Dharma Sangrah

Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia

चीनी सीमा के पास भारत के बांध बनाने का विरोध क्यों?

पूर्वोत्तर भारत के राज्य अरुणाचल प्रदेश में अपर सियांग बहुउद्देशीय परियोजना का बड़े पैमाने पर विरोध हो रहा है। पर्यावरणविदों ने चेताया है कि यह परियोजना इलाके का पर्यावरण और पारिस्थितिकी संतुलन बिगाड़ सकती है।

Advertiesment
हमें फॉलो करें arunachal pradesh

DW

, रविवार, 15 जून 2025 (08:29 IST)
प्रभाकर मणि तिवारी
अरुणाचल प्रदेश में बड़ी बांध परियोजनाओं के खिलाफ प्रदर्शन और आंदोलन का लंबा इतिहास रहा है। फिर भी सरकार बड़े पैमाने पर ऐसी परियोजनाओं को मंजूरी देती रही है जिनके लिए अक्सर वन और पर्यावरण से संबंधित नियमों में बदलाव भी होते रहे हैं। लेकिन इस बार सियांग परियोजना के खिलाफ प्रदर्शन लगातार तेज हो रहा है।
 
इसमें प्रभावित इलाकों के लोगों के अलावा पर्यावरणविदों का समूह भी शामिल है। उनकी दलील है कि यह परियोजना लोगों को विस्थापित करने के साथ ही उनसे रोजगार छिन लेगी। इसके अलावा सांस्कृतिक विरासत खतरे में पड़ जाएगा और इलाके में होने वाली पारंपरिक खेती भी खत्म हो जाएगी।
 
क्या है यह परियोजना?
सियांग नदी पर प्रस्तावित इस परियोजना से 11 हजार मेगावाट पनबिजली पैदा होने का लक्ष्य रखा गया है। लेकिन सरकार का कहना है कि क्षमता वाली परियोजना का मकसद सिर्फ पनबिजली पैदा करना ही नहीं है। इससे चीन की ओर से अतिरिक्त पानी छोड़े जाने या नदी का मार्ग बदलने की स्थिति में नदियों का प्राकृतिक बहाव बनाए रखते हुए बाढ़ के प्रबंधन में भी मदद मिलेगी।
 
सियांग नदी तिब्बत से निकल कर अरुणाचल में पहुंचती है। तिब्बत में इसे यारलुंग सांगपो कहा जाता है। इस पर बनने वाले बांध भारत का सबसे बड़ा बांध होगा। इस परियोजना को लागू करने का जिम्मा नेशनल हाइड्रोइलेक्ट्रिक पावर कारपोरेशन (एनएचपीसी) को सौंपा गया है।
 
विरोध क्यों?
स्थानीय लोगों का कहना है कि सियांग नदी तटवर्ती इलाकों में विविध किस्म की वनस्पतियों और दुर्लभ जीवों के जरिए पारिस्थितिकी तंत्र बनाए रखने में मदद करती है। लेकिन बांध का जलाशय बड़े इलाके को पानी में डुबो देगा। इससे नदी का प्राकृतिक प्रवाह भी बाधित होगा। स्थानीय आदिवासी इसे अपनी मां मानते हैं। इसके अलावा उनसे आजीविका छिन जाएगी और पुरखों की जमीन से विस्थापित होना पड़ेगा।
 
स्थानीय आदिवासियों के संगठन सियांग इंडीजीनस फार्मर्स फोरम (एसआईएफएफ) के प्रमुख जेजांग डीडब्ल्यू से कहते हैं, "हमने उत्तराखंड और सिक्किम में बांधों से बड़े पैमाने पर होने वाला विनाश देखा है। इस बांध से आस-पास के तमाम गांव डूब जाएंगे और बड़े पैमाने पर लोगों को विस्थापन का शिकार होना पड़ेगा।"
 
इलाके का एक अन्य संगठन ईस्ट सियांग डाउनस्ट्रीम डैम अफेक्टेड पीपुल्स फोरम वर्ष 2017 से ही इस परियोजना का विरोध कर रहा है। उसके एक प्रवक्ता डीडब्ल्यू से कहते हैं, इस परियोजना से सियांग और अपर सियांग जिले के कम से कम 40 गांव प्रभावित होंगे। इनमें से 13 के पूरी तरह पानी में डूब जाने का खतरा है। इससे कम से कम 10 हजार लोगों के समक्ष विस्थापन का खतरा पैदा हो जाएगा।
 
पर्यावरणविदों की चिंता
अब तक स्थानीय आदिवासी और उनके संगठन ही परियोजना का विरोध कर रहे थे। लेकिन अब सौ से ज्यादा वैज्ञानिकों, पर्यावरणविदों औऱ शोधकर्ताओं का एक समूह भी इसके खिलाफ आगे आया है। उन्होंने पारिस्थितिक, सांस्कृतिक और सामाजिक-राजनीतिक खतरों को ध्यान में रखते हुए इस परियोजना से संबंधित तमाम निर्माण कार्यों, सर्वेक्षणों और इससे संबंधित गतिविधियों को तत्काल स्थगित करने की मांग उठाई है।
 
