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नीतीश ने महिलाओं को क्यों नहीं दिया कैश ट्रांसफर का ऑफर

जातिवाद, भाई भतीजावाद, भ्रष्टाचार और अपराध के लिए बदनाम रहे बिहार में एक नारी क्रांति करवट ले रही है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को अपनी इन योजनाओं का चुनाव में कितना लाभ मिल सकेगा?

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DW

, गुरुवार, 13 मार्च 2025 (07:56 IST)
मनीष कुमार
नीतीश सरकार ने 2025-26 के लिए 3,16,895 करोड़ रुपये का बजट बिहार विधानसभा में पेश किया है। चुनावी साल में उम्मीद की जा रही थी कि महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, कर्नाटक या फिर झारखंड जैसे राज्यों की तरह ही नीतीश सरकार जीत की गारंटी के लिए महिलाओं के खाते में कैश ट्रांसफर की किसी योजना की घोषणा करेगी। लेकिन, ऐसा नहीं हुआ, जबकि लाडली बहना या फिर मइयां सम्मान योजना जैसी स्कीम संबंधित राज्यों में गेम चेंजर साबित हुई हैं। राज्य के वित्तमंत्री सम्राट चौधरी ने 40 मिनट के बजट भाषण में 52 नई घोषणाएं कीं, जिनमें न तो रेवड़ियों की बरसात की गई और न ही एक बार भी मुफ्त शब्द का जिक्र हुआ। यह भी तब, जब एनडीए की प्रतिद्वंदी आरजेडी ने इसे मुद्दा बनाते हुए अपनी सरकार आने पर माई-बहिन मान योजना के तहत प्रतिमाह 2,500 रुपये महिलाओं के खाते में देने की घोषणा पहले से ही कर रखी है।
 
नीतीश सरकार के इस बजट में वैसे तो समाज के सभी वर्गों को साधने की कोशिश की गई है, किंतु महिलाओं, किसानों और युवाओं पर विशेष फोकस किया गया है। इस बार जो नई घोषणाएं की गईं हैं, उनमें 12 नितांत आधी आबादी के लिए है। सर्वाधिक 60,974 करोड़ रुपये का खर्च शिक्षा पर किया जाएगा, जो बजट की कुल राशि का 19.24 प्रतिशत है। इसके बाद स्वास्थ्य व सड़क के लिए क्रमश: 20,335 तथा 17,908 करोड़ की राशि का प्रावधान किया गया है। मौजूदा वर्ष से अगले साल का बजट आकार भी बढ़ाया गया है। यह पिछले साल की तुलना में 38,000 करोड़ रुपये अधिक है।
 
आधी आबादी के लिए चल रहीं कई योजनाएं
नीतीश सरकार का मानना है कि जब महिलाएं पुरुषों की तरह ही सशक्त-समर्थ होंगी, तभी प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि होगी और विकास की रफ्तार भी बनी रहेगी। महिलाओं के समग्र विकास तथा सशक्तिकरण के लिए पहले से ही राज्य में कई योजनाएं चलाई जा रहीं हैं, जिनकी वजह से जहां वे पहले घर की दहलीज से बाहर निकलने में झिझकती थीं, वहीं आज राज्य में विकास में सक्रिय भागीदारी निभा रही हैं, नीतियों के निर्माण में भी उनकी सहभागिता बढ़ी है। साइकिल-पोशाक, छात्रवृत्ति योजना के तहत प्रोत्साहन राशि ने तो स्कूली शिक्षा की तस्वीर ही बदल कर रख दी। उनके लिए सरकारी नौकरियों में 35 फीसद तक आरक्षण की व्यवस्था की गई। यही वजह है कि आज बिहार पुलिस में 30,000 महिलाएं हैं। यह संख्या देश के किसी भी राज्य से अधिक है।
 
महिलाओं की नेतृत्व क्षमता पर भरोसा जताते हुए सत्ता में आने के बाद नीतीश सरकार ने उन्हें पहले पंचायत और नगर निकायों के चुनाव में 50 प्रतिशत आरक्षण दिया। 2006 में वर्ल्ड बैंक से कर्ज लेकर महिलाओं के लिए स्वयं सहायता समूह का गठन किया गया, जिसे बाद में जीविका का नाम दिया गया। इस समय जीविका दीदियों की संख्या एक करोड़ 38 लाख है। जो स्वरोजगार के जरिए समृद्धि की राह पर अग्रसर हैं।

