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पुस्तक मेले से बुलावा नहीं आना

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मनोज लिमये

देश की राजधानी में विश्व स्तर के पुस्तक मेले का आयोजन एक बार पुनः मेरी उपस्थिति के बिना आरम्भ हो गया। इस प्रकार के साहित्यिक मेलों में रचनाकार आमंत्रित किए जाते हैं। इन मेलों में आप दर्शक या पाठक की तरह तो आतंकवादियों की मानिंद निःशुल्क घुस सकते हैं लेकिन मंच पर बैठने हेतु जुगाड़ होना प्रथम शर्त है। जुगाड़ किस्म के रचनाकार प्रकाशकों की पीठ पर बैताल की भांति लटक कर अपनी पुस्तकों का विमोचन करने का पुनीत कार्य सदियों से करते आए हैं। पुस्तक मेले का आयोजन होना इस बात का पुख्ता प्रमाण है कि पुस्तकों की स्थिति विचारणीय होती जा रही है।

अपने को शुरुवात से ही इस बात का मुगालता नहीं था कि अपने को उधर फटकने का न्यौता मिलेगा। जब शहर में भाषा पर आयोजित होने वाली गोष्ठियों में ही अपना नंबर नहीं लगता, तो विश्व स्तर के आयोजन के विषय में ऐसी गलतफहमी बनती भी नहीं है। समाचार पत्रों में जब कभी रचनाएं प्रकाशित हुईं, तब लोगों की गर्दन पकड़-पकड़ कर उन्हें पढ़वाईं। अब भय यही है कि विश्व पुस्तक मेले में शिरकत नहीं किए जाने पर वे अपना उपहास उड़ाएंगे। सब्जी मंडी में कुछ ऐसा ही घटित हुआ। मालवी जी सब्जियों के ठेले पर निश्चित दूरी से मटर निहारते हुए नजर आ गए।
 
उनके चेहरे पर जानकारियों का नूर स्पष्ट रूप से दृष्टिगोचर हो रहा था। मुझे ईल्म था कि उनसे दुआ-सलाम करना मधुमक्खी के छत्ते में हाथ देने जैसा है। नोटबंदी के चलते मटर से वैसे भी मुझे लेना नहीं था इसलिए मैंने अपना मुंह करेलों के ठेले की और कर लिया। मैं अभी अपनी इस हरकत पर गर्व भी नहीं कर पाया था कि उन्होंने पीछे से कंधे पर हाथ रखते हुए कहा 'क्यों जनाब पुस्तक मेले से बुलावा नहीं आया आपको?' उनके इस प्रश्न में जिज्ञासा की महक कम तथा तंज की मिर्ची अधिक थी। मैंने अर्जित किए करेलों को थैली के सुपर्द कर उनसे कहा' आजकल हवाबाजी और हवालाबाजी का जमाना है महोदय, हम जैसे गाहे-बगाहे छपने वाले लेखकों को कौन पूछता है'।
 
वे एड़ियों के बल का प्रदर्शन करते हुए मेरे थैले में मटर की उपस्थिति-अनुपस्थिति को भांपते हुए बोले 'भाईसाब जब भी आपकी कोई रचना प्रकाशित होती है तो पूरा मोहल्ला-दफ्तर सिर पर उठा लेते हो, फेसबुक से लेकर व्हाट्सअप तक सब जगह अपने लेखों की फोटु चिपका देते हो अब ऐसे में हमें तो यही लगेगा न कि हिन्दी में लिखने वाला विश्व स्तर के पुस्तक मेले में क्यों नहीं बुलाया गया?'
 
इस अप्रत्याशित हमले के बाद मेरी स्थिति होम वर्क ना कर के लाने वाले अबोध बालक समान हो गई। मैंने अपने बिखरे हुए आत्मविश्वास को तिनका-तिनका जोड़ते हुए कहा 'देखिए अपने से बड़े-बड़े नामी-गिरामी साहित्यकार वहां नहीं थे, सब जगह राजनीति और नौकरशाही वाबस्ता है और बाकी आप तो समझदार हैं ही फिर 'मेरे द्वारा दी गई इन दलीलों में से शायद वो जिस एक बात से पूर्ण इत्तेफाक रखते थे वो था मेरे द्वारा उन्हें समझदार कहना।
 
वे बोले 'मैं भी कॉलेज में बहुत अच्छा क्रिकेटर था लेकिन राजनीति के चलते भारतीय टीम में नहीं आ पाया मैं आपकी पीड़ा तथा राजनीति दोनों को समझता हूं 'वे मेरे दोपहिया पर बैठ गए। उनकी आश्वस्ति मेरे लिए विश्व पुस्तक मेले में प्रविष्ठी में आमंत्रण से बड़ी उपलब्धि थी।
 

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