नेशनल एलायंस आफ पीपुल्स मूवमेंट्स समेत देश भर से दो दर्जन से ज्यादा संगठनों ने भी हाल में राज्य सरकार से परियोजना का निर्माण कार्य रोकने औऱ मौके पर तैनात सुरक्षा बलों को हटाने की अपील की थी। यहां इस बात का जिक्र प्रासंगिक है कि परियोजना के विरोध को ध्यान में केंद्र सरकार ने प्रस्तावित इलाके में केंद्रीय सुरक्षा बलों को तैनात किया है।
 
इन संगठनों का कहना है कि चीन से मुकाबले की होड़ में बड़े बांध बनाने की बजाय केंद्र सरकार को उसके साथ पानी के बंटवारे पर न्यायसंगत समझौता करना चाहिए।
 
एक पर्यावरणविद डीके अपांग डीडब्ल्यू से कहते हैं, "प्रस्तावित परियोजना सिस्मिक जोन पांच में स्थित है जो भूकंप के लिहाज से बेहद संवेदनशील है। इससे भूस्खलन औऱ बांध के जलाशय के फटने का खतरा बना रहेगा। इसके साथ ही इस इलाके में बादल फटने औऱ जलवायु परिवर्तन की वजह से पहाड़ियों की मिट्टी खिसकने की घटनाएं भी अक्सर होती रहती हैं। परियोजना पूरी होने के बाद ऐसे खतरे कई गुना बढ़ जाएंगे।"
 
सरकार का रवैया
दूसरी ओर, राज्य सरकार इस समझौते को लागू करने के लिए कृतसंकल्प है। उसने प्रस्तावित इलाके में रहने वाले लोगों से सलाह-मशविरे के बाद ही इस मामले में आगे बढ़ने की बात कही है। इसके साथ ही इलाके के विकास और शिक्षा व स्वास्थ्य जैसी सुविधाएं मुहैया कराने के लिए करीब 350  करोड़ रुपए आवंटित किए गए हैं। हालांकि स्थानीय लोग इस रकम को नाकाफी मानते हैं।
 
मुख्यमंत्री पेमा खांडू डीडब्ल्यू से कहते हैं, "सीमा के सौ किमी के दायरे में चीन जिस तरह बड़े पैमाने पर परियोजनाओं का निर्माण कर रहा है, उसके मुकाबले के लिए यह परियोजना बेहद अहम है। इससे सियांग नदी के बहाव और हर साल आने वाली बाढ़ को नियंत्रित किया जा सकेगा।"
 
सरकार ने परियोजना के प्रस्तावित इलाके में रहने वाले स्थानीय आदी समुदाय के लोगों को भरोसा दिया है कि उनकी भावनाओं, सांस्कृतिक विरासत औऱ पारंपरिक खेती का सम्मान करते हुए गी इस परियोजना का निर्माण किया जाएगा। मुख्यमंत्री का दावा है कि निहित स्वार्थ वाले कुछ लोग और संगठन गलत जानकारी के जरिए स्थानीय लोगों को गुमराह कर रहे हैं। इस परियोजना से इलाके में रोजगार तो पैदा होगा ही, अर्थव्यवस्था को भी मजबूती मिलेगी।
 
अरुणाचल प्रदेश से सांसद और केंद्र में संसदीय कार्य मंत्री किरेन रिजिजू भी इसे सामरिक महत्व और राष्ट्रीय हित की परियोजना बताते हैं। उन्होंने पत्रकारों से बातचीत में कहा, "चीन के पास नदियों का मार्ग बदलने की तकनीकी क्षमता है। लेकिन इस परियोजना के पूरा होने की स्थिति में वो नदी का रास्ता या बहाव नहीं बदल सकता है। इससे अरुणाचल के साथ ही असम और बांग्लादेश में आने वाली बाढ़ को नियंत्रित किया जा सकता है।"
 
लेकिन सरकार की सफाई और दावों के बावजूद पर्यावरणविदों में इस मुद्दे पर गहरी चिंता है। एक पर्यावरणविद प्रोफेसर सुशांत गोगोई डीडब्ल्यू से कहते हैं, "ऐसी किसी परियोजना से पहले हमें नाजुक हिमालयी पारिस्थितिकी तंत्र का ध्यान रखना होगा। हमें एक संतुलित नजरिया अपनाते हुए एक-दूसरे के मुकाबले बड़े बांधों के निर्माण की बजाय सामुदायिक सहमति, पारिस्थितिक स्थिरता और क्षेत्रीय सहयोग को प्राथमिकता देनी होगी।"

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

पाकिस्तान और ईरान से लौटाए जा रहे अफगानों की आपबीती