जर्मनी की प्रमुख विमान कंपनी लुफ्थांसा ने विश्व भर में फैले अपने एयरपोर्ट लाउंजों में 5 को स्थायी रूप से बंद करने का फैसला किया है। इनमें से चार जर्मनी के अंदर है और एक भारत की राजधानी दिल्ली में।
जब कोरोना महामारी की वजह से इस साल के शुरू में विमान सेवाओं को बंद किया गया तो दुनिया भर में बहुत से एयरपोर्टों के साथ वहां एयरलाइंसों के लाउंज भी बंद कर दिए गए। जब लंबे लॉकडाउन के बाद विमान सेवाएं फिर शुरू हुईं तो धीरे-धीरे एयरपोर्ट भी खुले और लाउंजों ने भी काम करना शुरू किया।
लुफ्थांसा ने भी सबसे पहले अपने अंतरराष्ट्रीय हब फ्रैंकफर्ट और म्यूनिख में यात्रियों के लिए अपने लाउंज खोल दिए। गर्मियों में जब विमान परिवहन के फिर से सामान्य होने की उम्मीद की जा रही थी, बहुत से यात्री लाउंजों के खुलने की भी उम्मीद कर रहे थे।
लेकिन लॉकडाउन में ढील दिए जाने के बावजूद पर्यटन उद्योग और उसके साथ ही विमानन उद्योग सामान्य स्थिति में नहीं आया है। लॉकडाउन में महीने में हुए भारी घाटे के कारण ज्यादातर विमान कंपनियां न सिर्फ घाटे में चली गई हैं, उन पर दिवालिया होने और बंद होने का संकट भी मंडरा रहा है।
कोरोना से पहले बहुत सफल कंपनियों में शामिल लुफ्थांसा को भी अरबों की सरकारी मदद लेनी पड़ी है और अभी भी उसकी आर्थिक हालत सामान्य नहीं हुई है। कंपनी उड़ानों में आई भारी कमी से पैदा स्थिति से निबटने के लिए सैकड़ों पायलटों सहित हजारों कर्मचारियों की छंटनी की बात कर रही है। सबसे ज्यादा सीटों वाले ए 380 विमानों की सेवा पूरी तरह बंद कर दी गई है।
वित्तीय कारण हैं लाउंज बंद करने के : जर्मन एयरलाइंस लुफ्थांसा का कुछ लाउंजों को बंद करने का फैसला भी आर्थिक दिक्कतों से उबरने का हिस्सा है। जर्मनी में जिन लाउंजों को बंद किया गया है, उनमें 15 लाख से ज्यादा आबादी वाले इलाके में सेवा देने वाले शहरों कोलोन और बॉन का एयरपोर्ट भी शामिल है। इसके अलावा ड्रेसडेन, लाइपजिग और न्यूरेमबर्ग के एयरपोर्टों पर लाउंज को बंद कर दिया गया है।
लुफ्थांसा ने अपने ग्राहकों को लिखे मेल में कहा है, दूरगामी तौर पर लाउंजों की उच्चस्तरीय क्वॉलिटी को बनाए रखने के लिए कम इस्तेमाल होने वाले लाउंजों को स्थायी तौर पर बंद किया जा रहा है। हालांकि बर्लिन, डुसेलडॉर्फ और हैम्बर्ग के लाउंज खुल गए हैं।
एयरलाइंस अपने लाउंज उन एयरपोर्टों पर चलाते हैं जिसका इस्तेमाल उसके फ्रीक्वेंट फ्लायर और बिजनेस क्लास में सफर करने वाले यात्री करते हैं। लुफ्थांसा साल में 35,000 किलोमीटर सफर करने वाले अपने यात्रियों को फ्रीक्वेंट फ्लायर का दर्जा देता है जबकि 1,00,000 किलोमीटर यात्रा करने वाले यात्रियों को सीनेटर का दर्जा देता है।
ज्यादातर एयरपोर्टों पर वह बिजनेस और सीनेटर लाउंज चलाता है। फ्रैंकफर्ट में उसका फर्स्ट क्लास लाउंज भी है। ये लाउंज नियमित उड़ान भरने वाले यात्रियों के अलावा बिजनेस और फर्स्ट क्लास का महंगा टिकट खरीदने वाले यात्रियों को एयरपोर्ट पर आराम से फ्लाइट का इंतजार करने की सुविधा देते हैं।
दिल्ली के साथ उड़ानों का विवाद : दिल्ली का लाउंज बंद करने का लुफ्थांसा का फैसले ऐसे समय में आया है, जब कोरोना के कारण उसकी भारत की उड़ानें बंद हैं। एयर बबल समझौते के तहत कुछ उड़ाने फिर से शुरू की गई थीं लेकिन भारत ने लुफ्थांसा के अक्टूबर के फ्लाइट प्लान को मंजूरी नहीं दी, जिसकी वजह से लुफ्थांसा ने 20 अक्तूबर तक अपनी भारत की सारी उड़ानें कैंसल कर दी।
भारतीय अधिकारी एयर इंडिया के साथ लेवल प्लेइंग फील्ड की मांग कर रहे हैं। एयर इंडिया की उड़ाने हफ्ते में सिर्फ 4 बार जर्मनी आती हैं, जबकि लुफ्थांसा अक्टूबर में भारत के विभिन्न शहरों के लिए 23 उड़ानों की अनुमति मांग रहा था। अधिकारी लुफ्थांसा को हफ्ते में सिर्फ 7 उड़ानों की अनुमति देने को तैयार थे।
भारत महीनों से जर्मनी की उस सूची पर है, जहां यात्रा पर जाने से चेतावनी दी गई है। भारत ने भी बाहर से आने वाले यात्रियों पर कई तरह के प्रतिबंध लगा रखे हैं। कई एयरलाइंस प्रतिनिधियों का कहना है कि विमानों पर पैसेंजर लोड पर्याप्त नहीं है और इस समय भारत सरकार द्वारा लगाई जाने वाली शर्तें, वहां जाने वाली उड़ानों के घाटे का सौदा बनाती है।
अब नई दिल्ली में लाउंज को स्थायी तौर पर बंद करने के लुफ्थांसा के फैसले को भी इस विवाद के साथ जोड़कर देखा जा सकता है। हालांकि भारत की राष्ट्रीय विमान सेवा एयर इंडिया लुफ्थांसा की पार्टनर है और लुफ्थांसा के यात्री भविष्य में एयर इंडिया के लाउंज का इस्तेमाल कर पाएंगे।
रिपोर्ट : महेश झा