कोलकाता और उसके आसपास के इलाकों में चलने वाली मातृभूमि लोकल खास तौर से महिलाओं की ट्रेन है। पुरूषों को इस पर चढ़ने की इजाजत नहीं। और इसी को लेकर अकसर झगड़ा होता रहा है।
रेल अकेला विकल्प
भारत में रेल को देश की जीवनरेखा कहा जाता है। पश्चिम बंगाल में बहुत सी महिलाएं भी आने जाने के लिए भारतीय रेल पर निर्भर हैं।
केवल महिलाएं
भारतीय ट्रेनों में महिलाओं के लिए अलग से डिब्बे भी होते हैं। लेकिन उनमें भीड़ खूब होती है। कई बार तो सिर्फ खड़े होने के लिए ही जगह मिलती है।
कहासुनी
महिला डिब्बों में पर्याप्त जगह न होने के कारण अकसर महिलाओं को सामान्य डिब्बों में सफर करना पड़ता है। ऐसे में, कई बार पुरूषों से उनकी कहासुनी भी होती है।
आपाधापी
भारतीय रेलवे स्टेशनों पर ऐसा नजारा आम है। भीड़, धक्का-मुक्की और रेलमपेल रोजमर्रा की बात है। इस आपाधापी में कई बार कोई अनहोनी भी हो जाती है।
मातृभूमि का इंतजार
महिलाओं को होने वाली परेशानियों के मद्देनजर कोलकाता में उनके लिए मातृभूमि लोकल के नाम से अलग ट्रेन चलाने के बारे में सोचा गया।
आरामदायक सफर
2010 में तत्कालीन रेल मंत्री और पश्चिम बंगाल की मौजूदा मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की पहल पर पूर्व रेलवे ने मातृभूमि स्पेशल नाम से महिलाओं के लिए विशेष ट्रेनें चलायीं।
टकराव
दूसरी ट्रेनें जहां खचाखच भरी होती हैं, वहीं मातृभूमि लोकल में सीटें भी पूरी नहीं भरतीं। इसीलिए अकसर पुरुष इस ट्रेन को लेकर भेदभाव की शिकायत करते हैं।
विरोध
2015 में इस ट्रेन के तीन डिब्बों को जनरल कोच बनाकर उसमें पुरूषों को सफर करने की अनुमति दे दी गयी। लेकिन महिलाओं के भारी विरोध के बाद इसे फिर से लेडीज स्पेशल करना पड़ा।
पुरूषों की मांग
नाराज पुरूष यात्रियों का कहना है कि या तो मातृभूमि को बंद किया जाये या फिर उनके लिए पितृभूमि लोकल नाम से नई सेवा शुरू की जाये। इस मुद्दे पर खूब खींचतान होती रही है।
कड़ी सुरक्षा
हाल के सालों में महिलाओं की सुरक्षा एक बड़ा मुद्दा बनकर उभरा है। ट्रेनों में कई बार महिलाओं से बदसलूकी के मामले सामने आते हैं। लेकिन मातृभूमि लोकल मनचलों से मुक्त है।
सुविधा
रोजाना उपनगरीय इलाकों से हज़ारों महिलाएं नौकरी और दूसरे कामकाज के सिलसिले में सुबह-सुबह इसी ट्रेन से कोलकाता पहुंचती हैं। महिलाओं का कहना है कि मातृभूमि लोकल के कारण बहुत सुविधा है।