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जर्मनी में काम करने के लिए नहीं मिल रहे लोग

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, शनिवार, 3 सितम्बर 2022 (07:56 IST)
जर्मनी की व्यावसायिक शिक्षा प्रणाली काफी बेहतर रही है। दुनिया के कई अन्य देश भी इसे अपनाना चाहते हैं, लेकिन मौजूदा हालात में प्रशिक्षुओं की कमी की वजह से देश में कामगारों का संकट गहराता जा रहा है।
 
वर्ष 2014 में अमेरिकी पत्रिका द अटलांटिक ने जर्मनी की प्रशिक्षण प्रणाली की तारीफ करते हुए एक लेख प्रकाशित किया था। इस लेख का शीर्षक था, 'जर्मनी अपने कामगारों को प्रशिक्षित करने में इतना बेहतर क्यों है'। इस लेख में बताया गया था कि प्रशिक्षण देने वाली जगहों पर मांग ने आपूर्ति को पीछे छोड़ दिया। दूसरे शब्दों में कहें, तो जर्मनी में जितने युवाओं को प्रशिक्षण की जरूरत थी, उससे ज्यादा लोगों को प्रशिक्षित करने की व्यवस्था की गई।
 
लेख में कहा गया था, "इसमें कोई आश्चर्य वाली बात नहीं है कि प्रशिक्षण कार्यक्रम काफी लोकप्रिय है। मानहाइम स्थित जॉन डीरे प्लांट में 60 अलग-अलग स्लॉट में प्रशिक्षण लेने के लिए 3100 युवा हर साल आवेदन करते हैं। इसी तरह, फ्रैंकफर्ट स्थित डॉयचे बैंक में हर साल 22,000 युवा आवेदन करते हैं, जिन्हें 425 अलग-अलग जगहों पर प्रशिक्षण दिया जाता है।”
 
प्रशिक्षण लेने वालों की संख्या घटी
इस लेख को प्रकाशित हुए आठ साल बीत चुके हैं और इस दौरान वक्त काफी तेजी से बदल गया। जर्मनी में लंबे समय से चली आ रही व्यावसायिक प्रशिक्षण प्रणाली के प्रति लोगों का उत्साह अब कम होने लगा है। देश में प्रशिक्षण लेने वालों की तादाद काफी कम हो गई है।
 
एसोसिएशन ऑफ जर्मन चैंबर्स ऑफ इंडस्ट्री एंड कॉमर्स ने हाल में 15,000 कंपनियों के बीच एक सर्वे कराया है। इसमें पाया गया कि 2021 में 42 फीसदी कंपनियां प्रशिक्षुओं के अपने सभी पदों को नहीं भर पाई। उन्होंने कहा, "देश में प्रशिक्षुओं की कमी ‘सबसे उच्च स्तर' पर है।"
 
जर्मन इकोनॉमिक इंस्टीट्यूट ने कहा कि 2021 में 4,73,064 युवाओं ने प्रशिक्षण कार्यक्रम में शामिल होने के अनुबंध पर हस्ताक्षर किया, जो 2013 की तुलना में 10 फीसदी कम है। लंबे समय से कुशल श्रमिकों की मांग से जूझ रहे जर्मनी के श्रम बाजार के लिए यह काफी चिंता की बात है।
 
कुशल श्रमिकों की कमी
जर्मन इकोनॉमिक इंस्टीट्यूट की वरिष्ठ अर्थशास्त्री रेगिना फ्लेक ने डीडब्ल्यू को बताया, "जर्मनी इकोनॉमिक मॉडल कुशल श्रमिकों और विशेष तौर पर व्यावसायिक और अकादमिक रूप से कुशल श्रमिकों पर निर्भर है। कुशल श्रमिकों की कमी का मतलब है कि स्थिति काफी ज्यादा खराब है। इससे कंपनियां बंद हो सकती हैं, आने वाले समय में आपूर्ति श्रृंखला ठप्प पड़ सकती है, और नई खोज की क्षमता पर नकारात्मक असर पड़ सकता है।"
 
