History of Balochistan struggle: बलूचिस्तान के दक्षिण-पूर्वी हिस्से पर ईरान, दक्षिण-पश्चिमी हिस्से पर अफगानिस्तान और पश्चिमी भाग पर पाकिस्तान ने कब्जा कर रखा है। सबसे बड़ा हिस्सा पाकिस्तान के कब्जे में है। प्राकृतिक संसाधनों से भरपूर इस संपूर्ण क्षेत्र में यूरेनियम, गैस और तेल के भंडार पाए गए हैं। आओ जानते हैं बलूचिस्तान पर पाकिस्तानी कब्जे की कहानी।
बलूचिस्तान पर अंग्रेजों का कब्जा: प्रथम अफगान युद्ध (1839-42) के बाद अंग्रेंजों ने इस क्षेत्र पर अधिकार जमा लिया। 1869 में अंग्रेजों ने कलात के खानों और बलूचिस्तान के सरदारों के बीच झगड़े की मध्यस्थता की। वर्ष 1876 में रॉबर्ट सैंडमेन को बलूचिस्तान का ब्रिटिश एजेंट नियुक्त किया गया और 1887 तक इसके ज्यादातर इलाके ब्रिटिश साम्राज्य के अधीन आ गए। अंग्रेजों ने बलूचिस्तान को 4 रियासतों में बांट दिया- कलात, मकरान, लस बेला और खारन।
बलूचिस्तान का अंग्रेजों से आजादी का संघर्ष: 20वीं सदी में बलूचों ने अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष छेड़ दिया। इसके लिए 1941 में राष्ट्रवादी संगठन अंजुमान-ए-इत्तेहाद-ए-बलूचिस्तान का गठन हुआ। वर्ष 1944 में जनरल मनी ने बलूचिस्तान की स्वतंत्रता का स्पष्ट विचार रखा। इधर, आजम जान को कलात का खान घोषित किया गया। लेकिन आजम जान खान सरदारों से जा मिला। उसकी जगह नियुक्त उसका उत्तराधिकारी मीर अहमद यार खान अंजुमन के प्रति तो वह अपना समर्थन व्यक्त करता था, लेकिन वह अंग्रेजों से रिश्ते तोड़ कर बगावत के पक्ष में नहीं था। यही कारण था कि बाद में अंजुमन को कलात स्टेट नेशनल पार्टी में बदल दिया गया।
आजम जान खान ने इस पार्टी को 1939 में गैरकानूनी घोषित कर दिया। ऐसे में पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओं को पकड़ लिया गया या उन्हें निर्वासन झेलना पड़ा। 1939 में अंग्रेजों की राजनीति के तहत बलूचों की मुस्लिम लीग पार्टी का जन्म हुआ, जो हिन्दुस्तान के मुस्लिम लीग से जा मिली। दूसरी ओर एक ओर नई पार्टी अंजुमन-ए-वतन का जन्म हुआ जो भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के साथ जुड़ गई। अंजुमन के कांग्रेस के साथ इस जुड़ाव में खान अब्दुल गफ्फार खान की भूमिका अहम थी। मीर यार खान ने स्थानीय मुस्लिम लीग और राष्ट्रीय मुस्लिम लीग दोनों को भारी वित्तीय मदद दी और मुहम्मद अली जिन्ना को कलात राज्य का कानूनी सलाहकार बना लिया।
भारत विभाजन के समय बलूचों की इच्छा थी स्वतंत्र रहना:
अंग्रेजकाल में कुछ संधियों के तहत कुछ रियासतें ऐसी थी जिन पर ब्रिटिश सम्राज्य का सीधा शासन नहीं था। ऐसी रियासतें अपने आंतरिक फैसले लेने के लिए स्वतंत्र थी। इन रियासतों को ये अधिकार था कि वे भारत और पाकिस्तान दोनों में से किसी भी देश के साथ विलय कर सकती है या फिर स्वयं को स्वतंत्र राष्ट्र घोषित कर सकते हैं। उस वक्त भारत, अफगानिस्तान और ईरान के हवाले से बलूचिस्तान के लिए यह बहस की गई थी कि आप भारत के साथ रहना चाहेंगे, ईरान के साथ रहना चाहेंगे, अफगानिस्तान के साथ रहना चाहेंगे या कि आजाद रहना चाहेंगे। उस दौरान पाकिस्तान के साथ विलय के लिए किसी भी प्रकार का करार पास नहीं हुआ था। तब यह समझाया गया था कि इस्लाम के नाम से बलूच पाकिस्तान के साथ विलय कर लें। लेकिन तब बलूचों ने यह यह मसला उठाया कि अफगानिस्तान और ईरान भी तो इस्लामिक मुल्क है तो उनके साथ क्यों नहीं विलय किया जाए? हम पाकिस्तान के साथ ही क्यों रहें, जबकि उनकी और हमारी भाषा, पहनावा और संस्कृति उनसे जुदा है।अंत में यह निर्णय हुआ कि बलूच एक आजाद मुल्क बनेगा। कलात के खान ने बलूची जनमानस की नुमाइंदगी करते हुए बलूचिस्तान का पाकिस्तान में विलय करने से साफ इंकार कर दिया था। यह पाकिस्तान के लिए असहनीय स्थिति थी।
बलूचिस्तान पर पाकिस्तानी कब्जे की कहानी:
- जिन्ना की सलाह पर यार खान 4 अगस्त 1947 को राजी हो गया कि कलात राज्य 5 अगस्त 1947 को आजाद हो जाएगा और उसकी 1938 की स्थिति बहाल हो जाएगी। उसी दिन पाकिस्तानी संघ से एक समझौते पर दस्तखत हुए। इसके अनुच्छेद 1 के मुताबिक पाकिस्तान सरकार इस पर रजामंद है कि कलात स्वतंत्र राज्य है जिसका वजूद हिन्दुस्तान के दूसरे राज्यों से एकदम अलग है। लेकिन अनुच्छेद 4 में कहा गया कि पाकिस्तान और कलात के बीच एक करार यह होगा कि पाकिस्तान कलात और अंग्रेजों के बीच 1839 से 1947 से हुए सभी करारों के प्रति प्रतिबद्ध होगा और इस तरह पाकिस्तान अंग्रेजी राज का कानूनी, संवैधानिक और राजनीतिक उत्तराधिकारी होगा।
- अनुच्छेद 4 की इसी बात का फायदा उठाकर पाकिस्तान ने कलात के खान को 15 अगस्त 1947 को एक फरेबी और फंसाने वाली आजादी देकर 4 महीने के भीतर यह समझौता तोड़कर 27 मार्च 1948 को उस पर औपचारिक कब्जा कर लिया। पाकिस्तान ने बलूचिस्तान के बचे 3 प्रांतों को भी जबरन पाकिस्तान में मिला लिया था।
- दरअसल, 11 अगस्त 1947 को मुस्लिम लीग और कलात के बीच एक साझा घोषणा पत्र कर हस्ताक्षर हुए। इस घोषणा में यह माना गया कि कलात एक भारतीय राज्य नहीं है और उसकी अपनी एक अलग पहचान है। मुस्लिम लीग कलात की स्वतंत्रता का सम्मान करती है। इस घोषणा पत्र के अनुसार बलूचों को स्वतंत्र करना था।
- 4 अगस्त 1947 को लार्ड माउंटबेटन, मिस्टर जिन्ना, जो बलूचों के वकील थे, सभी ने एक कमीशन बैठाकर तस्लीम किया और 11 अगस्त को बलूचिस्तान की आजादी की घोषणा कर दी गई।
- वादे के मुताबिक उसे एक अलग राष्ट्र बनना था 1 अप्रैल 1948 को पाकिस्तानी सेना ने कलात पर अभियान चलाकर कलात के खान को आत्मसमर्पण के लिए मजबूर कर दिया। बाद में 27 मार्च 1948 को पाकिस्तान ने संपूर्ण बलूचिस्तान को अपने कब्जे में ले लिया। यह आमतौर से माना जाता है कि मोहम्मद अली जिन्ना ने अंतिम स्वाधीन बलूच शासक मीर अहमद यार खान को पाकिस्तान में शामिल होने के समझौते पर दस्तखत करने के लिए मजबूर किया था।
- माउंटबेटन और पाकिस्तानी नेताओं ने 1948 में बलूचिस्तान के निजाम अली खान पर दबाव डालकर इस रियासत का पाकिस्तान में जबरन विलय कर दिया। अली खान ने बलोच संसद से अनुमति नहीं ली थी और दस्तावेजों पर दस्तखत कर दिए थे। बलूच इस निर्णय को अवैधानिक मानते हैं, तभी से राष्ट्रवादी बलोच पाकिस्तान की गुलामी से मुक्त होने के लिए संघर्ष छेड़े हुए हैं।
- बलूच राष्ट्रवादियों का कहना है कि मेजर जनरल अकबर खान के निर्देश पर 27 मार्च 1948 को उनकी मातृभूमि पर अवैध ढंग से पाकिस्तानियों ने कब्जा कर लिया। कब्जे की इस कार्रवाई को नाम दिया गया 'ऑपरेशन गुलमर्ग'। तब से 5 बार हुए विद्रोह में लाखों बलूच देशभक्त मारे जा चुके हैं।
- बलूची तो 1948 से ही अपनी आजादी की जंग लड़ रहे हैं। उन पर एक ओर से जहां पाकिस्तानी फौज अत्याचार कर रही है वहीं दूसरी ओर लगभग 2010 से पाकिस्तानी तालिबान और कट्टर सुन्नी गुटों- लश्कर-ए-जांघी और जमायत-ए-इस्लामी ने भी अपने हमले तेज कर दिए हैं जिसके चलते अब बलूचों का अस्तित्व ही खतरे में पड़ गया है। ये कट्टरपंथी सुन्नी संगठन बलूच मुसलमानों के साथ ही हिन्दुओं और शिया समुदाय तथा अन्य अल्पसंख्यकों को भी निशाना बनाते हैं। एक मोटे अनुमान के मुताबिक इन हमले से हजारों अल्पसंख्यकों की जानें चली गई और करीब 3,00,000 लोग विस्थापित हैं, जो सिन्ध और भारत में शरणार्थियों का जीवन जी रहे हैं।
- ऐसी परिस्थिति में पाकिस्तानी हुक्मरानों ने वहां का जनसंख्या गणित बदलने के लिए हाल के दिनों में अपनी परियोजनाओं के लिए बाहर से लोगों को लाकर बसाने की नीति शुरू की थी। उनकी दलील थी कि बलूच आबादी में साक्षरता दर बेहद कम होने और हुनरमंद लोगों की कमी की वजह से ऐसा करना जरूरी है। इस नीति के चलते पाकिस्तान ने कई इलाकों में बलूचों को अल्पसंख्यक बना दिया है।
- अनिरुद्ध जोशी/विभिन्न स्रोत से संकलित