केवल भारत ही नहीं संपूर्ण विश्व की दृष्टि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अमेरिका यात्रा, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के साथ बातचीत तथा प्रतिफलों पर लगी होगी। प्रधानमंत्री मोदी फ्रांस में एआई शिखर बैठक की सह-अध्यक्षता करने के बाद राष्ट्रपति ट्रंप के आमंत्रण पर अमेरिका जा रहे हैं। अपने इस दूसरे कार्यकाल में ट्रंप अवैध अप्रवासन, व्यापार घाटा, आतंकवाद, वैश्विक संघर्ष, पश्चिम एशिया, यूएसएड आदि को लेकर जिस आक्रामकता और तीव्र गति से कदम उठा रहे हैं उसमें यात्रा की गंभीरता काफी बढ़ गई है।
प्रधानमंत्री की यात्रा के पूर्व अमेरिका के सैन्य विमान से हथकड़ी लगाकर वापस किए गए अवैध अप्रवासियों का मुद्दा भारत में कितना गर्म हुआ यह बताने की आवश्यकता नहीं है। उम्मीद है और जैसा विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने संसद में बयान दिया प्रधानमंत्री की यात्रा में यह विषय उठाया जाएगा। अवैध प्रवासियों वाले देशों पर उन्होंने पहले दिन से निशाना साधा और अपनी घोषणा के अनुरूप उनको पकड़ कर कैदियों की तरह विमान से देश में भेजना शुरू किया। व्यापार घाटा भी इसी से जुड़ गया।
ट्रंप ने चीन से आने वाली सामग्रियों पर 10 प्रतिशत तथा मेक्सिको और कनाडा पर 25 प्रतिशत आयात शुल्क लगा दिया। हालांकि भारत को उन्होंने टैरिफ किंग यानी विदेशी सामानों पर सबसे ज्यादा शुल्क लगाने वाले देश की संज्ञा दी है लेकिन ऐसा कोई कदम नहीं उठाया। हां, अप्रवासियों के मुद्दे पर अवश्य उन्होंने आक्रामकता दिखाई है।
तो प्रधानमंत्री के दौरे एवं ट्रंप कल में भारत अमेरिकी संबंधों पर विचार करते समय इस पहलू का ध्यान रखना होगा। उन्होंने ब्राजील के नागरिकों को भी इसी तरह वापस भेजा जिस पर ब्राजील ने विरोध जताया। भारत की ओर से ऐसा नहीं किया गया। यहां तक कि संसद में विदेश मंत्री ने कांग्रेस की आलोचनाओं का जवाब देते हुए आंकड़े प्रस्तुत किए जिनसे पता चलता है कि हर कार्यकाल में अमेरिका से अप्रवासियों को वापस भेजा गया है। किंतु इस तरह हथकड़ी लगाकर सैन्य विमान से भेजने का पहला मामला है। विरोध करने के बाद उन्होंने कहा कि अमेरिका के समक्ष मामला उठाया गया है।
यह संभव नहीं कि प्रधानमंत्री इस विषय पर बातचीत न करें। किंतु भारत क्या कर सकता है? क्या हम विश्व में इस प्रकार से किसी देश में अवैध घुसपैठ को प्रोत्साहित कर सकते हैं? हमारा कोई नागरिक अगर वीजा लेकर उचित रास्ते से अमेरिका या किसी देश में जाए और वहां उसके साथ आम मानवीय या किसी तरह के अंतरराष्ट्रीय मानक के विपरीत व्यवहार हो तो भारत अवश्य सीना ठोक कर खड़ा होगा। इस तरह पढ़े-लिखे लोग भी झूठे एजेंटों के चक्कर में पड़कर चोरी छिपे रास्ते अवैध तरीके से किसी देश में घुसेंगे तो उनके साथ आम मनुष्य की तरह व्यवहार नहीं हो सकता।