जर्मनी के इंस्टीट्यूट ऑफ लेबर इकोनॉमिक्स के उल्फ रिने ने कहा, "कंपनियों में प्रशिक्षुओं के लिए जितने पद हैं उनकी तुलना में प्रशिक्षुओं की संख्या काफी कम है। यह एक खतरनाक स्थिति है, क्योंकि दो स्तर पर प्रशिक्षण कार्यक्रम जर्मन श्रम बाजार की ताकत है। साथ ही, देश में स्नातक स्तर की पढ़ाई कर चुके लोग ही कई व्यवसायों में श्रम आपूर्ति की रीढ़ हैं।”
 
श्रमिकों की कमी का नुकसान
जर्मनी कई वर्षों से कुशल श्रमिकों की कमी का सामना कर रहा है। इसका एक प्रमुख कारण यह है कि 1950 और 1960 के दशक की शुरुआत में पैदा हुई श्रमिकों की तथाकथित बेबी-बूमर पीढ़ी के लोग अब तेजी से रिटायर हो रहे हैं। लगभग हर साल 3,50,000 कर्मचारी श्रम बाजार से बाहर निकल रहे हैं, लेकिन इनकी कमी को पूरा करने के लिए पर्याप्त कर्मचारी नहीं मिल पा रहे हैं। विशेषज्ञों के मुताबिक, प्रशिक्षुओं की कमी इस समस्या को और बढ़ा रही है, लेकिन इसकी अन्य वजहें भी हैं।
 
रिने ने कहा कि जर्मनी के प्रशिक्षण कार्यक्रम ने युवाओं को दशकों तक आकर्षित किया। युवाओं ने इनके जरिए नौकरी हासिल की, लेकिन अब उनके बीच इस कार्यक्रम की चमक फीकी पड़ गई है। उन्होंने कहा, "हम सभी तरह के विश्वविद्यालयों और व्यावसायिक स्कूलों के प्रति अलग तरह की भागदौड़ देख रहे हैं। यह भागदौड़ उन युवाओं के बीच भी देखी जा रही है जो प्रशिक्षण कार्यक्रम के पुराने तरीके में बेहतर कर सकते हैं।"
 
फ्लेक ने कहा कि प्रशिक्षण कार्यक्रमों को लेकर जो उत्साह पहले था वह पिछले कई वर्षों से लगातार कम होता जा रहा है। कोरोना महामारी ने भी इस मौजूदा समस्या को बढ़ाने में भूमिका निभाई है। उन्होंने कहा, "महामारी के दौरान एक बड़ी चुनौती देखने को मिली। व्यावसायिक प्रशिक्षण कार्यक्रमों का आयोजन काफी कम हो गया था। कंपनियां न तो स्कूल का दौरा करा पाईं, न ही छात्रों को इंटर्नशिप का ऑफर दिया, और न ही उनके लिए किसी तरह का प्रोजेक्ट लॉन्च किया गया। इस वजह से काफी युवाओं को प्रशिक्षण नहीं मिल सका।"
 
रिने का मानना है कि पहले महामारी और अब रूस-यूक्रेन युद्ध ने श्रम बाजार की मौजूदा समस्याओं को नाटकीय रूप से बढ़ा दिया है। उन्होंने कोरोना महामारी और रूस-यूक्रेन युद्ध को ‘परिवर्तनकारी शक्तियों' के तौर पर बताया, जो श्रम बाजार में मौजूदा रुझानों, जैसे कि डिजिटलाइजेशन और डीकार्बोनाइजेशन के कारण होने वाले उथल-पुथल को बढ़ा रहे हैं।
 
समस्या से निपटने के लिए राजनीतिक इच्छा शक्ति की जरूरत
राजनीतिक स्तर पर स्थिति तेजी से महत्वपूर्ण होती जा रही है। इस हफ्ते, शिक्षा मंत्री बेटीना श्टार्क-वात्सिंगर ने कहा कि जर्मनी को "बदलाव, विकास, और समृद्धि के लिए तेज दिमाग और कड़ी मेहनत करने वाले लोगों की तत्काल जरूरत है।"
 
