Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia

संभल में होली और जुम्मा विवाद यूं ही नहीं

Advertiesment
हमें फॉलो करें sambhal jama masjid
webdunia

अवधेश कुमार

, बुधवार, 12 मार्च 2025 (14:08 IST)
संभल में होली और जुम्मे की नमाज देशव्यापी बहस और विवाद का विषय यूं ही नहीं बना हुआ है। हालांकि संभल के सीईओ अनुज चौधरी के वक्तव्य को आधार बनाकर कई पार्टियां, नेता और मीडिया का एक वर्ग आलोचना कर रहा है। सपा के वरिष्ठ नेता रामगोपाल यादव ने तो यहां तक कह दिया कि ऐसे लोग जब सरकार बदलेगी तो जेल में होंगे। सीईओ को गुंडा और दादा तक की संज्ञा दे दी गई है। 
 
मुस्लिम संगठनों सहित अनेक मुस्लिम नेताओं ने तो उनके खिलाफ ऐसा अभियान चला दिया है मानो वे संभल में शांति नहीं बल्कि अशांति के कारण बन चुके हों। क्या वाकई अनुज चौधरी ने ऐसा बयान दिया है जिससे उनके विरुद्ध इस तरह का माहौल होना चाहिए?

सामान्य तौर पर देखें तो होली और जुम्मे की नमाज एक ही दिन हो रही है तो निश्चित रूप से प्रशासन का दायित्व दोनों को शांतिपूर्वक संपन्न कराने की है। कोई एकपक्षीय बयान देकर किसी समुदाय को नाराज करे तो उसके विरुद्ध आवाज उठनी चाहिए। किंतु क्या वाकई संभल का मामला ऐसा ही है? इससे जुड़े दोनों पक्षों को समझे बगैर हम कोई अंतिम निष्कर्ष नहीं दे सकते।
 
निस्संदेह, भारत में 116 करोड़ से थोड़ा ज्यादा हिंदू और 22 करोड़ से ज्यादा मुसलमान है तो दोनों को मिलजुल कर ही रहना है। दोनों की अपनी संस्कृतियां हैं तथा अलग-अलग उत्सव हैं। यह दोनों समुदायों की जिम्मेवारी है कि वे एक दूसरे की भावनाओं, संवेदनाओं का ध्यान रखते हुए तथा अपने उत्सवों के महत्व के अनुसार ऐसा आचरण करें जिनसे समस्याएं पैदा नहीं हो। 
 
इसी तरह पुलिस प्रशासन का दायित्व हर हाल में शांति व्यवस्था बनाए रखने का पूर्वोपाय करना है। अगर कहीं समस्या पैदा हुई तो पुलिस प्रशासन के लिए उत्तर देना कठिन होता है। अनुज चौधरी का बयान इसी के संदर्भ में था। सच है कि उनके बयान की दो पंक्ति को निकाल कर हंगामा पैदा कर दिया गया और यही बताता है कि कुछ लोग किस तरह देश में सांप्रदायिक तनाव, हिंसा पैदा करना चाहते हैं। 
 
यह वर्ग प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार एवं केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार के विरुद्ध माहौल बनाने के लिए झूठ का नॉरेटिव चला रहा है। अनुज चौधरी के बयान को देखें तो उसमें यह पंक्ति है कि जुम्मे की नमाज वर्ष में 52 बार आता है जबकि होली एक बार। इसी में वे यह भी कह रहे हैं कि जिन्हें होली से समस्या हो वे उस दिन बाहर न निकलें। अपने पूरे वक्तव्य में वे कह रहे हैं कि हिंदू समाज मुसलमानों की भावनाओं का ध्यान रखे और मुस्लिम समाज हिंदुओं की भावनाओं का। इसमें गड़बड़ी करने वालों को चेतावनी भी दे रहे हैं। 
 