विश्व का एक सम्मानित देश होने के नाते भारत अमेरिका से बात कर सकता है कि जो भी अवैध रूप से आए हैं, उन्हें हम वापस लेंगे जिसका तरीका ज्यादा मानवीय और न्यायोचित हो। ध्यान रखिए, कोलंबिया के राष्ट्रपति गुस्तावो पेत्रो कम्युनिस्ट हैं। वे अमेरिका के खिलाफ स्टैंड लेते हैं। इस मामले में वे यहां तक कह बैठे कि यह उसकी प्रभुसत्ता पर अमेरिका का अतिक्रमण है इसलिए अमेरिकी सैनिक विमान को धरती पर नहीं उतरते देंगे। जैसे ही ट्रंप ने सीमा शुल्क बढ़ाने की धमकी दी वो चुप हो गए तथा अपने नागरिकों को वापस लाने के लिए अमेरिका विमान भेजा।
वास्तव में अवैध घुसपैठ या अप्रवास हर देश में और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी अपराध है। कोई देश अपने ऐसे नागरिकों के साथ खड़ा नहीं हो सकता, न इसका समर्थन कर सकता है। हालांकि जैसे अवैध रूप से किसी देश में घुसना अस्वीकार्य है, वैसे ही इस तरह का व्यवहार भी। ऐसा लगता है कि ट्रंप इस तरह के अतिवादी कदमों से उन लोगों को भयभीत करना चाहते हैं, जो अवैध तरीके से उनके देश में आने या घुसने की सोच रहे होंगे या कोशिश कर रहे होंगे।
जिन देशों से ज्यादा अवैध लोग आ रहे हैं, वहां के नेतृत्व पर भी दबाव डालने की रणनीति दिखाई देती है। अमेरिका में एक करोड़ के आसपास अप्रवासी अवैध रूप से हैं। इनको वापस करना आसान नहीं है। सैनिक जहाज या अपने नागरिक विमान से भी वापस करेंगे तो कितना समय लगेगा? एक दिन में आप 2000, 3000, 4000 लोगों को वापस कर सकते हैं। तो इसमें कई वर्ष लग जाएंगे। सैन्य विमान में वैसे भी जबरदस्त खर्च आता है और स्वयं अमेरिका की वित्तीय स्थिति लंबे समय तक इसे जारी रखने की अनुमति नहीं देता। तो ऐसा सतत होगा यह नहीं माना जा सकता। इसका रास्ता निकालना पड़ेगा।
अमेरिका के साथ व्यापार में सर्वाधिक लाभ को देखते हुए भारत नहीं चाहेगा कि किसी प्रकार का व्यापारिक तनाव हो और अत्यधिक सीमा शुल्क की व्यवस्था में से हमें क्षति पहुंचे। भारत ने अमेरिका के साथ संबंधों की गंभीरता को देखते हुए संयम का परिचय दिया और यह उचित ही है। यह मानने में समस्या नहीं है कि भारतीय राजनयिक ट्रंप की रणनीति को समझ चुके हैं। मेक्सिको, चीन, ब्राजील, कोलंबिया सबके विरुद्ध उन्होंने घोषणाएं की और अब उन पर भी शांत भी हैं, कुछ कदम वापस भी लिया है।
ट्रंप भारत पर अन्य देशों की तरह आयात शुल्क ठोकने से बचेंगे क्योंकि उन्हें पता है कि भारत को रक्षा और संवेदनशील तकनीक सहित गैस आदि की आवश्यकता है। वह अमेरिका से खरीद कर क्षतिपूर्ति कर सकता है। भारत की नीति अपना वैश्विक व्यापार बढ़ाने, अधिकाधिक निवेश भारत लाने, सूचना अनुसंधान या यों कहे कि एआई के क्षेत्र में चुनौतियों का सफलतापूर्वक सामना करते हुए उसका हित में उपयोग के लिए ढांचा खड़ी करने तथा बढ़ती अंतरराष्ट्रीय जटिलताओं के मध्य प्रमुख देशों से रणनीतिक और सामरिक साझेदारी को सशक्त करने की है।
ट्रंप ने अपने शपथ ग्रहण समारोह में विदेश मंत्री एस. जयशंकर को आगे बिठाकर तथा तुरंत बाद क्वॉड विदेश मंत्रियों की बैठक आयोजित कर संदेश दिया कि पहले कार्यकाल की तरह वे क्वॉड और भारत के वैश्विक महत्व को पूर्ण साझेदारी के साथ आगे बढ़ाने की नीति पर चल रहे हैं। 2017 में ट्रंप ने ही क्वॉड की स्थापना की जिसे बिडेन ने आगे बढ़ाया।