बिहार में सामाजिक सुरक्षा योजना के तहत कुछ शर्तों पर महिलाओं को प्रतिमाह 4,000 रुपये की आर्थिक मदद दी जाती है। यह योजना उन महिलाओं के लिए हैं, जिनके पति का या तो निधन हो चुका है या वे तलाकशुदा हैं। इस योजना का लाभ उन बच्चों को भी मिलता है, जिनके माता-पिता नहीं हैं। तलाकशुदा मुस्लिम महिलाओं को भी एकमुश्त 25,000 रुपये की सहायता दी जा रही है।
 
महिलाओं के लिए पिंक बस सर्विस व पिंक टॉयलेट
नए बजट में भी महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने तथा उनके जीवन स्तर को सुधारने के लिए कई अहम घोषणाएं की गई हैं। बिहार स्टेट रोड ट्रांसपोर्ट कारपोरेशन में ड्राइवर, कंडक्टर और डिपो मेंटनेंस स्टॉफ की नौकरी में महिलाओं के लिए 33 फीसद आरक्षण की व्यवस्था की गई है। स्वरोजगार को बढ़ावा देने के उद्देश्य से महिला ड्राइवरों को ई-रिक्शा या दोपहिया वाहन की खरीद पर सब्सिडी देने का प्रावधान किया गया है। शहरों में कामकाजी महिलाओं के लिए हॉस्टल बनाए जाएंगे।

पटना में महिला हाट की स्थापना के साथ ही सभी प्रमुख शहरों में वेंडिंग जोन में महिलाओं को जगह दी जाएगी। महिलाओं को पर्यटन गाइड के रूप में प्रशिक्षित किया जाएगा, ताकि इस क्षेत्र में भी उनके लिए रोजगार के अवसर उपलब्ध हो सके। सभी प्रमुख शहरों में पिंक बस सर्विस की शुरुआत की जाएगी, जिसमें सवारी, ड्राइवर और कंडक्टर भी महिलाएं ही होंगी। इसके साथ ही महिला वाहन परिचालन प्रशिक्षण केंद्र खोले जाएंगे, जिनमें ट्रेनर भी महिलाएं ही होंगी।
 
महिला पुलिसकर्मियों की बड़ी संख्या को देखते हुए उनके रहने के लिए सरकार किराये पर मकान लेगी। ये आवास थानों के आसपास लिए जाएंगे। सभी शहरों में महिलाओं के लिए प्रमुख बाजार, चौक-चौराहों व स्टेशन के आसपास पिंक टॉयलेट बनाए जाएंगे। स्पेशल जिम भी खोले जाएगें, जहां महिलाएं ही ट्रेनर रहेंगी। प्रत्येक पंचायतों में कन्याओं के विवाह के लिए विवाह मंडप बनाने का प्रस्ताव है, जहां कम शुल्क पर सभी तरह की सुविधाएं उपलब्ध होंगी।

गृहिणी अल्पना शरण कहती हैं, ‘‘इस बजट में रसोई के लिए कुछ नहीं किया गया। एक बार महंगाई बढ़ जाती है तो कम होने का नाम नहीं लेती है। लेकिन हां, पिंक बस से महिलाएं सुरक्षित आ-जा सकेंगी।'' वहीं, संध्या सिन्हा का कहना है, ‘‘महिला हाट खुलने से स्व-रोजगार का मार्ग प्रशस्त होगा। जिन महिलाओं में हुनर है, वे इसके जरिए अपना रोजगार शुरू कर आगे बढ़ सकेंगी।''
 
बिहार काउंसिल ऑफ वीमेन की अध्यक्ष सुनीता प्रकाश कहती हैं, ‘‘रोड ट्रांसपोर्ट कारपोरेशन में महिलाओं को 33 प्रतिशत आरक्षण, पिंक बस सर्विस और महिलाओं के लिए हॉस्टल की पहल सराहनीय है।'' जबकि, बिहार महिला उद्योग संघ की अध्यक्ष उषा झा का कहना है, ‘‘बजट से साफ है कि यह महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने वाला बजट है। घरेलू महिलाओं के लिए भी कुछ खास होना चाहिए था।''
 
