Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia

ज़्यादा आमदनी के लिए मूंग की खेती करें

Advertiesment
हमें फॉलो करें ज़्यादा आमदनी के लिए मूंग की खेती करें
webdunia

फ़िरदौस ख़ान

, मंगलवार, 4 मार्च 2025 (14:20 IST)
रबी की फ़सल कट रही है। ख़रीफ़ की फ़सल की बुआई से पहले किसान खेतों को ख़ाली रखने की बजाय मूंग की फ़सल उगा कर अतिरिक्त आमदनी हासिल कर रहे हैं। फ़सल चक्र अपनाने से उत्पादन के साथ-साथ भूमि की उर्वरा शक्ति बनी रहती है। धान आधारित क्षेत्रों के लिए धान-गेहूं-मूंग या धान-मूंग-धान, मालवा निमाड़ क्षेत्र के लिए मूंग-गेहूं-मूंग, कपास-मूंग-कपास फ़सल चक्र अपनाया जाता है। 
 
मूंग की फ़सल भारत की लोकप्रिय दलहनी फ़सल है और इसकी खेती विभिन्न प्रकार की जलवायु में की जाती है। यह फ़सल सभी प्रकार की भूमि में उगाई जा सकती है, लेकिन अच्छे जल निकास वाली बलुई और दोमट मिट्टी इसके लिए उपयुक्त रहती है। मूंग ख़रीफ़, रबी और जायद तीनों मौसम में उगाई जाती है। दक्षिण भारत में मूंग रबी मौसम में उगाई जाती है, जबकि उत्तर भारत में ख़रीफ़ और जायद मौसम में उगाई जाती है।

उत्तर भारत में किसान रबी और ख़रीफ़ मौसम के बीच मूंग की खेती कर रहे हैं। पहले किसान रबी की फ़सल काटने के बाद और ख़रीफ़ की फ़सल की बुआई से पहले बीच के वक़्त में साठी धान की फ़सल उगाते थे। साठी धान में पानी की ज़रूरत ज़्यादा होती है और लगातार घटते भू-जलस्तर को देखते हुए अनेक स्थानों पर साठी धान उगाने पर पाबंदी लगा दी गई है। 
 
ऐसे में कृषि विशेषज्ञ किसानों को मूंग की फ़सल उगाने की सलाह दे रहे हैं। उनका कहना है कि गर्मी में ज़्यादा तापमान होने पर भी मूंग की फ़सल में इसे सहन करने की शक्ति होती है। कम अवधि की फ़सल होने की वजह से यह आसानी से बहु फ़सली प्रणाली में भी ली जा सकती है। उन्नत जातियों और उत्पादन की नई तकनीकी तथा सदस्य पद्धतियों को अपनाकर इसकी पैदावार बढ़ाई जा सकती है। 
 
गर्मी में मूंग की खेती से कई फ़ायदे होते हैं। इस मौसम में मूंग पर रोग और कीटों का प्रकोप कम होता है और अन्य फ़सलों के मुक़ाबले सिंचाई की ज़रूरत भी कम होती है। धान के मुक़ाबले किसानों को मूंग की फ़सल से ज़्यादा फ़ायदा हो रहा है। इसलिए अब किसानों का रुझान मूंग की तरफ़ बढ़ रहा है। मूंग की फ़सल 65 से 70 दिन में पककर तैयार हो जाती है और किसान 400 से 480 किलो प्रति हेक्टेयर उपज हासिल कर सकते हैं। 
 
कृषि विशेषज्ञों का कहना है कि दलहनी फ़सल होने के कारण यह तक़रीबन 20 से 22 किलोग्राम नाइट्रोजन प्रति हैक्टेयर स्थिर करके मिट्टी की उर्वरा शक्ति को बढ़ाती है। मूंग की फ़सल खेत में काफ़ी मात्रा में कार्बनिक पदार्थ छोड़ती है, जिससे किसानों को अतिरिक्त लाभ मिल जाता है। जायद और रबी के लिए मूंग की अलग-अलग क़िस्में होती हैं। 
 
कृषि विशेषज्ञों के मुताबिक़ जायद के लिए मूंग की दो अच्छी क़िस्में हैं। पहली पूसा-9531। इस क़िस्म का पौधा सीधा बढ़ने वाला छोटा क़द का होता है, दाना मध्यम, चमकीला हरा, पीला मोजेक वायरस प्रतरोधी है। दूसरी क़िस्म है पूसा-105। इस क़िस्म का दाना गहरा हरा, मध्यम आकार का, पीला मोजेक वायरस प्रतरोधी होने के साथ-साथ पावडरी मल्डयू और मायक्रोफोमीना ब्लाईट रोगों के प्रति सहनशील है।  
 