ट्रंप एवं उनके सलाहकारों के पास इतनी समझदारी है कि बगैर पूरी योजना, अन्य देशों की सहमति और साझेदारी के एक सीमा से ज्यादा चीन आदि से टकराव लाभकारी नहीं होगा। हिंद प्रशांत से लेकर अरब सागर, लाल सागर सबमें सप्लाई चैन या आपूर्ति श्रृंखला पर चीन के बढ़ते आधिपत्य को रोकने के लिए कदम उठाना ही होगा। बगैर भारत के साथ सहयोग के यह संभव नहीं है। ईरान के साथ चाबहार बंदरगाह समझौता भारत के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है लेकिन अमेरिका ईरान के विरुद्ध प्रतिबंधों को लेकर भी पीछे हटने को तैयार नहीं है।
अमेरिकी विदेश मंत्री मार्क रुबियो के एजेंडा में चाबहार बंदरगाह व ईरान भारत संबंध भी है। हमारी पूरी कोशिश यही है कि ईरान से संबंधों के आधार पर कम प्रशासन भारत पर किसी तरह का प्रतिबंध न लगाए। भारत अवैध अप्रवासियों को वापस लेने को तैयार है, तो अमेरिका को इसका रास्ता निकालने में समस्या नहीं होनी चाहिए। जहां तक सीमा शुल्क का प्रश्न है तो भारत ने केंद्रीय बजट में अनेक उत्पादों पर आयात शुल्क और ड्यूटी घटाने का प्रावधान किया है। इससे अनेक अमेरिकी उत्पादों और कंपनियों को राहत मिली है। इससे वातावरण अनुकूल होने का आधार बना है।
सिख अलगाववादियों और अतिवादियों के साथ अमेरिकी भूमि पर भारत विरोधियों की गतिविधियां हमारे लिए चिंताजनक है। भारत की अपेक्षा है कि ट्रंप प्रशासन उन पर हमारी भावनाओं का सम्मान करे। जो बिडेन प्रशासन की तरह ऐसे तत्वों को भारत विरोधी गतिविधियों की खुली छूट तथा अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर किसी तरह की बंदिश न लगाने का रवैया उचित नहीं है। प्रधानमंत्री मोदी की यात्रा में यह एक महत्वपूर्ण मुद्दा है। ट्रंप ने पहले कार्यकाल में भारत को महत्व दिया तथा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ अमेरिकी हितों का ध्यान रखते हुए भी व्यक्तिगत संबंध आत्मीय बना रहा। इसलिए तनाव उभरने या संबंध बिगड़ने की संभावना नहीं है।
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बढ़ते संघर्ष तथा पहले से उलझे मुद्दों के और उलझने के कारण अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था में उथल-पुथल की स्थिति है। यह भारत और अमेरिका दोनों के लिए चिंताजनक है। भारत जैसे देशों के महत्व को ट्रंप समझते हैं और भारत भी अमेरिका की आवश्यकता को। उम्मीद करनी चाहिए कि दो दूरदर्शी नेताओं और अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था के लंबे लक्ष्य पर काम करने वाले देशों के बीच वार्ता में भविष्य के लिए लंबे सहयोग, साझेदारी तथा परस्पर सौहार्द्र बनाए रखने का प्रतिफल सामने आएगा।
(इस लेख में व्यक्त विचार/विश्लेषण लेखक के निजी हैं। 'वेबदुनिया' इसकी कोई ज़िम्मेदारी नहीं लेती है।)