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मातृ दिवस और पितृ दिवस: कैलेंडर पर टंगे शब्द

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सुशील कुमार शर्मा

, सोमवार, 16 जून 2025 (15:43 IST)
व्यंग्य आलेख : मातृ दिवस और पितृ दिवस - ये दो ऐसे 'विशेष' दिन हैं, जिनका आविष्कार शायद उस महान आत्मा ने किया होगा, जिसने इंसानी फितरत को बखूबी समझा। यह फितरत, जो पूरे साल मां-बाप को 'फॉर ग्रांटेड' लेने में कोई कसर नहीं छोड़ती, लेकिन साल में एक-एक दिन के लिए अचानक 'संस्कारी' और 'कर्तव्यनिष्ठ' हो उठती है। क्या खूब तमाशा है! लगता है, हमने अपनी भावनाओं को भी कैलेंडर के पन्नों पर अंकित करवा दिया है, ताकि साल के बाकी 363 दिन हमें याद ही न करना पड़े कि हमारे जीवन में इन दो शख्सियतों का क्या स्थान है।ALSO READ: हिन्दी कविता : पिता, एक अनकहा संवाद
 
मातृ दिवस: एक दिन की 'रानी' और 364 दिन की 'नौकरानी'?
 
आह, मातृ दिवस! इस दिन सुबह उठते ही सोशल मीडिया की टाइमलाइन पर शुभकामनाओं की ऐसी बाढ़ आती है, मानो मांओं का राष्ट्रीय त्योहार हो। हर बेटा-बेटी अचानक से कवियों और दार्शनिकों में तब्दील हो जाता है। 'मेरी प्यारी माँ, आप जैसा कोई नहीं!', 'मां, आप मेरी दुनिया हो!', 'मॉम, यू आर द बेस्ट!' - ऐसे जुमले देखकर लगता है, कहीं हमारी मांएं इस बात से कनफ्यूज न हो जाएं कि उन्हें वाकई में इतना सम्मान मिल रहा है, या ये बस 'इंटरनेट-ज्ञान' है।
 
इस दिन मां को सुबह की चाय से लेकर रात के खाने तक 'वीआईपी ट्रीटमेंट' मिलता है। बच्चे बड़े प्यार से नाश्ता बनाएंगे (भले ही वो जल जाए या नमक ज्यादा हो जाए), पिताजी बेचारे भी इस 'क्रांति' में अपना योगदान देंगे, क्योंकि उन्हें पता है, अगर उन्होंने मां को खुश न किया, तो अगले दिन से उनकी अपनी खैर नहीं। गिफ्ट्स की भरमार लग जाती है - कोई साड़ी, कोई कुकिंग सेट, कोई मोबाइल फोन (ताकि मां और ज्यादा रील्स देख सकें)। मां भी बड़े चाव से स्वीकार करती हैं, भले ही उस साड़ी को अलमारी में सबसे निचले शेल्फ पर जगह मिले, या कुकिंग सेट में दाल-चावल ही पकाने हों।
 
मगर इस 'एक दिवसीय उत्सव' का असली व्यंग्य तो तब शुरू होता है, जब मातृ दिवस का सूरज ढलता है। अगले दिन से मां फिर वही 'होम मैनेजर', 'पर्सनल शेफ', 'क्लीनर', 'धोबिन' और '24 घंटे का अटेंशन सीकर' बन जाती हैं। 'मम्मी, वो मेरा स्कूल बैग कहां है?', 'दाल में नमक क्यों कम है?', 'मेरे कपड़े क्यों नहीं धोए?', 'टीवी बंद करो, पूरा दिन क्या देखती रहती हो?'

- ये वो जुमले हैं, जो मातृ दिवस के अगले 364 दिन तक मां के कानों में शहद की बजाय नींबू बनकर टपकते हैं। ऐसा लगता है, जैसे मातृ दिवस कोई 'सरकारी स्कीम' हो, जिसका लाभ सिर्फ 24 घंटे के लिए मिलता है, और उसके बाद आप फिर अपनी पुरानी 'औकात' पर लौट आते हैं। वो 'सुपरमॉम' का खिताब तो बस उस एक दिन के लिए मिला था, बाकी दिन तो वो 'काम वाली बाई' की भूमिका में ही नजर आती हैं।
 
पितृ दिवस: एटीएम का आभार या 'कुछ नहीं चाहिए' का दोहराव?
 