रेवड़ी नहीं, महिला सशक्तिकरण पर जोर
बिहार में महागठबंधन का संभावित मुख्यमंत्री चेहरा और आरजेडी के वरिष्ठ नेता एक ओर जहां रेवड़ी की राजनीति के तहत वादों की राजनीति कर रहे, वहीं एनडीए सरकार के मुखिया नीतीश कुमार अपने संकल्पों से राजनीति की नई लकीर खींचने की जुगत में हैं। शायद इसलिए राज्य के बजट में किसी भी वर्ग के लिए लोकलुभावन घोषणाएं नहीं की गईं। संभव है कि चुनाव तक उनकी सरकार के द्वारा भी कुछ घोषणाएं की जाएं, किंतु इसमें दो राय नहीं कि नीतीश रेवड़ी पॉलिटिक्स से दूर रहते हैं। यही वजह है कि जब वे इंडिया अलायंस का हिस्सा थे, तब भी उन्होंने दिल्ली में मुफ्त बिजली देने की अरविंद केजरीवाल की घोषणा को बेमतलब कहा था।
 
पत्रकार अमित पांडेय कहते हैं, ‘‘नए बजट की घोषणाएं साफ इशारा कर रही कि वे महिलाओं को सशक्त, समर्थ और आत्मनिर्भर बनाना चाहते हैं, ताकि उनका समेकित विकास हो सके। वे समावेशी विकास, अपराध व भ्रष्टाचार मुक्त समाज तथा सेक्युलरिज्म को ही मुद्दा बनाना चाहते हैं।''
 
बिहार में चार करोड़ पुरुष तथा 3.6 करोड़ महिला मतदाता हैं। आंकड़े बताते हैं कि वोटिंग में महिलाएं पुरुषों से आगे रहती हैं। 2020 को ही देखें तो 59.7 फीसद महिलाओं ने तो 54.7 प्रतिशत पुरुषों ने वोट डाले थे। पॉलिटिकल साइंस की रिटायर्ड लेक्चरर मधुलिका कहती हैं, ‘‘इसमें कोई दो राय नहीं कि राज्य में शराबबंदी लागू करने से लेकर महिलाओं से संबंधित कई योजनाओं के कारण महिलाएं नीतीश कुमार के साथ हैं। वे भी इस बड़े वोट बैंक को साधने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ते।''
 
जिस तरह से कैश ट्रांसफर की योजनाओं ने कई राज्यों में पासा पलटा है और यहां तेजस्वी यादव माई-बहिन मान योजना, दो सौ यूनिट मुफ्त बिजली व शत-प्रतिशत डोमिसाइल नीति की जोरदार चर्चा कर रहे, उसे देखते हुए नीतीश सरकार मुफ्तखोरी योजनाओं की घोषणा से परहेज कर सकेगी, यह तो समय ही बताएगा। लेकिन, इतना तय है कि वे घोषणाएं महिलाओं से ही संबंधित होंगी। यही वजह है कि अपनी प्रगति यात्रा के दौरान नीतीश जीविका दीदियों से खास तौर पर मुखातिब रहे। उनसे ही पूछा, बताइए क्या करना है, जो जरूरत है उसे पूरा किया जाएगा।
 
राजनीतिक समीक्षक अरुण कुमार चौधरी कहते हैं, ‘‘2020 में एनडीए को महिलाओं का 41 प्रतिशत तो महागठबंधन को 31 प्रतिशत वोट मिला था। नीतीश कुमार हर हाल में दस फीसद वाले लीड को बनाए रखने की पूरी कोशिश करेंगे। वे किसी तरह का रिस्क तो नहीं ही लेंगे। वहीं, तेजस्वी भी कह रहे कि नाक रगड़वा कर महिलाओं को आर्थिक न्याय दिलवाएंगे।''

एनडीए के एक वरिष्ठ नेता का भी कहना था, ‘‘तेजस्वी ने झारखंड की तरह ही माई-बहिन मान योजना तथा मुफ्त बिजली की घोषणा को मुद्दा बना ही दिया है। खाते में सीधे कैश का ट्रांसफर होना मायने तो रखता ही है। पहले की योजनाओं के सहारे ओवर कॉन्फिडेंस में रहना इस चुनाव में घातक ही साबित होगा।शहरी महिलाओं को पिंक बस और पिंक टॉयलेट लुभा सकता है, लेकिन गरीब-गुरबों को तो नकदी ही लुभाएगी। इसकी काट तो करनी ही होगी।''
 

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