जर्मनी के भावी चांसलर क्या एएफडी पर प्रतिबंध लगाएंगे
धुर दक्षिणपंथी पार्टी अल्टरनेटिव फॉर डॉयचलैंड (एएफडी) को धुर दक्षिणपंथी 'चरमपंथी' पार्टी घोषित किया गया है। चांसलर बनने के बाद फ्रीडरिष मैर्त्स को यह फैसला करना होगा कि क्या पार्टी पर प्रतिबंध लगाया जाए।
-निखिल रंजन एएफपी
Will Germany's future chancellor ban the AfD : जर्मन खुफिया एजेंसी ने एएफडी के 'चरमपंथी' होने की पुष्टि की है। कई नेता और पार्टियां अब एएफडी पर प्रतिबंध की मांग कर रहे हैं। जर्मनी में क्राया जनीतिक दल पर क्या प्रतिबंध लग सकता है? जर्मनी के रुढ़िवादी नेता फ्रीडरिष मैर्त्स के देश का चांसलर बनने से पहले ही उनके सामने एक कठिन सवाल खड़ा हो गया है। धुर दक्षिणपंथी पार्टी अल्टरनेटिव फॉर डॉयचलैंड (एएफडी) को धुर दक्षिणपंथी 'चरमपंथी' पार्टी घोषित किया गया है। चांसलर बनने के बाद फ्रीडरिष मैर्त्स को यह फैसला करना होगा कि क्या पार्टी पर प्रतिबंध लगाया जाए।
एएफडी के कई आलोचकों की दलील है कि चुनावों में सफलता हासिल कर रही पार्टी पर प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए क्योंकि यह उदारवादी लोकतंत्र के लिए खतरा है। पार्टी के बारे में इन रायों को जर्मन खुफिया एजेंसी की ताजा रिपोर्ट से और बल मिल गया है। जर्मन खुफिया एजेंसी बुंडेसआम्ट फुअर फरपासुंगशुत्स यानी बीएफवी ने कई सालों की छानबीन के बाद शुक्रवार को अपनी रिपोर्ट जारी की है। बीएफवी ने एएफडी को एक चरमपंथी गुट करार दिया है। ये रिपोर्ट मध्य वामपंथी चांसलर ओलाफ शॉल्त्स की सरकार का कार्यकाल खत्म होने के ठीक पहले आई है।
बहुत से जर्मन लोग अब भी एएफडी पर प्रतिबंध लगाने के खिलाफ हैं। उनकी दलील है कि इससे देश की वह 20 फीसदी जनता सरकार की निर्णाय प्रक्रिया से बाहर हो जाएगी जिसने फरवरी के चुनाव में एएफडी को वोट दिया है। इसके साथ ही यह आशंका भी मजबूत है कि इससे पार्टी खुद को शहीद जैसा दिखाकर लोगों की सहानुभूति बटोरेगी।
देश के बाहर से भी विरोध
मैर्त्स को इस कदम पर देश के बाहर से भी विरोध झेलना पड़ सकता है। खासतौर से अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप का जिन्होंने बीएफवी के फैसले की आलोचना की है। ट्रंप इससे पहले भी एएफडी का बचाव करते रहे हैं। अमेरिकी उपराष्ट्रपति जेडी वैंस ने जर्मनी पर 'बर्लिन की दीवार' दोबारा बनाने का आरोप लगाया है। अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रूबियो ने भी इसे 'बदले वेष में उत्पीड़न' बताया और कहा 'जर्मनी को यह प्रक्रिया वापस लेनी चाहिए।'
पार्टी पर प्रतिबंध लगाने की मांग बीते कई सालों से जोर पकड़ रही है। हालांकि इसके दुष्परिणामों की चेतावनी और इस तरह के कदम उठाने में कानूनी मुश्किलों का भी जिक्र खूब होता है। एएफडी के वरिष्ठ सांसद बियाट्रिक्स फॉन स्टोर्क ने शुक्रवार को दलील दी, 'एएफडी के लिए हर एक वोट अब हमारे लोकतंत्र की रक्षा के लिए भी वोट है।'
चरमपंथी पार्टी का दर्जा
बीएफवी ने शुक्रवार को एएफडी के चरमपंथी गुट होने की 'पुष्टि' कर दी। खुफिया एजेंसी ने इसके पीछे, 'विदेशी लोगों को नापसंद करना, अल्पसंख्यक विरोधी, इस्लाम का डर दिखाना और पार्टी के नेताओं के मुस्लिम विरोधी बयानों' का हवाला दिया है। बीएफवी से यह दर्जा मिलने के मतलब है कि अधिकारियों को पार्टी की गतिविधियों पर नजर रखने के लिए और ज्यादा अधिकार मिल जाएंगे। इसमें पार्टी के नेताओं को फोन टेप करना और अंडरकवर एजेंटों की तैनाती जैसे कदम शामिल हैं।