वह कह रहे हैं कि जिस तरह ईद के दिन लोग सिवैया खाते हैं, एक दूसरे से गले मिलते हैं ठीक उसी तरह होली का त्योहार भी है और इसको भी उसी रूप में लें, थोड़ा बड़ा हृदय दिखाएं। उनका कहना था कि अगर कहीं थोड़ा बहुत रंग गुलाल पड़ भी जाए तो उसे बड़ा हृदय दिखाकर सहन कर जाएं। उसी में वे कहते हैं कि जिन्हें बिल्कुल इससे समस्या हो वह बाहर न निकले। इसमें ऐसी कोई बात नहीं है जिसके आधार पर उनको जेल में डालने से लेकर गुंडा और न जाने क्या-क्या कहा जाना चाहिए। 
 
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने टीवी कार्यक्रम में यह कहते हुए उनका समर्थन किया है कि वह पहलवान है, अर्जुन अवार्डी है और पहलवान की तरह स्पष्ट बोलता है। उन्होंने भी लगभग वही बातें बोली जो अनुज चौधरी ने कहा। इस तरह अनुज चौधरी का वक्तव्य योगी आदित्यनाथ सरकार के विचारों की ही अभिव्यक्ति है। यह सच है कि इसके पहले भी होली और जुम्मे का नमाज एक दिन हुआ है। किंतु यह कहने वाले भूल जा रहे हैं कि जिन शहरों या क्षेत्रों में मुस्लिम आबादी है वहां कई बार यह शांतिपूर्ण संपन्न हुआ तो कई बार अशांति पैदा हुई, हिंसा हुए, दंगे भी हुए। 
 
आप दंगों के इतिहास का अध्ययन करेंगे तो पाएंगे कि इनमें से बड़ी संख्या में हिंदू उत्सवों या महत्वपूर्ण दिवसों के दिन या उनसे जुड़े हुए रहे। पिछले 3 वर्षों में हमने हिंदू धर्म से जुड़ी शोभा यात्राओं, महत्वपूर्ण तिथियों के दिन पत्थरबाजी, आगजनी, हमले और सांप्रदायिक हिंसा हुये हैं।

क्या हम पिछले वर्ष 24 नवंबर को संभल में हुई हिंसा भूल गए? आखिर न्यायालय के आदेश से सर्वेक्षण टीम वहां आई थी, कहीं हिंदुओं की भीड़ नहीं थी, कोई नारा नहीं था, अचानक हजारों लोग ईंट पत्थर लेकर कहां से निकल पड़े? जितनी भयानक पत्थरबाजी हुई, आगजनी गई और गोली तक चली उसका कोई एक कारण था तो यही कि संभल कट्टर मजहबी सांप्रदायिक उपद्रवी तत्वों का केंद्र बन चुका है। 
 
सीधे पुलिस से हिंसक मोर्चाबंदी लेने का दुस्साहस सामान्य लोग नहीं कर सकते। लोगों के मस्तिष्क को उस सीमा तक असामान्य बनाया जा चुका है या बन चुका है तो फिर उस स्थान के लिए पुलिस प्रशासन को भी सामान्य से अलग हटकर ही व्यवहार करना पड़ेगा।
 
संभल में दंगों का भयानक इतिहास है। आजादी के पूर्व से ही वहां गैर मुसलमानों के विरुद्ध हिंसा, धर्मस्थलों पर कब्जे या उनको ध्वस्त करने की घटनाएं होतीं रहीं हैं। 1978 के दंगों के बाद बड़ी संख्या में हिंदुओं के पलायन हुए और यह 1995 तक जारी रहा। क्यों? करोड़ों की संपत्ति रखने वालों को भी वहां से भागने को बेबस होना पड़ा। वहां से निकले हुए परिवार जिन शहरों में है उनकी कथा सुनकर किसी का कलेजा मुंह को आ जाता है। 
 
24 नवंबर, 2024 को हिंसा के बाद धीरे-धीरे पूरे संभल शहर में कब्जाए, जमीन में दबाई या विरक्त महत्वपूर्ण पूजा स्थल, कूप, बावड़ी निकल रहे हैं। संभल धार्मिक पुस्तकों में एक महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल के रूप में विख्यात रहा है तथा कलयुग में भगवान कल्कि अवतार की भी भविष्यवाणी वही है। पिछले मोटा-मोटी 800 वर्षों से वह क्षेत्र इसी कारण इस्लामी हमले का शिकार रहा है इस इतिहास को कोई झूठला नहीं सकता। 
 
