स्वाति मिश्रा
अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप ने राष्ट्रपति चुनाव लिया है। दुनियाभर से बधाई संदेश आ रहे हैं। इस बीच यूरोप में ट्रंप के भावी कार्यकाल को लेकर काफी असहजता है। क्या यूरोप के लिए ज्यादा आत्मनिर्भर होना ही एकमात्र उपाय बचा है?
डोनाल्ड ट्रंप एक बार फिर राष्ट्रपति चुनाव जीत गए हैं। अमेरिकी चुनाव 2024 के विजयी उम्मीदवार ट्रंप जब फ्लोरिडा में समर्थकों को संबोधित करने मंच पर आए, तो स्वाभाविक खुशी के अलावा उन्होंने एक मायूसी भी साझा की। ट्रंप ने दुख जताया कि बतौर उम्मीदवार यह उनका आखिरी चुनाव अभियान था।
उन्होंने लोगों से एकजुटता की अपील करते हुए कहा, "अब वक्त आ गया है कि हम बीते चार सालों के बंटवारे को पीछे छोड़ें और एक हों। कामयाबी हमें साथ लाएगी। मैं आपको निराश नहीं करूंगा। अमेरिका का भविष्य पहले के मुकाबले ज्यादा बड़ा, बेहतर, संपन्न, सुरक्षित और मजबूत होगा।"
चुनाव अभियान के दौरान खुद पर हुए जानलेवा हमलों का जिक्र करते हुए ट्रंप ने कहा कि कई लोग उनसे कह चुके हैं कि "ईश्वर ने किसी कारण से उनकी जिंदगी बचाई।" बकौल ट्रंप, यह कारण है "देश की हिफाजत करना और अमेरिका की महानता को फिर लौटाना।"
दुनियाभर से ट्रंप के लिए बधाई संदेश आ रहे हैं। भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्रंप के साथ अपनी पुरानी हंसती-मुस्कुराती, गले लगाती तस्वीरें साझा करते हुए एक्स पोस्ट में लिखा, "मेरे दोस्त डॉनल्ड ट्रंप, आपकी ऐतिहासिक चुनावी जीत पर हार्दिक बधाई।"
बधाई संदेश यूरोप से भी आए हैं। कुछ का स्वर उम्मीद भरा है, जिसमें साथ मिलकर काम करने की आशा जताई गई है। फ्रांस के राष्ट्रपति इमानुएल माक्रों ने लिखा, "बधाई हो राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप। साथ मिलकर काम करने को तैयार हूं, जैसा कि हमने चार सालों तक किया था। आपके और मेरे, दोनों के दृढ़ विश्वास के साथ। सम्मान और लक्ष्य के साथ। ज्यादा शांति और समृद्धि के लिए।"
इस सोशल पोस्ट के फौरन बाद माक्रों ने एक और पोस्ट में बताया कि अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव के नतीजों के संदर्भ में उनकी जर्मन चांसलर ओलाफ शॉल्त्स से बात हुई है। इस पोस्ट में भी ट्रंप कार्यकाल को लेकर यूरोपीय हितों से जुड़ी चिंताओं की झलक थी। माक्रों ने लिखा, "मैंने अभी-अभी चांसलर ओलाफ शॉल्त्स से बात की है। इस नए संदर्भ में हम साथ मिलकर ज्यादा एकजुट, मजबूत, अधिक संप्रभु यूरोप की दिशा में काम करेंगे। संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ सहयोग करते हुए हमारे हितों और हमारे मूल्यों की रक्षा करेंगे।"
जर्मनी के चांसलर ओलाफ शॉल्त्स ने भी ट्रंप को बधाई देते हुए द्विपक्षीय संबंधों के मजबूत अतीत पर जोर देते हुए लिखा, "अटलांटिक के दोनों तरफ समृद्धि और आजादी को बढ़ावा देने के लिए जर्मनी और अमेरिका बहुत लंबे समय से सफलतापूर्वक साथ मिलकर काम करते रहे हैं। अपने नागरिकों के हित के लिए हम ऐसा करना जारी रखेंगे।"
जर्मनी की विदेश मंत्री अनालेना बेयरबॉक इस मौके पर यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की और यूक्रेनी सैन्य अधिकारियों के साथ नजर आईं। उन्होंने एक्स पर यूक्रेन को आश्वस्त करते हुए लिखा भी, "ऐसे समय में जबकि दुनिया मुग्ध होकर अमेरिका की ओर देख रही है, ऐसे में यहां यूक्रेन में आपके साथ (जेलेंस्की) होने से बेहतर कोई जगह नहीं हो सकती है। हम आपके साथ रहेंगे। आपकी सुरक्षा, हमारी सुरक्षा है।"
