बिहार: आखिर क्यों पुलिस को टारगेट कर रही पब्लिक
बिहार में पुलिस पर हमले की घटनाएं लगातार बढ़ती जा रही हैं। बीते दिनों ऐसी कई घटनाओं में दो एएसआई की जान चली गई, जबकि कई अन्य घायल हो गए।
मनीष कुमार, पटना
कई जगहों पर पुलिस की टीम पर पथराव किए गए, जवानों की वर्दियां फाड़ दी गईं और महिला पुलिसकर्मियों से दुर्व्यवहार किया गया। किसी तरह भागकर पुलिस वालों ने अपनी जान बचाई। इन घटनाओं के बाद सियासत तो तेज हो ही गई है, इस बात पर भी बहस हो रही कि क्या पुलिस का असर खत्म होता जा रहा है या फिर पुलिसकर्मियों की कम संख्या देख उपद्रवियों का मनोबल बढ़ जाता है। अधिकतर घटनाओं में पुलिस विवाद की सूचना पर उसे सुलझाने पहुंची थी।
सभी मामलों की जानकारी पुलिस को आपातकालीन प्रतिक्रिया सहायता प्रणाली (ईआरएसएस) के डायल-112 पर दी गई थी। इस नंबर पर कॉल आने के बाद समय बर्बाद नहीं करने का निर्देश है। जैसे ही कोई सूचना मिलती है डायल-112 की टीम घटनास्थल की ओर प्रस्थान कर जाती है और मौके पर पहुंच कर मामले को सुलझाती है।
आवश्यकतानुसार पीछे से स्थानीय थाने की पुलिस भी वहां पहुंचती है। डायल-112 की टीम में अमूमन तीन-चार पुलिसकर्मी ही होते हैं। इधर, हमले की घटनाओं पर राज्य सरकार ने कड़ा रुख अख्तियार किया है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने साफ कहा है कि अपराधी चाहे कोई भी हो, उसे बख्शा नहीं जाएगा।
क्या कहते हैं अधिकारी और जानकार
हमले की बढ़ती घटनाओं पर एक वरीय प्रशासनिक अधिकारी कहते हैं, पुलिस पर अधिकतर हमले शराब से संबंधित मामलों में किए जा रहे। इसकी वजह है शराब के अवैध कारोबार से आपराधिक प्रवृति के लोगों का जुड़ा होना। और फिर जब पुलिस की पिटाई का एक जगह का वीडियो वायरल होता है तो आमजन में इसका नकारात्मक संदेश जाता है और अंतत: इससे पुलिस का खौफ कम होता है।''
राजनीतिक समीक्षक एके चौधरी हमले की वजह पुलिस महकमे में व्याप्त भ्रष्टाचार और दोषियों को सख्त सजा नहीं मिलने को मानते हैं। वे कहते हैं, क्या वाकई किसी आमजन को पुलिस पर भरोसा रह गया है। लोगों में यह आम धारणा है कि पैसा लिए बिना पुलिस कोई काम नहीं करती। शराबबंदी के पूर्णत: लागू नहीं होने में इनकी भूमिका को कौन नहीं जानता। शरीफ आदमी आज भी थाना जाने से परहेज करता है। कई मौकों पर यही आक्रोश विस्फोटक रूप ले लेता है।''
फिर हमले की घटना के बाद वीडियो फुटेज की जांच और कुछ जगहों पर छापेमारी के बाद मामला ठंडे बस्ते में चला जाता है। समय सीमा के अंदर कोर्ट में मजबूती से पक्ष नहीं रखने की वजह से दोषी को राहत मिल जाती है। इससे दूसरे का मनोबल बढ़ता है और पुलिस का कथित रुतबा कुंद होता चला जाता है।
30 मीटर तक एएसआई को घसीटा
मुंगेर जिले में 14 मार्च की रात एसआई संतोष कुमार सिंह एक सिपाही के साथ बाइक से नंदलालपुर गांव में एक शराबी परिवार द्वारा उपद्रव व पड़ोसी के साथ विवाद किए जाने की सूचना पर मौके पर पहुंचे थे। इसी बीच शराब के नशे में हंगामा कर रहे रणवीर यादव और उसके परिजनों ने उनके सिर पर रॉड से प्रहार कर दिया। वे बेहोश हो गए। इसके बाद आरोपी खून से सने एएसआई के शरीर को 30-40 मीटर तक घसीट कर पड़ोसी के दरवाजे के पास तक ले गया। मंशा थी कि हत्या का आरोप पड़ोसी पर लगे। इलाज के दौरान एएसआई की मौत हो गई।
होली के दिन शुक्रवार को ही मुजफ्फरपुर के जजुआर में शराब के धंधेबाजों ने छापेमारी करने पहुंची पुलिस टीम पर हमला कर दिया। पुलिस वहां से जान बचाकर भागी। तब सैकड़ों की संख्या में पुरुषों और महिलाओं ने दो किलोमीटर तक पीछा कर अंतत: थाने पर पथराव शुरू कर दिया। महिलाओं ने भी लाठी-डंडा ले रखा था। इस घटना में एक सिपाही का सिर फट गया तथा थानेदार को भी चोट आई। थाने के मेन गेट को बंद करने के बाद पांच राउंड हवाई फायरिंग कर पुलिसकर्मियों ने अपनी जान बचाई।
