क्यों धंस रही है हमारी धरती और बन रहे हैं बड़े-बड़े गड्ढे
आप किसी दिन सोकर उठें और पता चले कि घर के बगल में बड़ा गड्ढा बन गया है। अब वो जगह रहने लायक नहीं रही! दुनिया के कई इलाकों में ऐसी घटनाएं बढ़ रही हैं। इसकी बड़ी वजह है, आबोहवा और मौसम में हो रही तब्दील
सारा श्टेफन
ब्राजील के अमेजन क्षेत्र के उत्तर-पूर्वी सिरे पर बसे एक इलाके में अचानक जमीन धंसने लगी है। इससे वहां विशाल गड्ढे, यानी सिंकहोल बन गए हैं। इन गड्ढों के किनारे मौजूद कई घरों पर खतरा मंडराने लगा है। 1,000 से ज्यादा लोगों को बेघर होने का डर सताने लगा है। सरकार को आपातकाल की घोषणा करनी पड़ी है।
यह इस तरह की पहली घटना नहीं है। अमेरिका से लेकर तुर्की और ईरान तक, पूरी दुनिया में ऐसे सिंकहोल देखने को मिल रहे हैं। ये अचानक बनते हैं और इनसे जान-माल का खतरा पैदा होता है।
सिंकहोल क्या होते हैं?
जमीन में बन आए गड्ढों को सिंकहोल कहा जाता है। ये तब बनते हैं, जब पानी मिट्टी को काट देता है। यह कुदरती तौर पर हो सकता है। मसलन, बारिश का पानी मिट्टी से रिसकर नीचे की चट्टानों को घोल दे।
ये इंसानी गतिविधियों की वजह से भी बन सकते हैं। जैसे, जमीन के नीचे की पाइपलाइन से पानी का रिसाव, तेल या गैस निकालने के लिए की जाने वाली ड्रिलिंग (फ्रैकिंग), और खनन जैसे कामों से भी।
होंग यांग, ब्रिटेन की रीडिंग यूनिवर्सिटी में पर्यावरण विज्ञान के प्रोफेसर हैं। यांग के मुताबिक, उन इलाकों में सिंकहोल बनने की संभावना ज्यादा होती है जहां 'कार्स्ट टेरेन' पाया जाता है। यानी, ऐसी जमीन जहां नीचे घुलनशील चट्टानें होती हैं। जैसे, चूना पत्थर, नमक की परतें या जिप्सम।
जब जमीन के नीचे का पानी इन चट्टानों को घोलने लगता है, तो जमीन धीरे-धीरे खोखली हो जाती है और अचानक धंस जाती है। यांग ने हाल ही में जलवायु परिवर्तन के कारण बढ़े सिंकहोल के खतरों को कम करने पर एक शोध प्रकाशित किया है।
उन्होंने डीडब्ल्यू को बताया, "अमेरिका में करीब 20 फीसदी जमीन संवेदनशील है। इसमें फ्लोरिडा, टेक्सास, अलबामा, मिसौरी, केंटकी, टेनेसी और पेंसिल्वेनिया में सबसे ज्यादा नुकसान हुआ है।" अन्य संवेदनशील क्षेत्रों में ब्रिटेन, खासतौर पर उत्तरी इंग्लैंड में रिपन और यॉर्कशायर डेल्स जैसे क्षेत्र, इटली का लाजियो क्षेत्र, मेक्सिको का युकाटन प्रायद्वीप, चीन, ईरान और तुर्की के कुछ हिस्से शामिल हैं।
सिंकहोल बनने में जलवायु परिवर्तन की भूमिका
शोध के मुताबिक, जलवायु परिवर्तन के कारण चरम मौसम की घटनाएं ज्यादा तीव्र हो रही हैं। इससे सिंकहोल बनने की घटनाएं भी बढ़ती जा रही हैं।
यांग ने बताया, "सूखा पड़ने पर जमीन के नीचे मौजूद जल-स्तर गिर जाता है। इससे ऊपर की जमीन को सहारा देने वाला भूमिगत आधार कमजोर हो जाता है। जब इसके बाद अचानक तेज बारिश या तूफान आते हैं, जो कि जलवायु परिवर्तन की वजह से अब अधिक सामान्य हो गए हैं, तो पानी के अचानक भार की वजह से जमीन गीली होकर भरभराकर बैठ जाती है। इससे बड़े-बड़े सिंकहोल बन जाते हैं।"
उन्होंने तुर्की के प्रमुख कृषि क्षेत्र, मध्य अनातोलिया के कोन्या मैदान की ओर ध्यान दिलाया। यह इलाका 'कार्स्ट टेरेन' (घुलनशील चट्टानों वाला क्षेत्र) है। यहां बढ़ते सूखे के कारण अब आबादी वाले इलाकों में भी सिंकहोल बनने लगे हैं।
फेतुल्लाह अरिक, कोन्या तकनीकी विश्वविद्यालय में प्रोफेसर और विश्वविद्यालय के सिंकहोल अनुसंधान केंद्र के प्रमुख हैं। उन्होंने बताया कि 2000 के दशक से पहले, इस क्षेत्र के शोधकर्ता हर कुछ वर्षों में एक सिंकहोल बनने की घटना दर्ज करते थे। वहीं, सिर्फ 2024 में 42 सिंकहोल बनने की घटना दर्ज की गई है।
कोन्या बेसिन में भूजल स्तर 1970 की तुलना में कम-से-कम 60 मीटर (197 फीट) गिर गया है। अरिक बताते हैं, "बेसिन के किनारों के नजदीक कुछ इलाकों में भूजल नहीं मिल पा रहा है, जबकि 300 मीटर से भी गहरे कुएं खोदे गए हैं।"
