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ईरान में औरतों के पर्दे में रहने पर इतना जोर क्यों?

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DW

, सोमवार, 28 दिसंबर 2020 (16:15 IST)
रिपोर्ट कैर्स्टन क्निप
 
ईरान की महिलाओं को घर से बाहर अपना सिर ढंका रखना पड़ता है। हाल में एक टीवी कार्यक्रम में जब बिना हिजाब पहने महिला दिखी तो अधिकारियों ने उसके प्रोड्यूसर पर प्रतिबंध लगा दिया। ईरान में औरतों का पर्दा इतना जरूरी क्यों है?
 
पश्चिमी ईरान के शहर करमानशाह के अभियोजक शहराम करामी के लिए किसी महिला का टीवी विज्ञापन में अपने बाल दिखाना अनैतिक है। उन्हें जैसे ही इसका पता चला, उन्होंने तुरंत सुरक्षा और न्याय प्रशासन के अधिकारियों को आदेश दिया कि वो इस वीडियो को बनाने और दिखाने में शामिल सभी लोगों पर कार्रवाई करें। ईरानी भाषा के अमेरिकी प्रसारक रेडियो फार्दा ने खबर दी है कि उसके बाद 4 लोगों को इस वीडियो क्लिप के सिलसिले में पकड़ा गया है।
 
ये गिरफ्तारियां बता रही हैं कि ईरान की सत्ता देश की महिलाओं के लिए कठोर रूढ़िवादी वेशभूषा लागू करने पर किस तरह आमादा है। सरकार के नजरिए से देखें तो इस तरह के नियमों का पालन ईरान के अस्तित्व के लिए जरूरी है। 1979 की इस्लामिक क्रांति के बाद आखिर समाज में महिलाओं की भूमिका ईरानी राष्ट्र की विचारधारा का एक मजबूत स्तंभ है।
 
ईरानी महिलाओं के बारे में खोमैनी की राय
 
ईरान की इस्लामी क्रांति के नेता अयातोल्लाह रुहोल्ला खोमैनी ने इस बात पर जोर दिया था कि महिलाएं शालीन कपड़े पहनें। 1979 में उन्होंने इटली के पत्रकार ओरियाना फलाची से कहा था कि क्रांति में उन महिलाओं ने योगदान दिया था या है, जो महिलाएं शालीन कपड़े पहनती हैं। ये नखरेबाज औरतें जो मेकअप करती हैं और अपनी गर्दन, बाल और शरीर की सड़कों पर नुमाइश करती हैं, उन्होंने शाह के खिलाफ लड़ाई नहीं लड़ी। उन्होंने कुछ भी सही नहीं किया। वो नहीं जानतीं कि कैसे उपयोगी हुआ जाए, ना समाज के लिए, ना राजनीतिक रूप से या व्यावसायिक रूप से। इसके पीछे कारण ये है कि वे लोगों के सामने अपनी नुमाइश कर उनका ध्यान भटकाती हैं और उन्हें नाराज करती हैं।
 
बहुत जल्दी ही यह साफ हो गया कि ईरान के क्रांतिकारी एक कठोर रूढ़िवादी सामाजिक व्यवस्था कायम करना चाहते थे। इसके लिए उन्होंने पारिवारिक मामलों के लिए धर्मनिरपेक्ष अदालत जैसे कदमों को पलट दिया। इसकी बजाय इसे ईरान के धार्मिक नेता का एक और विशेषाधिकार बना दिया गया।
 
महिला अधिकार और ईरानी क्रांति
 
राजनीति विज्ञानी नेगार मोताहेदेह ने डीडब्ल्यू से कहा कि बहुत सारी महिलाएं इसे खारिज करती हैं। मोताहेदेह की नई किताब 'व्हिस्पर टेल्स' अमेरिकी पत्रकार और नारीवादी कार्यकर्ता केट मिलेट को ईरान में हुए अनुभवों पर लिखी गई है। केट मिलेट ने 1979 की क्रांति के तुरंत बाद ईरान का दौरा किया था। इस किताब में महिला वकील, छात्र और कार्यकर्ता कैसे मिलकर अपने अधिकारों पर चर्चा करते हैं, इसका ब्योरा है। इस किताब में मोताहेदेह एक जगह क्रांति के बाद महिलाओं के अभियान के एक नारे का जिक्र करती हैं कि हमने क्रांति एक कदम पीछे जाने के लिए नहीं की है।
 