जामा मस्जिद विष्णु पुराण, भविष्य पुराण से लेकर अकबरनामा, बाबरनामा एवं अंग्रेजों के काल में किए गए सर्वेक्षण के अनुसार हरि मंदिर को ध्वस्त कर बनाया गया है। अनेक मुसलमान भी टीवी कैमरे पर बता रहे थे कि उनके देखते-देखते मस्जिद इतनी बड़ी हुई है अन्यथा यहां ऐसा कुछ था नहीं। कल्पना करिए, उत्तर प्रदेश का एक छोटा शहर अगर हिंदू धर्म स्थलों को निगल जाने, उन्हें विरक्त कर देने या धरती में दबा देने की भूमिका निभा रहा हो तो वहां की सांप्रदायिक स्थिति क्या रही होगी?
 
भारत का दुर्भाग्य है कि यहां सेकुलरिज्म की गलत व्याख्या सोच और वोट बैंक की मानसिकता में सांप्रदायिक व्यवहारों का विरोध करने की जगह इन्हें दुरुस्त करने के लिए खड़े होने वाले को खलनायक बनाया जा रहा है। जामा मस्जिद के पास एवं अन्य जगह पुलिस थाने या पोस्ट बनाने तक का विरोध करने वाले कौन लोग थे? 
कल्पना करिए, अगर प्रदेश और केंद्र में भाजपा सरकार नहीं होती तो जितनी बड़ी संख्या में कब्जे किए गए या विरक्त मंदिर, मिट्टी में दबाए गए कूप और बावड़ी मिले हैं वह संभव होता? मनुष्य के अंदर दिव्यता और विशिष्ट आध्यात्मिक शक्ति व अंत:प्रेरणा पैदा करने वाले वे पवित्र स्थान ऐसे ही भुला दिए जाते। 
 
आश्चर्य इस पर होना चाहिए कि कब्जा किए गए, कराए गए उन पवित्र स्थलों या निर्माण को न्याय पूर्ण तरीके से खाली करने की कार्रवाई देश में नेताओं, बुद्धिजीवियों व मीडिया के एक बड़े वर्ग की आलोचना का शिकार हो रहा है। यह इकोसिस्टम इतना बड़ा है कि इसका सामना करना कठिन होता है तथा यही वर्ग देश में नैरेटिव भी बनाता है। इसी वर्ग ने केंद्र व प्रदेश सरकार तथा उसके नेतृत्व में स्थानीय पुलिस प्रशासन द्वारा कानूनी शक्ति का उपयोग करते हुए हिंदू समाज को न्याय दिलाने तथा कानून और व्यवस्था बनाए रखने की नीतियों और कदमों के विरुद्ध वातावरण बनाने में लगा है। 
 
ऐसा नहीं होता तो अनुज चौधरी के वक्तव्य की सभी पक्षों द्वारा प्रशंसा होती तथा उसके अनुरूप व्यवहार की अपील की जाती। वहां के हिंदुओं से पूछिए कि क्या वे पिछले 50 वर्षों में होली जैसे खुले व्यवहार त्योहार को भी खुलकर मना पाए हैं? अगर नहीं तो यह दूसरे समुदाय के लिए शर्म और सोचनीय विषय होना चाहिए या नहीं? संभल पुलिस प्रशासन न्याय और कानून की दृष्टि से अपनी शक्तियों का सदुपयोग कर रहा है। यही कारण है कि बाहर दुष्प्रचार व विरोध करते हुए भी इनमें से कोई न्यायालय तक जाने का साहस नहीं करता।

(इस लेख में व्यक्त विचार/विश्लेषण लेखक के निजी हैं। 'वेबदुनिया' इसकी कोई ज़िम्मेदारी नहीं लेती है।)

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

मन को शांत और फोकस करने का अनोखा तरीका है कलर वॉक, जानिए कमाल के फायदे