शनै:-शनै: कड़ी – 17
जो सज्जन इसे पढ़ सकते हैं, बहुत संभव है वो इसे समझ नहीं सकेंगे। यद्यपि पढ़ना शिक्षित होना दर्शाता है वरन, समझना समझदारी। जो शिक्षित हो वो समझदार भी हो, यह आवश्यक नहीं। इस वाक्य का उलट भी उतना ही प्रासंगिक है – समझदार का शिक्षित होना कदापि आवश्यक नहीं। प्राय: शिक्षित अपनी नासमझी छुपा लेते हैं, परंतु अशिक्षित अपनी समझदारी प्रदर्शित ही नहीं कर पाते। इस प्राकथ्थन के साथ ही पुन: आरंभ करते हैं - जो सज्जन इसे पढ़ सकते हैं, बहुत संभव है वो इसे समझ नही सकेंगे। अर्थात, मैं जिस गाने की बात कर रहा हूँ वह मलयालम भाषा में है और उस गीत का हिन्दी अनुवाद अभी तक नहीं हो पाया है। और हिन्दी एवं मलयालम, दोनों भाषाओं को पढ़ने और समझने वालो की संख्या नगण्य है। जो सज्जन इसे अभी भी नहीं समझे वे शर्तिया सोशल मीडिया से कोसों दूर हैं। क्योंकि इस वसंतोत्सव के अँग्रेजीकृत वेलेंटाईन दिवस पर यह मलयाली गीत सभी आभासी सामाजिक माध्यमों पर चोटी की पायदान पर है, और व्हाट्स एप के प्रत्येक ग्रुप में प्रति घंटे की आवृत्ति से फॉरवर्ड किया जा रहा है। चंचल नयन वाली इस सुंदरी को राष्ट्रीय प्रेयसी घोषित किया जा चुका है। तीस सेकंड के इस वीडियो ने पूर्व में उफान मचाने वाले 'कोलावेरी डी' के सभी कीर्तिमानों को ध्वस्त करने का निश्चय किया है। चाय की केतली में उफान थमने के पश्चात कोलावेरी डी के नायक नायिका और गायक मंडली आज कल पकोड़े तल जीवन यापन कर रहे हैं।
शीत ऋतु जाने को है और बसंत ऋतु के आगमन की उत्सुकता दिखाई दे रही है। नगरों में गिनती के बचे वृक्ष नए फूल बनाने की तैयारी में लग चुके हैं। उन्मुक्तता चरम की ओर अग्रसर है, तरुण मन में उमंगे हिलोरे ले रही हैं। ऐसे में भला कोई कब तक सैनिक शिविरों पर दुर्दांत आतंकी हमलों के समाचार देखे। कौन है जो इन समाचारों से मुक्ति दिलाये! ऐसे वातावरण में इस विडियो का आना, मानो, चौधरी बलदेव सिंह ने ट्रेन की गति में आने से कुछ ही क्षण पहले सिमरन का हाथ छोड़ दिया हो...... जा सिमरन जा... जी ले अपनी जिंदगी। फिर क्या था, आँख मारने के इशारे को देखकर ही लाखों करोड़ों राज झट जा कर अपनी सिमरन से मिलने को आतुर हो गए। मानो यही विडियो उनकी जिंदगी है। कल तक ये ही युवक पाकिस्तान की ईंट से ईंट बजाने के लिए कुलबुला रहे थे। उधर, प्लेटफॉर्म पर बरसों से कतार में खड़े मूलभूत मुद्दे आज एक बार फिर जाती हुई ट्रेन को कातर दृष्टि से देख पूछ रहे थे... आखिर मेरी बारी कब आएगी? सरकारी तंत्र प्रसन्न है कि जनता मूल मुद्दों की आंधी में अपना मुंह ट्रेंडिंग विडियो में धँसाये मुग्ध है। क्या जनता क्या प्रजा, सभी आनंद में है, वसंत ऋतु जो आ गई है।
तीखे नयन नक्ष, सांवला रंग, मधुर मुस्कान, अध्ययनरत... किसी हिन्दी दैनिक के वैवाहिकी विज्ञापन से प्रेरित यह युवती जब अपनी भृकुटियाँ ऊपर नीचे कर, इतराती हुई सांकेतिक प्रणय निवेदन करती हो तो युवक का गिर जाना यथोचित है। दंत मंजन के विज्ञापन सी मुस्कान से लेस, गोरापन और मुहासों के लेप लगा कर जैसे ही दाहिनी भृकुटी ऊपर उठी और बाईं आँख मंथर गति से बंद हुई, तभी निर्माता निर्देशक को आभास हो गया कि ये अदा तो वायरल हो कर ही मानेगी। और इस अदा पर गिरने वाले युवकों की संख्या एक नही करोड़ों में है। अब फिल्म जब आएगी तब आएगी, फिलहाल तो आप ट्रेलर का मजा लीजिये। वैसे भी सोशल मीडिया और टीवी चैनलों पर घटना की पूर्णता और सत्यता पर समय का अपव्यय कौन करता है भला। इनकी सामाग्री भी चाइनीज माल जैसी ही है – हर माल बीस रुपए, सस्ती, ग्यारंटी-रहित। पर टिकाऊ और उपयोगी रहने के लिए परिश्रम और तत्व नितांत आवश्यक हैं। यदि यह सयानी युवती समय रहते इस मर्म को समझ नही लेती तो वह भी कोलरवेरि-डी, भाग्यश्री, कुमार गौरव व नरेंद्र हीरवानी की तरह चार दिन की चाँदनी के बाद अंधेरी रात में गुम हो सकती है।
वैसे मैं एक राज की बात बता दूँ, जब आप लखनऊ के नवाब वाजीद अली बन कर इस विडियो में हीरे जैसी सूरत से नैन मटक्का कर रहे थे, तब सूरत के हीरे व्यापारी बैंक को चूना लगा कर परदेस गमन कर चुके थे। आज वे विजय और ललित के साथ बैठ कर शतरंज खेल रहे हैं। और सीबीआई साँप निकाल जाने के पश्चात लकीर को पीटते हुए हर चैनल पर देखी जा सकती है। फिलहाल नीरव जी की ये कातिल अदाएं वायरल हो रही हैं और हमारी नायिका..... उनकी प्रसिद्धि बैंकों के शेयरों के भाव की भांति गर्त की ओर तीव्र गति से अग्रसर है।
आपने पढ़ तो लिया पर क्या आप समझे?
॥इति॥
(लेखक मैक्स सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल, साकेत, नई दिल्ली में श्वास रोग विभाग में वरिष्ठ विशेषज्ञ हैं)