जलवायु परिवर्तन की वजह से बढ़ रही सूखे की समस्या से भूमिगत जल स्तर लगातार घट रहा है। बारिश अब जल स्रोतों को भर नहीं पा रही है। लोगों को पानी की जरूरत तो होती ही है, इसलिए वे जमीन से काफी मात्रा में पानी निकाल रहे हैं।
इससे सिंकहोल का खतरा और भी बढ़ जाता है। आबादी वाले इलाकों में बन रही यह स्थिति और भी खतरनाक हो सकती है। अगर कभी वहां की जमीन धंसी और सिंकहोल बना, तो कई इमारतें समूची ढह सकती हैं।
एंटोनियोस ई। मार्सेलोस, न्यूयॉर्क के हॉफस्ट्रा विश्वविद्यालय में भूविज्ञान, पर्यावरण और सस्टेनेबिलिटी के एसोसिएट प्रोफेसर हैं। उन्होंने बताया, "अगर आप जूस बॉक्स से बहुत तेजी से जूस खींचें, तो वह अंदर की तरफ दब जाता है। यही हाल जमीन का होता है। जब हम ज्यादा तेजी से भूमिगत पानी निकालते हैं, तो जमीन के नीचे का सहारा कमजोर हो जाता है और वह धंस सकती है, बिल्कुल उसी तरह जैसे जूस बॉक्स मुड़ जाता है।"
मार्सेलोस ने 'सिंकहोल की संरचनाओं पर जलवायु परिवर्तन के असर' पर शोध किया है। उन्होंने कहा कि बड़े शहरों में वायु प्रदूषण के कारण स्थिति और भी खराब हो जाती है। प्रदूषित पानी ज्यादा अम्लीय हो जाता है और जमीन के नीचे की चट्टानों को तेजी से घोलने लगता है।
मार्सेलोस और उनकी टीम ने न्यूयॉर्क के लॉन्ग आइलैंड में लगभग 80 वर्षों तक के फ्रीज-थॉ (जमना और पिघलना) चक्रों का अध्ययन किया। उन्होंने पाया कि जलवायु परिवर्तन के कारण बढ़ते तापमान ने मिट्टी की स्थिरता और पकड़ को कमजोर कर दिया है। इसका सीधा असर सिंकहोल बनने पर पड़ रहा है।
क्या सिंकहोल बनने से रोका जा सकता है?
यांग ने बताया कि विशेषज्ञ, सिंकहोल बनने से पहले उस स्थिति की पहचान करने के लिए सैटेलाइट रिमोट सेंसिंग और ग्राउंड-पेनेट्रेटिंग रेडार जैसी तकनीकों का इस्तेमाल करते हैं। इन तकनीकों की मदद से जमीन के नीचे धीरे-धीरे हो रहे धंसाव और खाली जगहों का पता लगाया जाता है।
अन्य तरीकों में जमीन में निर्माण से पहले भूजल स्तर की निगरानी करना और भू-तकनीकी सर्वेक्षण करना शामिल है। इससे यह पता लगाया जा सकता है कि क्षेत्र में जमीन धंसने का खतरा है या नहीं।
मार्सेलोस ने बताया कि अगर जमीन के नीचे कोई खाली जगह मिलती है, तो विशेषज्ञ दांत के डॉक्टर की तरह काम करते हैं, "हम ठीक उसी तरह की प्रक्रिया अपनाते हैं। हम जांचते हैं कि जमीन के नीचे कहीं कोई खाली जगह तो नहीं है, जो आगे चलकर उस स्थान को सहारा नहीं दे पाएगी और जमीन धंस सकती है।"
उन्होंने बताया कि स्थानीय परिस्थितियों, जैसे कि चट्टानों की बनावट और भूकंपीय गतिविधि के आधार पर उस खाली जगह को बाद में सीमेंट जैसी चीजों से भरा जा सकता है।
वहीं, कोन्या तकनीकी विश्वविद्यालय के प्रोफेसर अरिक ने कहा कि तुर्की के कोन्या बेसिन क्षेत्र में 80 फीसदी से अधिक पानी कृषि में इस्तेमाल होता है। ऐसे में यहां सबसे जरूरी यह है कि भूमिगत जल के अत्यधिक दोहन को नियंत्रित किया जाए, ताकि मिट्टी के नीचे प्राकृतिक सहारा बना रहे। अब वहां के किसान अधिक कुशल सिंचाई तकनीकों का इस्तेमाल करने लगे हैं।
इस क्षेत्र में पानी की कमी से निपटने के लिए, पानी को एक जगह से दूसरी जगह ले जाने की परियोजनाओं को आजमाया गया है, जैसे कि 'ब्लू टनल प्रोजेक्ट।' इस परियोजना के तहत कोन्या के मैदान को भरने के लिए गोकसू नदी से पानी लाया जाता है।
यांग के मुताबिक, सिंकहोल जैसी समस्याओं से बचाव के लिए कुछ अन्य उपाय अपनाए जा सकते हैं। जैसे जल निकासी को नियंत्रित करना, पाइपलाइन लीकेज को ठीक करना और निर्माण से जुड़े सख्त नियम लागू करना।
यांग बताते हैं, "इंजीनियरिंग उपायों से जमीन को स्थिर बनाया जा सकता है। जैसे, जमीन के अंदर खाली जगहों को ग्राउट (सीमेंट जैसी चीजों) से भरना, ढीली मिट्टी को दबाकर मजबूत करना या जमीन को सहारा देने के लिए जियोग्रिड तकनीक का इस्तेमाल करना।"