ग्रह धरती की तरह के वे खगोलीय पिंड हैं, जो पृथ्वी के साथ-साथ अंतरिक्ष में अपनी धुरी पर स्थिर रहकर गतिमान हैं। कुछ ग्रह धरती के बराबर के हैं तो कुछ उससे कई गुना बड़े हैं। ये खगोलीय पिंड प्रकृति, पृथ्वी और पृथ्वी पर रहने वाले जीवों पर अपना अच्छा और बुरा प्रभाव डालते हैं। वैदिक ज्योतिष के दृष्टिकोण से सूर्य सबसे चमकीला ग्रह है तथा चन्द्रमा उपग्रह है। अंतरिक्ष में वैसे जो लाखों करोड़ों ग्रह, नक्षत्र और सूर्य है, लेकिन हमारे सौर मंडल में कुछ 6 ग्रह, 1 उपग्रह और 2 छाया ग्रह को ही ज्योतिष शास्त्र में स्थान मिला हुआ है।
हमारे सौर पथ पर परिभ्रमण करने वाले ग्रहों की संख्या भारतीय ज्योतिष के अनुसार मुख्यत: 6 है जिनका धरती पर प्रभाव पड़ता है। ये छह ग्रह है:- सूर्य, बुध, मंगल, शुक्र, ब्रहस्पति और शनि। चंद्रमा धरती का उपग्रह है। इस तरह 7 ग्रह हुए। फिर दक्षिण और उत्तरी ध्रुव के प्रभाव को राहु और केतु कहा गया है जो कि एक प्रकार के छाया ग्रह हैं। इस मान से कुल 9 ग्रह हुए।
हालांकि सौर पथ पर यूरेनस, नेपच्यून तथा प्लूटो नामक ग्रह भी होते हैं। महाभारत में यूरेनस को श्वेत, नेपच्यून को श्याम और प्लूटो को तीक्ष्ण या तीव्र के नाम से संबोधित किया गया है। भारत में यूरेनस को अरुण, नेपच्चून को वरुण और प्लूटो को यम कहते हैं। भारतीय ज्योतिष शास्त्र में बहुत सोच समझकर उक्त नौ को ही फलित या गणना का आधार बनाया है। बाकी अरुण, वरुण या यम का उतना प्रभाव हमारे जीवन पर नहीं पड़ता है जितना की इन नौ ग्रहों का पड़ता है। उसमें भी सूर्य और चंद्र का सर्वप्रथम, फिर मंगल और शुक्र का, फिर बृहस्पति और शनि का प्रभाव पड़ता है। राहु और केतु का प्रभाव भी हमेशा बना रहता है। धरती भी एक ग्रह ही है।
हिन्दू पौराणिक कथाओं में ग्रह के बारे में कहा गया है- 'सम भवते सम ग्रह।' इसका मतलब है जो प्रभावित करता है उसे ग्रह कहा जाता है। ये ग्रह और इनकी स्थिति ही व्यक्तियों को उनके कर्मों या कार्यों का फल देती है। 'बृहत पराशर होरा शास्त्र' (अध्याय 2, पद्य 3-4) के अनुसार भगवान विष्णु के कुछ अवतार धीरे-धीरे ग्रहों के रूप में विकसित हो गए।