रिपोर्ट : प्रभाकर मणि तिवारी
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी कोरोना महामारी शुरू होने के बाद पहली बार विदेश दौरे पर जाने वाले हैं। उसके लिए अगर उन्होंने बांग्लादेश की आजादी के स्वर्ण जयंती समारोह को चुना है तो इसके गहरे निहितार्थ हैं।
इससे पहले उनकी तमाम बैठकें और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर हिस्सेदारी वर्चुअल ही रही है। देश में कोरोना एक बार फिर पांव पसार रहा है। ऐसे में उनके दौरे पर सवाल उठना लाजिमी है। दरअसल, उनके इस दौरे को एक तीर से दो निशाने साधने की कोशिश के तौर पर देखा जा रहा है। इस दो-दिवसीय दौरे को पश्चिम बंगाल के अहम विधानसभा चुनावों के साथ भी जोड़ कर देखा जा रहा है। अगर यह दौरा महज राजधानी ढाका में आयोजित सरकारी समारोह में शिरकत तक ही सीमित रहता, तो इस पर सवाल नहीं खड़े होते। लेकिन प्रधानमंत्री ने पश्चिम बंगाल के सीमावर्ती इलाको में रहने वाले मतुआ समुदाय के लोगों के गुरु हरिचंद्र ठाकुर की जन्मस्थली ओरकांडी जाने का जो फैसला किया है। उसी वजह से उनके मकसद पर सवालिया निशान लग रहे हैं। राजनीतिक हलकों में कहा जा रहा है कि बंगाल के मतुआ समुदाय को साधने के लिए ही मोदी ने ओरकांडी दौरे की योजना बनाई है। मोदी अपने दौरे में कविगुरु रवींद्रनाथ टैगोर के अलावा क्रांतिकारी जतीन दास के पैतृक आवास का दौरा भी करेंगे।
बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना के न्योते पर शुक्रवार को राजधानी ढाका पहुंचने वाले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी बांग्लादेश मुक्ति संग्राम के स्वर्ण जयंती समारोह के अलावा बंगबंधु शेख मुजीबुर रहमान के जन्मशती समारोह में भी शामिल होंगे। लेकिन पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में शनिवार को पहले चरण के मतदान के दिन मोदी बांग्लादेश की धरती पर मतुआ समुदाय के पवित्र स्थान ओरकांडी ठाकुरबाड़ी और सुरेश्वरी देवी के मंदिर के दर्शन करेंगे। ओरकांडी मतुआ गुरु हरिचंद ठाकुर और गुरुचंद ठाकुर का जन्म स्थान है और दलित मतुआ महासंघ की स्थापना भी वहीं हुई थी। वहां प्रधानमंत्री की अगवानी के लिए बंगाल के बीजेपी सांसद शांतनु ठाकुर समेत मतुआ समुदाय की कई प्रमुख हस्तियां मौजूद रहेंगी। शांतनु ठाकुर मतुआ संप्रदाय के संस्थापक हरिचंद ठाकुर के परिवार से ही हैं। वहां प्रधानमंत्री के भव्य स्वागत की तैयारियां की गई हैं।
मतुआ संप्रदाय और उसकी अहमियत
मतुआ संप्रदाय मूल रूप से पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) से नाता रखता है। इस संप्रदाय की शुरुआत 1860 में अविभाजित बंगाल में हुई थी। मतुआ महासंघ की मूल भावना चतुर्वर्ण यानी ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र की व्यवस्था को खत्म करना है। इसकी शुरुआत समाज सुधारक हरिचंद्र ठाकुर ने की थी। उनका जन्म एक गरीब और अछूत नमोशूद्र परिवार में हुआ था। ये लोग देश के विभाजन के बाद धार्मिक शोषण से तंग आकर 1950 की शुरुआत में यहां आए थे। 1971 में बांग्लादेश मुक्ति संग्राम के बाद भी मतुआ समुदाय के लोग सीमा पार कर यहां आए थे।
मोटे अनुमान के मुताबिक, पश्चिम बंगाल में उनकी आबादी दो करोड़ से भी ज्यादा है। नदिया, उत्तर और दक्षिण 24-परगना जिलों की कम से कम सात लोकसभा सीटों पर उनके वोट निर्णायक हैं। यही वजह है कि मोदी ने बीते लोकसभा चुनावों से पहले फरवरी की अपनी रैली के दौरान इस समुदाय की माता कही जाने वाली वीणापाणि देवी से मुलाकात कर उनका आशीर्वाद लिया था। यह समुदाय पहले लेफ्ट को समर्थन देता था और बाद में वह ममता बनर्जी के समर्थन में आ गया। सत्तर के दशक के आखिरी वर्षों में पश्चिम बंगाल में कांग्रेस की ताकत घटी और लेफ्ट मजबूत हुआ। राजनीतिक पंडितों का कहना है कि लेफ्ट की ताकत बढ़ाने में मतुआ महासभा का भी बड़ा हाथ रहा।