सरकार में शामिल तीनों सत्तारूढ़ पार्टियों ने अपने गठबंधन समझौते में जर्मनी में व्यावसायिक प्रशिक्षण प्रणाली को बेहतर और आकर्षक बनाने के उद्देश्य से एक अलग सेक्शन शामिल किया है।
 
रिने का मानना है कि यह समस्या से निपटने का बेहतर तरीका है। उन्होंने जोर देकर कहा कि सरकार को कंपनियों के लिए संरचनात्मक बदलाव करते हुए सख्त नियम बनाने चाहिए, ताकि प्रशिक्षुओं की स्थिति में सुधार हो सके। वहीं, कंपनियों को भी तेजी से काम करना होगा। उन्होंने कहा, "कंपनियों को अपना कार्यस्थल आकर्षक बनाना चाहिए। साथ ही, कर्मचारियों को प्रशिक्षित और शिक्षित करने के लिए पहले से बेहतर कदम उठाना चाहिए।"
 
दूसरा जरूरी बदलाव है युवा श्रमिकों को यह बात समझाना कि कुछ काम में प्रशिक्षित होना कितना जरूरी है। रिने ने कहा, "हमें करियर से जुड़ी ऐसी सलाह देने की जरूरत है जो मौजूदा अवसरों और प्रशिक्षण कार्यक्रम की आधुनिक छवि को दिखाती हों। जैसे, ऐसे कारोबार जहां मशीनों की जगह इंसान ज्यादा काम करते हैं और वहां ऊर्जा के बदलते स्रोत के इस्तेमाल के लिए विशेषज्ञता जरूरी है।"
 
हर क्षेत्र में दिख रही कामगारों की कमी
प्रशिक्षुओं की कमी की वजह से कुछ क्षेत्र अन्य क्षेत्रों के मुकाबले काफी ज्यादा प्रभावित हुए हैं। प्लंबिंग, स्वच्छता, हीटिंग, वेंटिलेशन और एयर कंडीशनिंग जैसे विशेष प्रशिक्षण वाले कारोबार के साथ-साथ निर्माण उद्योग ज्यादा प्रभावित हुआ है। महामारी के बाद पर्यटन उद्योग में आई तेजी के बावजूद, इस क्षेत्र में प्रशिक्षुओं की कमी से कारोबार चलाने वालों को काफी ज्यादा परेशानी हो रही है।
 
संभावना जताई जा रही है कि प्रशिक्षुओं की कमी का असर जर्मनी की पूरी अर्थव्यवस्था पर पड़ सकता है। रिने ने कहा कि श्रम बाजार का बढ़ता संकट लंबे समय के अंतराल में जर्मन अर्थव्यवस्था की वृद्धि को सुस्त बना सकता है। उन्होंने इशारा किया कि देश में पहले से ही कई क्षेत्र कर्मचारियों की कमी का सामना कर रहे हैं और आपूर्ति से जुड़ी बाधाएं देखने को मिल रही हैं।
 
उन्होंने कहा, "कुशल श्रमिकों की कमी पहले से ही जर्मनी के विकास में बाधक बन रही है। अब यह बड़े स्तर पर श्रमिकों की कमी के रूप में बदल गई है। कम वेतन वाले क्षेत्रों में भी कामगारों का संकट गहरा रहा है। विकास से जुड़ी इन बाधाओं को दूर करने और संरचनात्मक बदलावों से सफलतापूर्वक निपटने के लिए मानव पूंजी को सुरक्षित करने की आवश्यकता है।"
 
जर्मनी आने वाले वर्षों में अपने चुनौतीपूर्ण जलवायु लक्ष्यों तक पहुंचने की कोशिश कर रहा है। हालांकि, उस लक्ष्य को पाने के रास्ते में श्रमिकों की कमी एक बड़ी बाधा बन गई है। फ्लेक ने कहा कि देश में ग्रीन एनर्जी को बढ़ावा देने और जलवायु परिवर्तन से लड़ने के लिए कुशल श्रमिकों की जरूरत है। उन्होंने कहा, "उदाहरण के लिए, कुशल श्रमिकों के बिना फोटोवोल्टिक सिस्टम या पवन टर्बाइन की स्थापना और उसका संचालन संभव नहीं है।"

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