और अब बात करते हैं पितृ दिवस की। ये दिन थोड़ा कम शोरगुल वाला होता है, क्योंकि पिताजी स्वभाव से ही थोड़े 'शांत' किस्म के होते हैं। यहां सोशल मीडिया पर भी तस्वीरें थोड़ी कम और कैप्शन थोड़े 'गंभीर' होते हैं - 'मेरे हीरो पापा', 'आपसे ही सब सीखा', 'धन्यवाद पापा'।

बच्चे इस दिन भी अपनी 'औपचारिकता' निभाते हैं। कोई पिताजी को टाई देगा, कोई शर्ट, और कुछ तो सीधे उनसे पूछ लेंगे, 'पापा, क्या चाहिए आपको?' और पिताजी का वही चिर-परिचित जवाब आएगा, 'अरे बेटा, मुझे कुछ नहीं चाहिए। बस तुम खुश रहो।'
 
यह 'मुझे कुछ नहीं चाहिए' वाला डायलॉग वो ब्रह्मास्त्र है, जिसे पिताजी पूरे साल इस्तेमाल करते हैं, जब भी बच्चे उनसे पैसे या कोई चीज मांगने आते हैं। चाहे वो नए जूते हों, दोस्तों के साथ घूमने का प्लान हो, या फिर महंगी कोचिंग की फीस हो - पिताजी हर बार यही कहकर टालने की कोशिश करते हैं कि उन्हें खुद कुछ नहीं चाहिए। लेकिन फिर भी वो सब कुछ करते हैं। वे सुबह से शाम तक खटते हैं, धूप में पसीना बहाते हैं, सिर्फ इसलिए ताकि उनके बच्चे खुश रहें और उन्हें किसी चीज की कमी न हो।
 
पितृ दिवस पर उन्हें अचानक 'फादर ऑफ द ईयर' का ताज पहना दिया जाता है, जबकि साल के बाकी दिनों में वे बच्चों के लिए 'चलते-फिरते एटीएम', 'बैंक', 'सलाहकार' और 'कभी-कभी डंडा' भी होते हैं।

'पापा, मुझे नया गेम चाहिए', 'पापा, ट्यूशन की फीस भरनी है', 'पापा, मेरा फोन खराब हो गया' - ऐसे अनुरोधों की लिस्ट कभी खत्म नहीं होती। और पिताजी बिना किसी शिकन के, बस अपने फर्ज को निभाते जाते हैं। फिर एक दिन आता है, जब उन्हें 'फादर' के रूप में याद किया जाता है, और वे उस छोटे से सम्मान में भी संतोष ढूंढ लेते हैं।
 
महत्ता का संतुलन: एक दिन का दिखावा बनाम आजीवन समर्पण- 
सच कहूं तो ये मातृ दिवस और पितृ दिवस सिर्फ कैलेंडर पर अंकित तारीखें नहीं, बल्कि हमारी सामाजिक फितरत का एक आईना हैं। ये हमें हंसाते भी हैं और सोचने पर मजबूर भी करते हैं कि क्या हमारे माता-पिता का महत्व सिर्फ इन एक-एक दिनों का मोहताज है? क्या हम इतने व्यस्त हो गए हैं कि हमें उन्हें याद करने और सम्मान देने के लिए किसी 'थीम डे' की जरूरत पड़ती है?
 
उनकी असली महत्ता तो उस निस्वार्थ प्रेम में है, उस अथाह त्याग में है, जो वे बिना किसी शर्त के, बिना किसी दिन-विशेष के, हर पल हमारे लिए करते हैं। मां वो है, जो आपके जन्म से पहले से आपको महसूस करती है, और पिता वो हैं, जो जीवन भर आपको सहारा देते हैं, भले ही खुद कितनी भी मुश्किलों में क्यों न हों।
 
ये दिन हमें एक बहाना देते हैं, उनके प्रति अपने प्रेम, कृतज्ञता और सम्मान को व्यक्त करने का। लेकिन हमें यह याद रखना चाहिए कि यह प्रेम और सम्मान केवल 24 घंटे का न होकर, 365 दिन का होना चाहिए। उनका वास्तविक सम्मान तब है, जब आप उनकी शिक्षाओं को अपने जीवन में उतारते हैं, उनके दिए संस्कारों का पालन करते हैं, और उन्हें हर दिन महत्व देते हैं।
 
क्योंकि असली खुशी उन्हें उस महंगे गिफ्ट या सोशल मीडिया पोस्ट से नहीं मिलती, बल्कि उस छोटे से पल से मिलती है, जब आप बिना किसी खास दिन के, उन्हें एक बार गले लगा लेते हैं, या बस एक छोटा सा धन्यवाद कह देते हैं।

मातृ दिवस और पितृ दिवस हमें यह याद दिलाते हैं कि ये रिश्ते किसी औपचारिक तिथि के मोहताज नहीं, बल्कि ये जीवन की वो नींव हैं, जिन पर हमारा पूरा अस्तित्व टिका है। तो आइए, इन दिनों को एक प्रेरणा मानें, और अपने माता-पिता के प्रति आजीवन कृतज्ञता और प्रेम का भाव रखें, न कि सिर्फ एक दिन के दिखावे का।
 
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