नैनीताल। कांग्रेस महासचिव एवं राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत तथा भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष अशोक भट्ट के मैदान में उतरने से उत्तराखंड की नैनीताल-उधमसिंह नगर सीट सबसे खास हो गई है और यहां का चुनाव काफी दिलचस्प हो गया है।
भाजपा ने वर्तमान सांसद भगत सिंह कोश्यारी के स्थान पर इस बार अजय भट्ट पर दांव लगाया है वहीं कांग्रेस ने हरीश रावत को यहां पहली बार मैदान में उतारा है। दोनों प्रत्याशी इस सीट के लिए नए हैं। इससे पहले कांग्रेस के केसी सिंह बाबा 2004 और 2009 में इस सीट पर लगातार 2 बार प्रतिनिधित्व कर चुके हैं। पिछली बार 2014 में मोदी लहर में भगत सिंह कोश्यारी ने केसी सिंह बाबा को रिकॉर्ड 2,84,717 मतों से मात दी थी।
चुनावी रणनीति के रूप से भी देखा जाए तो फिलहाल कांग्रेस, भाजपा के मुकाबले पिछड़ती दिखाई दे रही है। भाजपा बहुत पहले से ही चुनावी मोड में आ गई थी। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की दोनों मंडलों में 2 रैलियां आयोजित करके भाजपा ने पहले ही माहौल अपने पक्ष में कर लिया है।
जहां तक प्रत्याशियों की बात है तो पहाड़ी मतदाता बहुल इस सीट पर दोनों उम्मीदवार पहाड़ से संबंध रखते हैं और दोनों अल्मोड़ा जिले के निवासी हैं। दोनों इस सीट पर पहली बार भाग्य आजमा रहे हैं। दोनों ही वर्तमान में किसी भी संवैधानिक पद पर तैनात नहीं हैं। दोनों को ही 2017 में हुए पिछले विधानसभा चुनाव में हार का सामना करना पड़ा था।
भट्ट को प्रदेश अध्यक्ष रहते हुए हार का मुंह देखना पड़ा था, वहीं हरीश रावत को मुख्यमंत्री रहते हुए शिकस्त का सामना करना पड़ा था। भट्ट को अपनी परंपरागत रानीखेत से हार का सामना करना पड़ा तो रावत को 2 विधानसभा सीटों किच्छा और हरिद्वार में हार का मुंह देखना पड़ा। यही नहीं, रावत को 2014 के लोकसभा चुनाव में हरिद्वार सीट पर भाजपा के निवर्तमान सांसद रमेश पोखरियाल 'निशंक' ने शिकस्त दी थी।
आंकड़ों के लिहाज से देखें तो इस सीट पर भाजपा के मुकाबले कांग्रेस अधिक मजबूत दिखाई देती है। कांग्रेस इस सीट पर आधे से अधिक बार जीत हासिल कर चुकी, वहीं भाजपा ने मात्र 3 बार इस सीट पर जीत हासिल की है। इस बार कांग्रेस ने ठाकुर प्रत्याशी पर दांव लगाया है तो भाजपा ने ब्राह्मण उम्मीदवार को मैदान में उतारा है। बतौर ब्राह्मण प्रत्याशी एनडी तिवारी, केसी पंत और उनकी धर्मपत्नी इला पंत इस सीट पर 3-3 बार जीत हासिल कर चुके हैं। 1 बार सीडी पांडे ने ब्राह्मण प्रत्याशी के तौर पर विजय हासिल की है।
1957 में अस्तित्व में आई इस सीट पर शुरू से ही कांग्रेस का कब्जा रहा। बीच में 1977 में भारतीय लोकदल और 1 बार तिवारी कांग्रेस को इस सीट पर सफलता हाथ लगी। सन् 1991, 1998 और 2014 के लोकसभा चुनाव में ही भाजपा को इस सीट पर जीत हासिल हो पाई।
पहाड़ी मतदाता बहुल इस सीट पर मुस्लिम, बंगाली, पूर्वांचली और पंजाबी मतदाता भी अच्छी-खासी संख्या में हैं। सपा-बसपा गठबंधन ने भी पंजाबी, मुस्लिम, अनुसूचित जाति एवं जनजाति के मतदाताओं के लिहाज से नवनीत अग्रवाल पर दांव लगाया है। (वार्ता)