जर्मनी की कार्यवाहक सरकार में गृहमंत्री नैंसी फेजर का कहना है कि एएफडी अपने नारों में, 'आप्रवासी मूल के जर्मन नागरिकों के साथ दोयम दर्जे के नागरिक के समान व्यवहार करती है। इसका राष्ट्रवादी रुख खासतौर से आप्रवासियों और मुसलमानों के खिलाफ इसके बयानों से साबित होता है।'
एएफडी की प्रतिक्रिया
एएफडी के प्रमुख नेताओं एलिस वाइडेल और टिनो क्रुपाला ने बीएफवी के इस कदम की कड़ी आलोचना की है। उन्होंने इसे 'जर्मन लोकतंत्र के लिए बड़ा धक्का' बताया है। उन्होंने इस बात की ओर भी इशारा किया है कि मौजूदा सर्वेक्षणों के हिसाब से एएफडी अब देश की सबसे मजबूत पार्टी है। उन्होंने आरोप लगाया है कि एएफडी को 'सार्वजनिक रूप से अपमानित और गैर कानूनी घोषित' किया गया है। उन्होंने इस मामले पर कानूनी लड़ाई लड़ने की चेतावनी दी है।
जर्मन राजनीतिक दलों के नेता पार्टी पर प्रतिबंध लगाने की मांग कर रहे हैं। सीडीयू के पूर्व सांसद मार्को वांडरवित्स ने शुक्रवार को कहा, 'अब प्रतिबंध की प्रक्रिया तुरंत शुरू करने का वक्त आ गया है।' जर्मन अखबार वेल्ट अम सोनटाग से बातचीत में उन्होंने कहा, 'जो जाहिर था वह अब पुष्ट हो गया है, तो अब उच्च अधिकारियों भी यही कह रहे हैं।' उन्होंने सोशल प्लेटफॉर्म एक्स पर लिखा है, 'लोकतंत्र के दुश्मनों को बिल्कुल भी सहन नहीं करना चाहिए, उनके साथ कोई सहयोग नहीं।'
एसपीडी के सांसद राळ्फ स्टेगनर ने भी कहा कि वह पार्टी पर प्रतिबंध लगाने के पक्ष में हैं। स्टेगनर ने हांडेल्सब्लाट अखबार से कहा है, 'इन लोकतंत्र के दुश्मनों से सारे राजनीतिक और संवैधानिक तरीकों और उपायों से लड़ेंगे जब तक कि हमारे मुक्त लोकतंत्र पर से खतरा खत्म नहीं हो जाता।'
प्रतिबंध लगाने की मुश्किलें
युद्ध के बाद बने जर्मन संविधान में किसी पार्टी को प्रतिबंधित करने को मुश्किल बनाया गया है। तब संविधान निर्माताओं के जहन में नाजी जर्मनी के दौरान विपक्ष को खत्म करने की कोशिशों का उदाहरण था। 1945 के बाद से अब तक सिर्फ दो पार्टियों को प्रतिबंधित किया गया है। इनमें से एक पार्टी है एसआरपी जो नाजी की विरासत से जन्मी थी। उस पर 1952 में प्रतिबंध लगा। इसके बाद वेस्ट जर्मन कम्युनिस्ट पार्टी (केपीडी) को 1956 में प्रतिबंधित किया गया।
प्रतिबंध लगाने के लिए संसद के किसी भी सदन में संघीय सरकार की तरफ से अनुरोध भेजा जाता है। इसके साथ ही यह अनुरोध कार्ल्सरूहे की संवैधानिक अदालत में भी दाखिल किया जाता है।
जर्मन सरकार या उसके मंत्री प्रतिबंध लगाने पर खुद फैसला नहीं ले सकते। उस पर फैसला लेने का अधिकार सिर्फ संवैधानिक अदालत के पास है। अदालत फैसला करने से पहले यह देखती है कि जिस पार्टी के खिलाफ शिकायत की गई है वह राजनीतिक दलों के बीच खुली प्रतिद्वंद्विता को रोकती है। लोकतंत्र के विचार के साथ क्या उस पार्टी के विचार मेल नहीं खाते। इसके साथ ही यह भी देखा जाता है कि कहीं प्रमुख पार्टियां प्रतिद्वंद्विता खत्म करने के लिए तो किसी पार्टी पर प्रतिबंध नहीं लगा रहीं।
2017 में संवैधानिक अदालत ने धुर दक्षिणपंथी पार्टी एनपीडी पर प्रतिबंध लगाने की याचिका खारिज कर दी थी। कोर्ट का कहना है वह देश में इतना प्रभाव नहीं रखती कि लोकतांत्रिक व्यवस्था को उससे कोई असल खतरा महसूस हो। फेजर का कहना है, 'पार्टी पर प्रतिबंध की प्रक्रिया में अच्छी वजहों से बहुत सारी संवैधानिक बाधाएं हैं। इससे कोई इंकार नहीं कर सकता लेकिन सावधानी के साथ इससे निपटा जा सकता है।'
चांसलर ओलाफ शॉल्त्स ने भी जल्दबाजी में कोई कदम उठाने के खिलाफ आगाह किया है। बिल्ड अखबार से बातचीत में उन्होंने कहा, 'मेरे ख्याल से इस मामले में जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए।'