भारत के पुडुचेरी में एक महिला पर 13 साल के बच्चे को जहर देने का आरोप लगा है। कहा जा रहा है कि उसने अपनी बेटी से ज्यादा नंबर लाने वाले बच्चे को जहर दे दिया। बच्चों पर ज्यादा नंबर लाने के लिए माता-पिता का दबाव घट नहीं रहा।
क्लास में अव्वल आने की वजह से आठवीं में पढ़ने वाले 13 साल के बाला मणिकंदन को उसकी क्लासमेट की मां सहयारानी विक्टोरिया ने कथित तौर पर जहर देकर मार दिया। सहयारानी नहीं चाहती थी कि मणिकंदन के उसकी बेटी से ज्यादा नंबर आयें। यह मामला भारत के पुडुचेरी के कारईकाल का है। आरोपी महिला सहयारानी विक्टोरिया को गिरफ्तार कर न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया है।
यह घटना दिखाती है कि परीक्षा के नंबरों को लेकर पेरेंट्स का पागलपन किस हद तक जा सकता है। शीर्ष अंतरराष्ट्रीय बैंकिंग फर्म एचएसबीसी के एक ग्लोबल सर्वे के मुताबिक 50 प्रतिशत से भी कम भारतीय माता-पिता को लगता है कि पेशेवर सफलता की तुलना में एक खुशहाल जीवन ज्यादा अहमियत रखता है।
बच्चों के नंबरों को इज्जत से जोड़ लेते हैं माता-पिता
दिल्ली में रहने वाली मनोवैज्ञानिक डॉ कविता कहती हैं, "कई मां-बाप में यह मानसिकता देखी जाती है कि वो परीक्षा में बच्चों की परफॉर्मेंस को इज्जत से जोड़ कर देखते हैं। ऐसा ही कुछ कारईकाल मामले में लगता है। हालांकि, ये एक दुर्लभ घटना है इसे सामान्य मानकर से नहीं देखा जाना चाहिए।"
हालांकि कुछ मेंटल बिहेवियर एक्सपर्ट यह भी कहते हैं कि इस मामले में पुलिस की तहकीकात के बाद मनोविज्ञान के स्तर पर बात करनी चाहिए। हालांकि नंबरों के लिए माता-पिता का जुनून बच्चों पर भी भारी दबाव डालता है। और भारत में बच्चों पर ऐसे दबाव को घटाने के लिए लंबे समय से कोशिशें होती आ रही हैं।
पेरेंट्स को समझाने की कोशिश
1993 में प्रोफेसर यशपाल कमेटी ने शिक्षा मंत्रालय के लिए एक रिपोर्ट तैयार की थी, जिसका नाम है 'लर्निंग विदाउट बर्डेन', इसमें स्कूली शिक्षा में बच्चों पर दबाव कम करने को लेकर सिफारिशें रखी गई थीं। 2005 में नेशनल करिकुलम फ्रेमवर्क बना, उसका उद्देश्य भी बच्चों पर दबाव कम करना था।
एनसीईआरटी के पूर्व निदेशक प्रोफेसर कृष्ण कुमार कहते हैं, "इस दिशा में काम तो हो रहे हैं। स्कूलों में कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं, कई संस्थाएं पेरेंट्स और स्कूलों को शिक्षा का उद्देश्य समझाने के लिए काम कर रही हैं। वे समझाती हैं कि बच्चों को बेहतर महसूस कराना है ना कि उनपर दबाव बढ़ाना है। हालांकि इतने बड़े देश में यह मुश्किल काम है लेकिन ऐसी कोशिशों से समस्याओं की ओर लोगों का ध्यान जरूर गया है।”
अभिभावकों की अपेक्षाएं खतरनाक
भारत में पढ़ाई को लेकर छात्रों का मानसिक दबाव से गुजरना एक आम बात है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी रिपोर्ट, 2021) के नये आंकड़ों से पता चलता है कि पिछले साल भारत में 13,000 से ज्यादा छात्रों ने आत्महत्या कर ली। इनमें से 1,673 छात्रों ने "परीक्षा में फेल होने" के कारण आत्महत्या की।
नंबरों की प्रतिस्पर्धा की एक वजह शैक्षणिक संस्थानों का टॉपर्स और प्रतिभाशाली छात्रों को ही स्वीकार करना भी है। बोर्ड परीक्षाओं के वक्त या ए़डमिशन सीजन में शहर होर्डिंग्स से भरे होते हैं जिसमें 90% से ज्यादा नंबर वाले छात्रों का स्कूल, कोचिंग सेंटर या टीचर, मार्केटिंग के लिए इस्तेमाल करते हैं।
माता-पिता को समझा चुके हैं प्रधानमंत्री मोदी
प्रोफेसर कृष्ण कुमार कहते हैं कि सिर्फ शिक्षा प्रणाली में लगातार सुधार से ही दबाव दूर नहीं हो सकता क्योंकि समाज का वातावरण ही बहुत प्रतिस्पर्धी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी इस साल अप्रैल में हुई बच्चों-अभिभावकों के साथ 'परीक्षा पे चर्चा' कार्यक्रम में इस पहलू की ओर ध्यान दिलाया था।
प्रधानमंत्री ने कहा था, "मैं सबसे पहले मां बाप और शिक्षकों को यह जरूर कहना चाहूंगा कि जो सपने आपके खुद के अधूरे रह गए हैं, उन्हें अपने बच्चों में इंजेक्ट करने की कोशिश करते हैं। आप अपनी आकांक्षाएं जो आप पूरी नहीं कर पाए उन्हें बच्चों के जरिए पूरा कराना चाहते हैं... हम बच्चों की आकांक्षाओं को समझने का प्रयास नहीं करते हैं। उनकी प्रवृत्ति, क्षमता नहीं समझते और नतीजा ये होता है कि बच्चा लड़खड़ा जाता है।''
जानकार मानते हैं कि इस मामले के बाद सोशल मीडिया पर परीक्षा में नंबरों के दबाव की बहस भले ही चल रही हो लेकिन जब तक शिक्षा के पैमाने को विस्तृत नहीं किया जाता तब तक भारत में इस समस्या का हल निकल पाना संभव नहीं लगता।