है, "जब गैस की अत्यधिक कमी का खतरा या फिर मांग में बहुत ज्यादा बढ़ोतरी होगी, तो इसका नतीजा गैस आपूर्ति की स्थिति को और ज्यादा बिगाड़ने वाला होगा।"
यूरोपीय संघ के सदस्य देश आपातकालीन उपायों पर चर्चा करने के लिए अगले मंगलवार को बैठक करेंगे। इससे पहले बुधवार को यूरोपीय संघ ने अगले मार्च तक गैस के इस्तेमाल में 15 फीसदी कटौती करने को कहा है। संघ ने यह चेतावनी भी दी है कि इस कटौती के बगैर सर्दियों में उन्हें ईंधन के लिए संघर्ष करना पड़ेगा। खासतौर से अगर रूस आपूर्ति बंद कर देता है।
सर्दियों से पहले गैस भंडार भरने की जल्दी
यूरोप सर्दियों से पहले गैस का भंडार भरने की तेजी में है और रूसी आपूर्ति बंद होने की स्थिति का सामना करने के लिए अतिरिक्त ईंधन जमा कर लेना चाहता है। यूरोपीय संघ के दर्जनों देश पहले ही रूसी ईंधन की आपूर्ति में आई कमी का सामना कर रहे हैं। आशंका यह भी है कि रूस पूरी तरह से आपूर्ति बंद कर देगा।
यूरोपीय संघ ने बुधवार को सभी देशों से 2016-21 के बीच रही गैस की खपत के आधार पर इस साल खर्च में 15 फीसदी कटौती करने को कहा है। यह कटौती इस साल अगस्त से अगले साल मार्च तक करने के लिए कहा गया है। इस फैसले को यूरोपीय देशों में बहुमत से पास करना होगा। यूरोपीय देशों के राजनयिक शुक्रवार को इस पर चर्चा करेंगे और फिर अगले मंगलवार को इस पर सदस्य देशों के मंत्रियों की आपातकालीन बैठक में सहमति हासिल करने का लक्ष्य रखा गया है।
हालांकि, इस योजना का कुछ देशों ने अभी से विरोध करना शुरू कर दिया है। इन देशों को लगता है कि उनकी आकस्मिक योजनाओं पर यूरोपीय संघ की तरफ से और दबाव नहीं डाला जाना चाहिए। सदस्य देशों को सितंबर के आखिर तक अपनी आपातकालीन गैस के बारे में योजना का ब्यौरा देना है कि वे यूरोपीय संघ के लक्ष्यों को कैसे हासिल करेंगे।
यूरोपीय संघ के अनिवार्य लक्ष्यों का विरोध करने वाले देशों में पोलैंड सबसे आगे है। पोलैंड ने अप्रैल में रूस से आपूर्ति बंद होने के बाद अपने गैस भंडार को 98 फीसदी तक भरकर रख लिया है। दूसरी तरफ हंगरी है, जिसके गैस भंडार में सबसे कम यानी सिर्फ 47 फीसदी गैस है।
रूसी आयात पर प्रतिबंध
यूक्रेन पर रूसी हमले के बाद से यूरोपीय संघ ने रूसी कोयले पर प्रतिबंध लगा दिया है और इस साल के आखिर तक तेल की आपूर्ति भी पूरी तरह बंद हो जाएगी। हालांकि, प्राकृतिक गैसों को प्रतिबंधों से अब तक मुक्त रखा गया है, क्योंकि ऐसा करने का फैक्ट्रियों, बिजली पैदा करने और घरों को गर्म रखने पर बहुत बुरा असर होगा।
अब यह डर पैदा हो गया है कि पुतिन हर हाल में गैस की सप्लाई रोकेंगे, जिससे यूरोप में इस साल सर्दियों में भारी आर्थिक और राजनीतिक मुश्किलें पैदा होंगी। इसी डर ने यूरोपीय संघ को आपातकालीन योजना बनाने पर विवश किया है। इसका मकसद जरूरी उद्योग और अस्पताल जैसी सेवाओं को चालू रखना है।
यूरोपीय संघ के देश और यूरोपीय आयोग दूसरे देशों से गैस खरीदने की भी भरपूर कोशिश कर रहे हैं। हालांकि, इतने से भी उनकी सारी जरूरतें पूरी हो पाएंगी, यह कहना मुश्किल है। यहां तक कि अगर यूरोपीय संघ रोशनी और फैक्ट्रियों को चालू रखने के लिए पर्याप्त गैस हासिल कर लेता है, तो भी यह बहुत ऊंची कीमत पर होगा, जिसकी वजह से एक तरफ महंगाई, तो दूसरी तरफ लोगों का गुस्सा बढ़ेगा।
रूस ने पहले ही कुछ देशों में गैस की आपूर्ति या तो बंद कर दी है या कम कर दी है। आशंका बढ़ रही है कि वह जर्मनी को नॉर्ड स्ट्रीम वन पाईपलाइन से गैस की सप्लाई बहाल नहीं करेगा। फिलहाल यह पाइपलाइन देखभाल के लिए बंद की गई है और रूस का कहना है कि इसका एक हिस्सा मरम्मत के लिए कनाडा गया है, जो अब तक वापस नहीं आया है। मरम्मत के लिए बंद करने की समय सीमा गुरुवार को खत्म हो रही है। गैस सप्लाई करने वाली रूसी कंपनी गाजप्रोम का कहना है, "भविष्य में हम कैसे काम करेंगे, यह अभी से बता पाना हमारे लिए असंभव है।"
यूरोप की अंदरूनी राजनीति
ऊर्जा संकट यूरोप की दशकों पुरानी राजनीतिक चुनौतियों को भी हवा दे रहा है। यूरोपीय संघ ने मुद्रा, कारोबार, स्पर्धारोधी और कृषि नीतियों में केंद्रीय अधिकार हासिल कर लिया है, लेकिन सदस्य देश ऊर्जा के मामले में एक-दूसरे के हितों का ख्याल किये बगैर अपने अधिकारों का इस्तेमाल करने के लिए व्याकुल हैं।
यूरोपीय आयोग ने राष्ट्रीय संप्रभुता को किनारे करने के लिए दशकों तक मेहनत की है और इससे पहले जब भी आपूर्ति में कोई बाधा आई, तो उसका इस्तेमाल अपने प्रभाव को बढ़ाने के लिए किया। पांच महीने से चल रहा रूसी हमला उसके लिए सदस्य देशों को ऊर्जा पर उनके अधिकारों को छोड़ने के लिए तैयार करने में कठिन परीक्षा साबित हो रहा है।
कोविड-19 की महामारी के दौर में सदस्य देशों ने वैक्सीन के विकास और खरीदारी के साझा कार्यक्रम में पूरा सहयोग किया और स्वास्थ्य की समस्या को सुलझाने में असाधारण साझेदारी निभाई। मौजूदा ऊर्जा संकट भी शायद इसी तरह के सहयोग की मांग कर रहा है।