Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

व्यंग्य : आओ बेवकूफ बनाएं

हमें फॉलो करें व्यंग्य :  आओ बेवकूफ बनाएं
webdunia

श्याम यादव

भाइयों-बहनों, किसी के माथे पर लिखा नहीं होता कि वह बेवकूफ है। मतलब साफ है कि लोग बेवकूफ होते नहीं, उन्हें बेवकूफ बना दिया जाता है। बेवकूफ जो बनाते हैं, वे बेवकूफ बना दिए लोगों से ज्यादा समझदार होते हैं, ऐसा भी नहीं है।
 
साधारण से साधारण और पढ़े-लिखे ज्ञानी-महाज्ञानियों के बेवकूफ बनाए जाने के समाचार हमारे समाज में कई बार सामने आते हैं। दरअसल, ये एक कला है, जो प्राचीनतम काल से चली आ रही है। लोगों का मानना है कि ये कला उस समय तक जारी रहेगी, जब तक कि इस धरती पर जीवन रहेगा यानी ये अजर और अमर कला है जिसका अंत होना ही नहीं है।
 
समय, काल और परिस्थितियों के अनुरूप बदलने वाली इतनी महत्वपूर्ण इस विद्या को हासिल करने के लिए किसी डिग्री की आवश्यकता वैसे तो होती नहीं है, मगर आजकल दूसरे नामों से इसे कॉलेजों में पढ़ाया जाने लगा है।
 
बेवकूफ बनाने की इस क्रिया को आप कला और विज्ञान दोनों सहित किसी भी कसौटी पर कसें तो इसे सदा खरा ही पाएंगे। वैसे भी भाइयों-बहनों, जो बंदा बेवकूफ बनाता है, वह अपने आप में इतना कॉन्फिडेंट होता है कि आप अनुमान ही लगा नहीं सकते कि वो आपको बेवकूफ बना रहा है। लेकिन बेवकूफ बनने वाले अधिकांश लोग ये जानते हैं कि उन्हें बेवकूफ बनाया जा रहा है फिर भी वे वह बन ही जाते हैं। बेवकूफ बनाने वाला तो यह जानता ही है कि वह सामने वाले या वाली को बेवकूफ बना रहा है।
 
खैर, बेवकूफ बनाने के लिए साल में एक दिन भी निर्धारित किया हुआ है। जी हां, ठीक समझ गए आप। मैं आपको बेवकूफ नहीं बना रहा ना। अप्रैल की पहली तारीख, इस दिन आपको बेवकूफ बनने और बनाने की छूट है।
 
छूट से याद आया कि आपको याद ही नहीं होगा कि आपको 'छूट' के नाम पर भी बाजार में बेवकूफ बनाया जाता है और आप चेहरे पर विजेता की मुस्कान लिए बेवकूफ बन जाते हैं। 'खरीदी पर 60 प्रतिशत तक की छूट, इसके साथ वो फ्री, उसके साथ ये फ्री, बाय वन गेट टू' जैसे सुंदर मनमोहक वाक्य होते हैं, जो आपकी समझ को बेवकूफ बना देने के लिए ऑफर की शक्ल में आते हैं और आप पढ़े-लिखे होकर भी 'वो' बना दिए जाते हैं, जो वे चाहते हैं।
 
इतिहास के पन्नों को खंगालें तो इस प्राचीनतम कला के कई महारथी सामने आते हैं। हमारे देश में देवी-देवता तक इस कला से प्रभावित हुए हैं या उन्होंने इस कला का बाखूबी उपयोग किया है। याद करें मोहिनी रूप धारण कर भगवान विष्णु ने असुरों को बेवकूफ बनाया था या भगवान कृष्ण का गोपियों के साथ रासलीला इसी क्रिया का स्वरूप था।
 
उसके बाद तो ये कला संसार में ऐसी फैली कि आज तक जारी है। 'सिर रहे सलामत तो पगड़ियां मिलेंगी हजार' की कहावत के अनुसार बेवकूफों की कमी नहीं है, बस उन्हें बनाने वाला चाहिए। लोकतंत्र में हम भी तो इसी कला के कायल हैं। भाइयों-बहनों, आप खुद समझदार हैं। एक ढूंढने पर हजार मिल जाते हैं। आप भी ढूंढें।
 
कबीरदासजी के एक दोहे को इसी क्रम में समझना काफी होगा-
 
'बुरा जो ढूंढन मैं चला, बुरा न मिलयो कोई।
 
बस, समझदार के लिए इशारा काफी है।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

वेलेंटाइन डे की कहानी और 10 दिलचस्प तथ्य जिन्हें आप नहीं जानते