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टैरिफ के बाद भी भारत के लिए क्यों जरूरी है अमेरिका

जर्मन अखबार फ्रांकफुर्टर आल्गेमाइने त्साइटुंग ने दावा किया कि डॉनल्ड ट्रंप ने नरेंद्र मोदी को कई बार फोन किया लेकिन उनकी तरफ से कोई जवाब नहीं दिया गया।

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, शुक्रवार, 29 अगस्त 2025 (07:53 IST)
आयुष यादव
"ट्रंप रुफ्ट आन, आबर मोदी गेट निष्ट द्रान” - जर्मन अखबार की इस हेडिंग का मतलब है ट्रंप ने मोदी को फोन किया लेकिन मोदी ने जवाब नहीं दिया। अमेरिका ने भारत पर बुधवार, 27 अगस्त से 25 फीसदी अतिरिक्त टैरिफ लगा दिया। इस हाल में बहुत से लोगों को ऐसा लगा होगा कि मोदी ने ट्रंप का फोन नहीं उठाकर सही किया। लेकिन ये जानना दिलचस्प है कि क्या अमेरिका से रिश्ते खराब कर भारत की अपनी महत्वाकांक्षाएं पूरी हो सकेंगी।
 
भारत पर यह नया शुल्क रूस से तेल खरीदने की वजह से लगाया गया है। हालांकि भारत ने इसका जवाब दिया और बताया कि अमेरिका और यूरोपीय संघ के देश रूस से लगातार तेल और दूसरे सामानों की खरीदारी कर रहे थे। लेकिन यह समझना होगा कि अमेरिका और रूस से भारत जिन चीजों का आयात कर रहा है, उनमें कितना फर्क है।
 
तेल जरूरी या तकनीक
भारत और अमेरिका के संबंध शीत युद्ध (1945-1991) के बाद विकसित हुए। दोनों देशों के बीच कारोबारी साझीदार का स्तर काफी बड़ा है। अमेरिकी राष्ट्रपति कार्यालय की रिपोर्ट के अनुसार, 2024 में दोनों देशों के बीच व्यापार 212 अरब डॉलर का है और इससे अमेरिका की तुलना में भारत ज्यादा मुनाफे में है।
 
अमेरिका नई टेक्नोलॉजी और सर्विस सेक्टर में निवेश के जरिए भारत में अवसर पैदा कर रहा है। माइक्रॉन (2.75 अरब डॉलर) और एएमडी (40 करोड़ डॉलर) जैसी अमेरिकी कंपनियां भारत के सेमीकंडक्टर उद्योग में निवेश कर रही हैं, जो इस उद्योग में भारत के लिए नए अवसर खोल सकता है।
 
इसके अलावा, कन्फेडरेशन ऑफ इंडिया (सीआईआई)  की रिपोर्ट बताती है कि भारतीय कंपनियों ने अमेरिका के 40 राज्यों में 425,000 से ज्यादा नौकरियां पैदा की हैं, जिनसे दोनों देशों के आर्थिक संबंधों को और मजबूती मिली है।
 
दिल्ली स्थित जामिया मिल्लिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी में पोलिटिकल साइंस की प्रोफेसर रेशमी काजी भी मानती हैं कि तकनीकी रूप से उन्नत अमेरिका भारत के लिए एक महत्वपूर्ण व्यापारिक साझेदार है लेकिन व्यापार में स्थिरता जरूरी है।
 
डीडब्ल्यू हिन्दी से बात करते हुए उन्होंने कहा, "टैरिफ के मुद्दे पर जारी तनाव का असर भारतीय निर्यात पर पड़ रहा है। इसलिए भले ही अमेरिका भारत का इतना बड़ा व्यापारिक साझेदार बना हुआ है लेकिन भारत-रूस व्यापार भी रिकॉर्ड स्तर से बढ़ रहा है और दोनों देश अगले पांच सालों में इसे 100 अरब डॉलर तक बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं।"
 
भारत-रूस संबंध
वहीं रूस में मौजूद भारतीय दूतावास की रिपोर्ट के अनुसार, भारत और रूस के बीच व्यापार (वित्त वर्ष 2024-25 में) 68.7 अरब डॉलर तक पहुंच गया है। भारत रूस से बड़ी मात्रा में तेल, उर्वरक और सैन्य उपकरणों की खरीद करता है। लेकिन कुल व्यापार का 93 फीसदी हिस्सा तेल है। भू-राजनीतिक रूप से, रूस और चीन के बीच के गहरे संबंध कभी-कभी भारत के लिए चिंता का विषय बनते हैं। असल में 2022 में रूसी राष्ट्रपति पुतिन और चीनी राष्ट्रपति शी ने एक संयुक्त घोषणापत्र पर हस्ताक्षर कर दोनों देशों के बीच "नो-लिमिट पार्टनरशिप" बनाए रखने का वादा किया था।
 