लेकिन वीणापाणि देवी की मौत के बाद अब यह समुदाय दो गुटों में बंट गया है। इसलिए बीजेपी की निगाहें अब इस वोट बैंक पर हैं। 2014 में बीणापाणि देवी के बड़े बेटे कपिल कृष्ण ठाकुर ने तृणमूल कांग्रेस के टिकट पर बनगांव लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा और संसद पहुंचे। 2015 में कपिल कृष्ण ठाकुर के निधन के बाद उनकी पत्नी ममता बाला ठाकुर ने उपचुनाव में तृणमूल कांग्रेस के टिकट पर यह सीट जीती थी। लेकिन "बड़ो मां" यानी मतुआ माता के निधन के बाद परिवार में राजनीतिक मतभेद खुल कर सतह पर आ गया। उनके छोटे बेटे मंजुल कृष्ण ठाकुर ने बाद में बीजेपी का दामन थाम लिया। 2019 में बीजेपी ने मंजुल कृष्ण ठाकुर के बेटे शांतनु ठाकुर को बनगांव से टिकट दिया और वे जीत कर सांसद बन गए।
इस समुदाय के कई लोगों को अब तक भारतीय नागरिकता नहीं मिली है। यही वजह है कि बीजेपी सीएए के तहत नागरिकता देने का दाना फेंक कर उनको अपने पाले में करने का प्रयास कर रही है। राज्य के नदिया और उत्तर और दक्षिण 24 परगना जिले की 70 से ज्यादा विधानसभा सीटों पर मतुआ समुदाय की मजबूत पकड़ है।
मतुआ इलाके में मतदान अगले महीने
मतुआ समुदाय की आबादी और इलाके में असर को ध्यान में रखते हुए ही हरिचंद गुरुचंद ठाकुर के परिवार से जुड़े पीआर ठाकुर को कांग्रेस पार्टी ने 1962 में मंत्री बनाया था। हालांकि बाद में उनकी पत्नी बीणापाणि देवी ने टीएमसी प्रमुख ममता बनर्जी का साथ दिया। 2019 के लोकसभा चुनाव में उनकी नागरिकता संबंधी मांग पूरी करने का वादा किए जाने के बाद मतुआ समाज का झुकाव बीजेपी की तरफ हुआ। इससे पार्टी को अपनी सीटें दो से बढ़ा कर 18 तक पहुंचाने में कामयाबी मिली। हालांकि बीजेपी ने उस समय भी मतुआ समुदाय के लोगों को नागरिकता देने का वादा किया था। लेकिन उस पर अमल नहीं होने की वजह से इस समुदाय के एक तबके में नाराजगी है। उनकी नाराजगी को ध्यान में रखते हुए केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने मतुआ का गढ़ कहे जाने वाले उत्तर 24-परगना जिले के ठाकुरनगर की एक रैली में कहा था कि कोरोना का टीकाकरण अभियान खत्म होने के बाद सीएए के तहत उन सबको नागरिकता देने का काम शुरू हो जाएगा।
मतुआ समुदाय के असर वाली विधानसभा सीटों पर 5वें चरण में 17 अप्रैल और सातवें चरण में 26 अप्रैल को मतदान होना है। उससे पहले उन इलाकों में प्रधानमंत्री की रैलियों की भी योजना है। जाहिर है मोदी उन रैलियों में इस समुदाय का मन जीतने के लिए अपने ओरकांडी दौरे का बढ़ा-चढ़ा कर बखान करेंगे। प्रदेश बीजेपी के एक नेता नाम नहीं छापने की शर्त पर कहते हैं, "सीएए लागू वहीं होने की वजह से मतुआ समुदाय के एक तबके में काफी नाराजगी है। प्रधानमंत्री के ओरकांडी दौरे से इस तबके में एक सकारात्मक संदेश जाएगा, जिसका फायदा हमें चुनावों में मिलना तय है।'
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि ओरकांडी में मोदी का दौरा स्पष्ट रूप से मतुआ वोटरों को लुभाने की कोशिश है। एक राजनीतिक विश्लेषक प्रोफेसर समीरन पाल कहते हैं, "पश्चिम बंगाल चुनाव में ममता बनर्जी से मिलने वाली कड़ी चुनौती के बीच प्रधानमंत्री मोदी मतुआ समाज के लोगों को यह संदेश देने का मौका हाथ से नहीं जाने देना चाहते हैं कि बीजेपी उनकी सबसे बड़ी हितैषी है। इसके अलावा भारतीय सीमा से सटे सातखीरा में यशोरेश्वरी मंदिर के दौरे की भी राजनीतिक अहमियत है।" उनका कहना है कि ओरकांडी से मतुआ समाज का बेहद भावनात्मक लगाव है। ऐसे में इस दौरे का फायदा बीजेपी को बंगाल चुनावों में मिल सकता है।