ब्रिटिश प्रधानमंत्री किएर स्टार्मर ने एक बयान साझा करते हुए अपने सोशल पोस्ट में लिखा, "सबसे करीबी सहयोगियों के तौर पर आजादी, लोकतंत्र और उद्यम के हमारे साझा मूल्यों की रक्षा के लिए हम कंधे से कंधा मिलाकर खड़े हैं। विकास और सुरक्षा से लेकर इनोवेशन और टेक तक, मैं जानता हूं कि अमेरिका और ब्रिटेन का खास रिश्ता आने वाले सालों में अटलांटिक के दोनों ओर समृद्ध होता रहेगा।"
रूस के साथ जारी युद्ध में यूक्रेन के लिए ट्रंप क्या रुख अपनाएंगे? क्या वह चुनावी बयानों पर अमल करते हुए यूक्रेन को दिए जा रहे समर्थन और सैन्य-आर्थिक मदद में सख्त रवैया दिखाएंगे? या, पूर्ववर्ती बाइडेन प्रशासन की विदेश नीति को बरकरार रखेंगे? यूरोप के लिए यह बड़ा सवाल बना हुआ है। ट्रंप की जीत पर राष्ट्रपति जेलेंस्की की शुरुआती प्रतिक्रिया में भी यह अपील दिखी।
उन्होंने एक बड़े पोस्ट में बधाई के साथ शुरुआत करते हुए लिखा, "हम राष्ट्रपति ट्रंप के निर्णायक नेतृत्व में एक मजबूत अमेरिका के युग की उम्मीद करते हैं। हम अमेरिका में यूक्रेन के प्रति सुदृढ़ द्विदलीय समर्थन कायम रहने पर विश्वास करते हैं।"
हंगरी के दक्षिणपंथी विचारधारा के प्रधानमंत्री विक्टर ओरबान ने ट्रंप की जीत को दुनिया के लिए "बेहद जरूरी" बताते हुए लिखा, "अमेरिका के राजनीतिक इतिहास में सबसे बड़ी वापसी! राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप को इस बड़ी जीत की बधाई। दुनिया को इस जीत की सख्त जरूरत थी!"
नाटो के नए प्रमुख मार्क रुटे ने भी लिखा, "मैंने अभी-अभी डॉनल्ड ट्रंप को अमेरिका का राष्ट्रपति चुने जाने की बधाई दी है। उनका नेतृत्व हमारे गठबंधन को मजबूत बनाए रखने के लिए फिर से अहम होगा। मैं फिर से उनके साथ मिलकर काम करने की कामना करता हूं, नाटो के साथ मिलकर मजबूती से शांति को बढ़ाने के लिए।" रुटे ने अक्टूबर में ही नाटो प्रमुख का पद संभाला है। ट्रंप नाटो पर हमलावर रहे हैं। ऐसे में ट्रंप की संभावित जीत के कारण उनका कार्यकाल और भूमिका पहले ही काफी चुनौतीपूर्ण मानी जा रही थी।
यूक्रेन की मदद से हाथ खींच लेंगे ट्रंप?
ट्रंप के दोबारा राष्ट्रपति चुने जाने की स्थिति में जर्मनी, फ्रांस समेत यूरोपीय संघ (ईयू) में कई अहम विषयों पर संशय बना हुआ था। इनमें यूरोपीय सुरक्षा, यूक्रेन को दिए जा रहे आर्थिक व सैन्य सहयोग का भविष्य, रूस के ज्यादा मजबूत होने और व्यापारिक मोर्चे पर टैरिफ बढ़ाए जाने जैसी आशंकाएं शामिल हैं।
माना जा रहा था अगर कमला हैरिस चुनाव जीतती हैं, तो वह यूक्रेन युद्ध से जुड़ी विदेश नीति पर यथा स्थिति बनाए रखेंगी। फरवरी 2022 में रूस के हमले से शुरू हुए युद्ध में अब तक यूक्रेन को सबसे ज्यादा मदद अमेरिका से मिली है। यह स्थिति बदलने के आसार हैं क्योंकि ट्रंप, यूक्रेनी राष्ट्रपति जेलेंस्की की आलोचना करते रहे हैं।
ट्रंप ने यह संकेत भी दिया कि राष्ट्रपति बनने पर वह यूक्रेन को दी जा रही अमेरिकी सहायता कम कर सकते हैं। ऐसे में कई विशेषज्ञों का यह भी अनुमान है कि ट्रंप यूक्रेन के लिए हथियारों की आपूर्ति पर रोक लगा सकते हैं। इस स्थिति में जर्मनी और ब्रिटेन जैसे यूरोपीय सहयोगियों के लिए स्थिति काफी मुश्किल हो सकती है।
नाटो का कितना साथ देंगे ट्रंप?