उदाहरण के तौर पर, 2020 में भारत और चीन के बीच हुए गलवान घाटी संघर्ष के दौरान रूस की निष्क्रियता ने इस बात को पुष्ट किया कि चीन के साथ संघर्ष की स्थिति में रूस भारत का समर्थन नहीं कर सकता। प्रोफेसर रेशमी काजी बताती हैं कि रूस-यूक्रेन युद्ध के छिड़ने के बाद से पश्चिमी प्रतिबंधों के चलते रूस और चीन और करीब आए हैं।
 
उन्होंने बताया, "रूस और चीन का 'नो-लिमिट' संबंध अमेरिका के खिलाफ मजबूत हथियार है, जिसे खुद रूस भी समझता है। भारत एक संभावित बाजार होने के साथ-साथ एक उभरती हुई अर्थव्यवस्था भी है।" हालांकि प्रोफेसर काजी मानती हैं कि भारत और चीन के बीच संघर्ष की स्थिति में रूस तटस्थ बने रहने का प्रयास करेगा, लेकिन लंबे समय में आर्थिक रूप से मजबूत और तकनीकी रूप से भरोसेमंद चीन का ही पक्ष लेगा।
 
रक्षा और टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में, अमेरिका भारत की भविष्य की जरूरतों के लिए एक अनिवार्य भागीदार बन गया है। चाहे वह, एमक्यू-9बी निगरानी ड्रोन का समझौता हो या जनरल इलेक्ट्रिक के साथ जेट इंजन के सह-विकास का, भारत के लिए दोनों ही डील फायदे की हैं।
 
भारत जनरल इलेक्ट्रिक के साथ मिलकर जो जेट इंजन बना रहा है, उसका इस्तेमाल भारत में बने तेजस लड़ाकू विमान में किया जाएगा। भारत रूस के मिग-21 लड़ाकू विमान को तेजस से पूरी तरह बदलना चाहता है। साथ ही भारत लॉजिस्टिक्स समर्थन के लिए, लॉजिस्टिक्स एक्सचेंज मेमोरैंडम ऑफ एग्रीमेंट (LEMOA), सुरक्षित संचार के लिए, संचार संगतता और सुरक्षा समझौता (COMCASA) और सैन्य अभियानों में काम आने वाले भू-स्थानिक डाटा के लिए बेसिक एक्सचेंज एंड कोऑपरेशन एग्रीमेंट (BECA) के तहत मिलकर काम कर रहा है।
 
डॉलर से नहीं है परहेज
विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) की रिपोर्ट के अनुसार 2024 में वैश्विक व्यापार के 32.2 खरब डॉलर पहुंचने की उम्मीद है। इस व्यापार का ज्यादातर हिस्सा डॉलर के जरिए ही किया जाता है। ब्रिक्स देश डॉलर को चुनौती देने के लिए 'ब्रिक्स करेंसी' पर जरूर विचार कर रहे हैं लेकिन ब्राजील में हुए ब्रिक्स सम्मेलन-2025 में भारत ने साफ कह दिया कि वह डॉलर को खत्म करने के पक्ष में नहीं है। भारत को अंदाजा है कि अंतरराष्ट्रीय वित्तीय प्रणाली से खुद को अलग करना उसकी अर्थव्यवस्था के लिए हानिकारक हो सकता है।
 
आर्थिक, भू-राजनीतिक और तकनीकी कारकों के आधार पर, भारत के भविष्य के लिए रूस की तुलना में अमेरिका एक अधिक विश्वसनीय और फायदेमंद रणनीतिक साझेदार है। भारत के लिए अपनी विदेश नीति के निर्णय लेते समय भावनात्मक होने के बजाय व्यावहारिक दृष्टिकोण अपनाना बेहतर होगा।
 
प्रोफेसर काजी कहती हैं कि भारत को अमेरिका और रूस के बीच एक संतुलित विदेश नीति बनाए रखने की जरूरत है। उनका मानना है, "भले ही अमेरिका आर्थिक और रणनीतिक अवसर प्रदान करता है, लेकिन रूस के साथ दीर्घकालिक द्विपक्षीय संबंध विकसित करना और उन्हें बनाए रखना भारत के हित में भी है, जो उसे सुरक्षा और ऊर्जा के क्षेत्रों में अवसर प्रदान करता है।"
 
वो कहती हैं कि ब्रिक्स जैसे मंचों पर साझेदारी करके भारत और रूस दोनों को एक-दूसरे से फायदा होता है। यह एक तरह से "एक हाथ दे, एक हाथ ले" वाला रिश्ता है, जिससे दोनों देशों को लाभ होता है।

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