मूंग की बुआई करते वक़्त किसान ध्यान रखें कि कतारों के बीच 30 सेंटीमीटर और पौधे से पौधे की दूरी 10 से 15 सेंटीमीटर होनी चाहिए। मूंग की फ़सल की बुआई के लिए 25 से 30 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर बीज की ज़रूरत होती है। मूंग की बिजाई के बाद 10 से 15 दिन के अंतराल पर तीन-चार बार सिंचाई करनी चाहिए।

पहली नींदाई बुवाई के 20 से 25 दिन के भीतर और दूसरी 40 से 45 दिन में करना चाहिए। दो-तीन बार कोल्पा चलाकर खेत को नींदा रहित रखा जा सकता है। खरपतवार नियंत्रण के लिए नींदा नाशक दवाओं जैसे बासालीन या पेंडामेथलीन का इस्तेमाल भी किया जा सकता है। बासालीन 800 मिलीलीटर प्रति एकड़ के हिसाब से 250 से 300 लीटर पानी में बोनी पूर्व छिड़काव करना चाहिए। 
 
मूंग की फ़सल की शुरुआत में तनामक्खी, फलीबीटल, हरी इल्ली, सफ़ेद मक्खी, माहों, जैसिड, थ्रिप्स आदि का प्रकोप होता है। इनकी रोकथाम के लिए क्विनालफॉस 25 ईसी 600 मिलीलीटर प्रति एकड़ या मिथाइल डिमेटान 25 ईसी 200 मिलीलीटर प्रति एकड़ के हिसाब से छिड़काव करना चाहिए। ज़रूरत पड़ने पर 15 दिन बाद दोबारा छिड़काव करना चाहिए। पुष्पावस्था में फली छेदक, नीली तितली का प्रकोप होता है। क्विनालफॉस 25 ईसी का 600 मिलीलीटर या मिथाइल डिमेटान 25 ईसी का 200 मिलीलीटर प्रति एकड़ के हिसाब से 15 दिन के अंतराल पर छिड़काव करने से इनकी रोकथाम हो सकती है।

कई इलाको़ में कम्बल कीड़े का भारी प्रकोप होता है। इसकी रोकथाम के लिए पेराथियान चूर्ण दो फ़ीसद, 10 किलो प्रति एकड़ के हिसाब से भुरकाव करना चाहिए। फ़सल को मेक्रोफोमिना रोग से बचाने के लिए 0।5 फ़ीसद कार्बेंडाजिम या फायटोलान या डायथेन जेड-78, 2।5 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए। कोफोमिना और सरकोस्पोरा फफूंद द्वारा पत्तियों के निचले भाग कत्थई भूरे रंग के विभिन्न आकार के धब्बे पर बन जाते हैं। 
 
इसी तरह भभूतिया रोग या बुकनी रोग से बचाव के लिए घुलनशील गंधक 0।15 फ़ीसद या कार्बेंडाजिम 0।1 फ़ीसद के 15 दिन के अंतराल पर तीन बार छिड़काव करना चाहिए। इस रोग की वजह से 30 से 40 दिन की फ़सल में पत्तियों पर सफ़ेद चूर्ण दिखाई देता है।

पीला मोजेक वायरस रोग के कारण पत्तियां और फलियां पीली पड़ जाती है और उपज पर प्रतिकूल असर होता है। यह सफ़ेद मक्खी द्वारा फैलने वाला विषाणु जनित रोग है। इसकी रोकथाम के लिए मोनोक्रोटोफॉस 36 ईसी 300 मिलीलीटर प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करना चाहिए। प्रभावित पौधों को उखाड़कर नष्ट कर देना चाहिए। इस रोग से बचने के लिए पीला मोजेक वायरस निरोधक क़िस्मों को उगाना चाहिए। जब फलियां काली होकर पकने लगें, तब उन्हें तोड़ना चाहिए। फिर इन फलियों को सुखा लें और गहाई करें। दलहनी फ़सलों के बाज़ार में अच्छे दाम मिल जाते हैं।
 
क़ाबिले-ग़ौर है कि सरकार ने दलहन का उत्पादन बढ़ाने के लिए तिलहन, दलहन और मक्का प्रौद्योगिकी मिशन के तहत राष्ट्रीय दलहन विकास परियोजना (एनपीडीपी) शुरू की है। इसके तहत दलहन की फ़सलों को प्रोत्साहित करने के लिए किसानों को बीज, खाद आदि कृषि विभाग की ओर से मुफ़्त दिए जाते हैं। किसान इस योजना का लाभ भी उठा सकते हैं।
 
(वेबदुनिया पर दिए किसी भी कंटेट के प्रकाशन के लिए लेखक/वेबदुनिया की अनुमति/स्वीकृति आवश्यक है, इसके बिना रचनाओं/लेखों का उपयोग वर्जित है...)

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

राष्ट्रीय सुरक्षा दिवस 2025: जानें इतिहास, महत्व और 2025 की थीम