खोमैनी और उनके समर्थकों ने हालांकि महिला अधिकारों का कम ही ख्याल किया। उनके दिमाग में महिलाओं की छवि पश्चिम की उदार और समर्थ महिलाओं से बिलकुल उल्टी है। क्रांतिकारी ईरान को ना सिर्फ अमेरिका के राजनीतिक और आर्थिक प्रभाव से मुक्त करना चाहते थे बल्कि इलाके की इस्लामी संस्कृति को भी बढ़ावा देना चाहते थे।
 
पर्दा उनकी इसी नई-पुरानी व्यवस्था की पहचान बन गया, जो ईरान के सोच-समझकर अपनाए गए पश्चिम विरोधी तौर तरीकों का प्रतीक है। अमेरिकी राजनीति विज्ञानी हमिदेह सेदगी ने 2007 में अपनी रिपोर्ट 'वूमेन एंड पॉलिटिक्स इन ईरान : वेलिंग, अनवेलिंग एंड रिवेलिंग' में लिखा है कि इस्लामी क्रांति एक लैंगिक प्रतिक्रांति के रूप में विकसित हुआ, महिलाओं की सेक्सुअलिटी पर हुई जंग के रूप में। वास्तव में सेक्सुअलिटी एक गंभीर राजनीतिक मुद्दा बन गया जिसका लक्ष्य पश्चिम का कड़ा विरोध था। 1979 में जो नारे गूंज रहे थे, उनमें से एक था कि हिजाब पहनो नहीं तो हम सिर पर मुक्का मारेंगे, दूसरा नारा था कि गैरहिजाबी मुर्दाबाद।
 
शरीर पर राजनीति
 
खोमैनी ने 1979 के वसंत से ही औरतों से हिजाब पहनने के लिए कहने की शुरुआत कर दी। 1983 में संसद ने तय किया कि जो महिलाएं सार्वजनिक जगहों पर अपना सिर ढंककर नहीं रखेंगी, उन्हें 74 कोड़ों की मार पड़ेगी। 1995 में यह तय हुआ कि गैरहिजाबी महिलाओं को 60 दिनों के जेल की सजा भी हो सकती है। जिन ईरानी महिलाओं ने इन नियमों को तोड़ा, उन्हें 'पश्चिमी फूहड़ औरत' कहा गया। ईरानी औरतों के आदर्श स्वरूप को इस तरह प्रचारित और लागू किया गया जिससे कि यह एक सामाजिक नियम बन जाए। नेगार मोताहदेह कहती हैं कि सलीके के कपड़े पहनने वाली महिला जिसे सत्ता ने नियम के रूप में स्थापित किया, वह ईरानी धार्मिक जीवन, सरकार और समाज की वाहक बन गई।
 
बड़ी संख्या में ईरानी मर्द और औरतें हालांकि इस विचारधारा को खारिज करते हैं जिसे ईरान के धार्मिक नेताओं ने थोपा है। मोताहेदेह कहती हैं कि महिलाएं ड्रेसकोड का ध्यान नहीं रखकर विरोध कर रही हैं। वे दिखा रही हैं कि वो अपने शरीर पर अपना नियंत्रण चाहती हैं। वो तय कर रही हैं कि बाल का डिजाइन कैसा हो या वे उंगलियों के नाखून को रंगें या नहीं, यह उनकी मर्जी है। मोताहेदेह का कहना है कि ईरानी औरतें विरोध के अपने तरीके निकाल रही हैं और इस तरह से सत्ता को प्रतिक्रिया जताने के लिए मजबूर कर रही हैं। उनके मुताबिक इसके नतीजे में ईरानी औरतों को उकसावा मिल रहा है। महिलाओं के शरीर के इर्द-गिर्द की राजनीति हमेशा से बदलती रही है।

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