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छावा की कहानी जहां समाप्त होती है वहीं से शुरू होती है बाजीराव की कहानी

छावा से बाजीराव तक: मराठा साम्राज्य का स्वर्णिम अध्याय

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WD Feature Desk

, बुधवार, 12 मार्च 2025 (14:46 IST)
सन 1689 का वह काला दिन मराठा इतिहास में कभी नहीं भुलाया जा सकता। छत्रपति संभाजी महाराज की क्रूर हत्या के बाद औरंगजेब की विशाल मुगल सेना ने रायगढ़ के किले पर धावा बोल दिया। किले की दीवारें गूंज उठीं, लेकिन मराठा शक्ति उस दिन टूट गई। संभाजी की पत्नी येसूबाई, उनके सात वर्षीय पुत्र शाहूजी, शाहूजी की पत्नी सावित्रीबाई और उनके सौतेले भाई मदन सिंह को मुगल सेना ने कैद कर लिया। यह मराठा साम्राज्य के लिए एक संकट का क्षण था, लेकिन यहाँ से शुरू हुई एक ऐसी कहानी, जो हिंदवी स्वराज्य को भारत की सबसे बड़ी ताकत बनाने की नींव रखेगी।ALSO READ: बाजीराव पेशवा बल्लाल भट्ट कौन थे, जानिए मराठा साम्राज्य का इतिहास
 
राजाराम का प्रण: संभाजी की मृत्यु के बाद उनके भाई राजाराम को छत्रपति बनाया गया। उनके लिए यह राजमुकुट सचमुच कांटों का ताज था। चारों ओर मुगल सेना का कहर बरस रहा था। लेकिन राजाराम ने हार नहीं मानी। उन्होंने अपने भाई की हत्या का बदला लेने और भतीजे शाहूजी को मुगल कैद से छुड़ाने का संकल्प लिया। संताजी घोरपडे जैसे वीर योद्धाओं के साथ मिलकर उन्होंने मुगलों को बार-बार धूल चटाई। मुगल सेनाएं थर्रा उठीं, पर शाहूजी को आजाद कराने का सपना अधूरा रहा। सन 1700 में राजाराम की मृत्यु ने मराठों को झकझोर दिया, लेकिन उनकी जिद और जुनून ने मराठा साम्राज्य को एक नई दिशा दी।ALSO READ: बाजीराव पेशवा से कांपते थे मुगल आक्रांता, कभी कोई युद्ध नहीं हारा
 
शाहूजी की रिहाई और मराठा एकता का संकट: राजाराम के बाद उनके पुत्र शिवाजी द्वितीय छत्रपति बने। मुगलों से संघर्ष जारी रहा। फिर आया सन 1707, जब औरंगजेब की मृत्यु हुई। उसके उत्तराधिकारी बहादुरशाह प्रथम ने एक चाल चली। उसने शाहूजी को रिहा कर दिया, लेकिन इसका मकसद शुद्ध नहीं था। वह चाहता था कि शाहूजी और शिवाजी द्वितीय के बीच उत्तराधिकार का विवाद छिड़े और मराठा आपस में ही लड़ पड़ें। शाहूजी सतारा लौटे। वहाँ शिवाजी द्वितीय से हल्का टकराव हुआ, लेकिन अंततः शाहूजी को पांचवें छत्रपति के रूप में ताज पहनाया गया। शिवाजी द्वितीय कोल्हापुर चले गए और वहाँ एक अलग राज्य की नींव रखी। लेकिन येसूबाई और सावित्रीबाई? वे अभी भी मुगल कैद में थीं। बहादुर शाह ने उन्हें बंधक बनाए रखा, ताकि शाहूजी उसकी शर्तों से बंधा रहे।
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पेशवाई का उदय: बालाजी विश्वनाथ की चाल: यहाँ से मराठा साम्राज्य में एक बड़ा बदलाव आया। सन 1713 में बालाजी विश्वनाथ पेशवा बने। उन्होंने एक क्रांतिकारी फैसला लिया - अब छत्रपति युद्ध नहीं लड़ेंगे। युद्ध का जिम्मा पेशवा का होगा। शाहूजी को सम्मानजनक स्थान दिया गया, लेकिन सत्ता की बागडोर पेशवा के हाथों में आ गई। बालाजी के सामने दो चुनौतियां थीं- मुगल शक्ति और कोल्हापुर का मराठा राज्य।ALSO READ: छत्रपति संभाजी महाराज की मृत्यु का बदला लिया संताजी घोरपड़े ने इस तरह कि कांप गए मुगल
 
बालाजी ने कूटनीति और साहस का ऐसा खेल खेला कि इतिहास बदल गया। सन 1718 में वे अपने पुत्र बाजीराव के साथ दिल्ली पहुँचे। मुगल सत्ता कमजोर पड़ रही थी। मराठों की ताकत और आपसी तकरार ने मुगलों को घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया। बालाजी ने अपनी शर्तें रखीं- येसूबाई और सावित्रीबाई की रिहाई, मराठा स्वतंत्रता की मान्यता, और गुजरात, मालवा, बुंदेलखंड जैसे क्षेत्रों से चौथ व सरदेशमुखी वसूलने का अधिकार। ALSO READ: कौन थे वीर मराठा योद्धा छत्रपति संभाजी महाराज, जानिए क्यों कहलाते हैं 'छावा' और क्या है इस नाम का अर्थ
 
येसूबाई की मुक्ति: मराठा शक्ति का प्रतीक: 30 साल की कैद के बाद राजमाता येसूबाई और सावित्रीबाई की सम्मानजनक रिहाई हुई। यह सिर्फ एक पारिवारिक जीत नहीं थी, बल्कि मराठा साम्राज्य की ताकत का ऐलान था। शाहूजी को मुगलों ने छत्रपति के रूप में स्वीकार किया। मराठों ने अब सिर्फ स्वराज्य की रक्षा नहीं की, बल्कि पूरे भारत में अपनी धाक जमानी शुरू की।
 
छावा से बाजीराव तक: एक अंत, एक शुरुआत: यहां छावा- शाहूजी की कहानी समाप्त होती है लेकिन यहीं से शुरू होती है बाजीराव बल्लाळ की कहानी। पेशवा बालाजी विश्वनाथ ने मराठा सत्ता को एक नई ऊंचाई दी, और उनके पुत्र बाजीराव ने इसे और आगे ले गए। बाजीराव ने मुगलों को चुनौती दी, दक्षिण से उत्तर तक मराठा झंडा फहराया और भारत के इतिहास में एक नया अध्याय लिखा।ALSO READ: छत्रपति संभाजी राजे महाराज की पत्नी येसूबाई कौन थीं?
 
शाहूजी का संघर्ष, येसूबाई की कैद, और पेशवा का उत्थान- यह सब उस महान साम्राज्य की नींव बने, जिसने भारत को एकजुट करने का सपना देखा। छावा की कहानी खत्म हुई, लेकिन बाजीराव की गाथा अभी बाकी थी। 

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