इसके अलावा नाटो के बजट को लेकर भी ट्रंप यूरोपीय सहयोगियों की आलोचना करते रहे हैं। इसी साल उन्होंने एक चुनावी रैली में यह तक कह दिया कि अगर नाटो के यूरोपीय सदस्य रक्षा खर्च पर अपनी जिम्मेदारियां पूरी नहीं करते हैं, तो रूस के हमले की सूरत में वह उनकी हिफाजत नहीं करेंगे।
विशेषज्ञों के मुताबिक, शीत युद्ध के बाद से नाटो की स्थिति इतनी गंभीर कभी नहीं रही। लंबे समय तक शांति के बने रहने के बाद युद्ध नाटो के मुहाने पर पहुंच चुका है। रूस की बढ़ती आक्रामकता और क्षेत्रीय सुरक्षा की चिंताओं को देखते हुए नाटो को एकजुट होकर अपने सुरक्षा ढांचे में बड़े सुधार की जरूरत है।
चिंताएं कारोबारी भी हैं। ट्रंप यूरोपीय संघ से होने वाले आयात पर टैरिफ बढ़ाने की पैरोकारी करते रहे हैं। ऐसा करने पर पहले से ही आर्थिक चुनौतियों का सामना कर रहे जर्मनी जैसे देशों पर काफी असर पड़ेगा।
यूरोप की सबसे बड़ी आर्थिक शक्ति जर्मनी चिंता में
ट्रंप के पिछले कार्यकाल में जर्मनी का नेतृत्व अंगेला मैर्केल कर रही थीं। वह यूरोप के प्रभावी नेताओं में गिनी जाती थीं। मौजूदा चांसलर ओलाफ शॉल्त्स अभी घरेलू राजनीति में भी मजबूत स्थिति में नहीं हैं। गठबंधन सरकार में घटक दलों के बीच पसरे मतभेदों के कारण जर्मनी में समय से पहले चुनाव करवाए जाने की आशंका जताई जा रही है। ट्रंप रूपी "आसन्न चुनौती" जर्मनी की आंतरिक राजनीति में भी विमर्श का विषय रही है।
पिछले महीने जर्मनी के प्रमुख विपक्षी दल सीडीयू के नेता फ्रीडरिष मैर्त्स ने कहा कि यूरोप को अपनी साझा सुरक्षा चिंताओं पर ध्यान केंद्रित करने और अमेरिका से निर्भरता घटाने की जरूरत है। मैर्त्स ने कहा कि बतौर राष्ट्रपति ट्रंप की वापसी से यह जरूरत खासतौर पर बढ़ जाएगी।
मैर्त्स ने खुद को रक्षा क्षेत्र में खर्च बढ़ाने का मजबूत समर्थक बताया। उन्होंने इस मद पर ग्रॉस नेशनल प्रॉडक्ट (जीएनपी) का 2 फीसदी खर्च करने की जगह रक्षा बजट बढ़ाकर तीन प्रतिशत करने की मांग की।
मैर्त्स का बयान इस मायने में भी अहम है कि अगले साल हो रहे आम चुनाव के लिए सीडीयू ने उन्हें चांसलर पद का उम्मीदवार बनाया है। समाचार एजेंसी डीपीए के अनुसार, अक्टूबर में हुए पार्टी सम्मेलन में मैर्त्स ने यह आशंका भी जताई थी कि ट्रंप के जीतने पर अमेरिका और जर्मनी के बीच आर्थिक सहयोग "काफी गैर-दोस्ताना" हो सकता है।
हालांकि, उन्होंने यह भी कहा था कि कमला हैरिस के जीतने पर भी अमेरिका के साथ आर्थिक सहयोग जटिल हो सकता है क्योंकि वॉशिंगटन में कोई भी नई सरकार ट्रांसअटलांटिक क्षेत्र की जगह एशिया-प्रशांत इलाके को तरजीह देगी। यूरोपीय आत्मनिर्भरता की जरूरत रेखांकित करते हुए उन्होंने चेतावनी के स्वर में कहा था कि हैरिस हों या ट्रंप, दोनों के ही नेतृत्व में बनी सरकार यूरोपियनों से कह सकती है कि "अपना थोड़ा ज्यादा ध्यान रखो। खुद की थोड़ी और ज्यादा जिम्मेदारी उठाओ।"