पुलिस पर हमले की अन्य घटनाएं भागलपुर, दरभंगा जिले के कमतौल, समस्तीपुर, सोनपुर, सारण, मधुबनी, जहानाबाद, नवादा, औरंगाबाद और पटना जिले में भी हुईं। कई जगह आत्मरक्षा के लिए पुलिस को कई राउंड हवाई फायरिंग करनी पड़ी। इन घटनाओं से इतर होली के पहले 12 मार्च की रात केवल अररिया जिले में हुई घटना ही ऐसी थी, जिसमें एक इनपुट पर फुलकाहा थाने की पुलिस शादी समारोह में पहुंचे वांछित अपराधी अनमोल यादव को गिरफ्तार करने गई थी। उसे गिरफ्तार भी कर लिया गया, किंतु इसके बाद उसके समर्थकों ने उसे छुड़ाने के लिए पुलिसकर्मियों से धक्का-मुक्की और मारपीट शुरू कर दी।
इसी दौरान किसी ने एएसआई राजीव रंजन को धक्का दे दिया। वे गिरे और अचेत हो गए। उन्हें अस्पताल ले जाया गया, जहां चिकित्सकों ने मृत घोषित कर दिया। गया जिले के खिजरसराय थाना में तो हद ही हो गई। यहां दो पक्ष की महिलाएं आपस में भिड़ गईं। एक दारोगा बीच-बचाव करने लगे को उन पर ही महिलाओं ने हमला कर दिया। थाना परिसर में ही पुलिसकर्मियों के साथ मारपीट होने लगी।
14 मिनट के करीब रहा पुलिस का रिस्पांस टाइम
राज्य पुलिस मुख्यालय के अपर पुलिस महानिदेशक (एडीजी) कुंदन कृष्णन ने सोमवार को प्रेसवार्ता कर इन मामलों पर स्थिति स्पष्ट की। हमले से संबंधित एक सवाल पर उनका कहना था कि 14 मार्च को डायल-112 पर 67,188 कॉल रिसीव की गई। पुलिस की टीम 13,150 जगहों पर गई, वहीं 15 मार्च को 56,851 कॉल रिसीव हुई, जिनमें 9,744 मामलों में कार्रवाई की गई। जिनमें 10-12 जगहों पर हमले किए गए। इस दौरान पुलिस का औसत रिस्पांस टाइम क्रमश: 14 मिनट 34 सेकेंड और 14 मिनट 52 सेकेंड रहा।
एडीजी का भी मानना है कि डायल-112 के वाहनों पर तैनात पुलिसकर्मियों की संख्या बढ़ाने की जरूरत है। वे कहते हैं, लोगों की शिकायत पर सबसे पहले डायल-112 की टीम ही घटनास्थल पर पहुंचती है। ऐसे डायल-112 की भी समीक्षा की जाएगी और पुलिसकर्मियों की संख्या बढ़ाई जाएगी।''
विपक्ष ने किया हंगामा, सत्ता पक्ष ने कहा- योगी मॉडल लागू होगा
बिहार विधानमंडल के चल रहे सत्र में सोमवार को सदन के अंदर तथा बाहर विपक्षी सदस्यों ने जमकर प्रदर्शन किया। बिहार विधानसभा में विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव ने कहा, पुलिस अपराधियों के हमले का शिकार हो रही है। एएसआई तक की हत्या कर दी जा रही है, लेकिन मुख्यमंत्री इस पर एक शब्द नहीं बोलते हैं। इनके 20 साल के शासनकाल में अब तक 60 हजार हत्याएं हुई हैं। 25 हजार से अधिक दुष्कर्म के मामले हुए हैं। सबसे ज्यादा पुलिसकर्मियों की हत्याएं हुई हैं। इन सबों के लिए भी क्या लालू प्रसाद ही दोषी ठहराए जाएंगे।''
सत्ता पक्ष ने भी विपक्ष को करारा जवाब दिया। बीजेपी के विधायक हरिभूषण ठाकुर 'बचौल' का तो कहना था कि बिहार में यूपी का योगी मॉडल लागू होगा। जरूरत पड़ी तो एनकाउंटर भी किए जाएंगे। इससे पहले उप-मुख्यमंत्री विजय कुमार सिन्हा ने भी कहा था, पुलिस-प्रशासन पर कोई हमला नहीं कर सकता है। जिस भाषा में अपराधी समझता है, उसे उसी भाषा में समझाएं। एनकाउंटर की जरूरत है तो इसके लिए सरकार से खुली छूट है।''
इसमें कोई दो राय नहीं कि बिहार सरकार पुलिस को संसाधनों एवं अत्याधुनिक टेक्नोलॉजी से अपडेट करने का लगातार प्रयास कर रही है, किंतु हमले की बढ़ती घटनाएं कहीं न कहीं आमजन में पुलिस की छवि एवं कार्यप्रणाली पर भी प्रश्नचिन्ह खड़े कर ही रही हैं। साथ ही इन वारदातों ये भी झलक चल रहा है कि बिहार में समाज का एक हिस्सा किस कदर हिंसा पर उतर आता है।