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आजमगढ़ में मुश्किल नहीं है अखिलेश की राह

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अवनीश कुमार

, सोमवार, 8 अप्रैल 2019 (16:08 IST)
उत्तर प्रदेश में इस समय राजनीतिक गलियारों में अगर सबसे ज्यादा बेहद चर्चा किसी सीट की है तो वह आजमगढ़ लोकसभा की है। इसके पीछे की मुख्य वजह सिर्फ और सिर्फ यही है कि इस सीट पर एक लंबे समय तक कांग्रेस ने, फिर बीच में बीजेपी ने और सबसे अधिक समय तक समाजवादियों ने अपना परचम लहराया है।
 
इसका जीता-जागता उदाहरण 2014 के लोकसभा चुनाव में भी देखने को मिला था, जहां एक और मोदी की लहर में बड़े से बड़े किले ध्वस्त हो गए थे तो वहीं आजमगढ़ ने मुलायमसिंह को लोकसभा चुनाव जिताकर दिल्ली भेजा था और खुद मुलायम ने भी आजमगढ़ की जनता का दिल से धन्यवाद करते हुए कहा था कि आजमगढ़ लोकसभा नहीं उनकी दिल की धड़कन है।
 
ऐसे में 2019 के लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी से कोई और नहीं खुद मुलायम के पुत्र व उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव चुनावी मैदान में हैं। अखिलेश को रोकने के लिए बीजेपी ने भी अपने कद्दावर रमाकांत यादव की टिकट काटते हुए भोजपुरी फिल्मों के स्टार दिनेश लाल यादव उर्फ निरहुआ को टिकट दी है।
 
अब सवाल यह भी उठता है कि कद्दावर नेता रमाकांत यादव की टिकट काटकर फिल्म स्टार को टिकट देकर बीजेपी ने कोई गलती तो नहीं की है, क्योंकि जहां एक ओर फिल्मी दुनिया में निरहुआ का ठीक-ठाक नाम है तो वहीं राजनीति के मैदान में रामाकांत यादव का अपना एक अलग ही वर्चस्व है। उनकी यादवों में ठीक-ठाक पैठ है।
 
दूसरी ओर उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव का अपना एक अलग ही वर्चस्व है। इसे बीजेपी के कई बड़े नेता मान चुके हैं। ऐसे में बीजेपी ने अखिलेश यादव को टक्कर देने के लिए जो फैसला लिया है वह कितना सही है यह तो आने वाला समय ही बताएगा, लेकिन अखिलेश यादव के लिए भी आजमगढ़ को बचाए रखना बेहद जरूरी है।
 
2014 में हुई थी कांटे की टक्कर : 2014 लोकसभा चुनाव में आजमगढ़ संसदीय सीट से 18 प्रत्याशियों ने किस्मत आजमाई थी। मुख्य मुकाबला समाजवादी पार्टी के मुलायमसिंह यादव और भाजपा के रमाकांत यादव के बीच रहा। मुलायम को 3,40,306 वोट मिले जबकि रमाकांत को 277,102 वोट से ही संतोष करना पड़ा था। बसपा के शाह आलम उर्फ गुड्डू जमाली 266,528 मत हासिल कर तीसरे और कांग्रेस के अरविंद कुमार जायसवाल 17,950 वोट पाकर चौथे स्थान पर रहे थे।
 
क्या हैं समीकरण : आजमगढ़ लोकसभा सीट पर लगभग 18 लाख मतदाता हैं। इनमें पुरुष लगभग 10 लाख तो महिलाएं लगभग 8 लाख के आसपास हैं। जातिगत आधार पर देखें तो यादव, मुस्लिम और दलित मिलाकर यहां 50 प्रतिशत के लगभग मतदाता इनकी बिरादरी के ही हैं। जब मुलायमसिंह लड़े थे उस समय किसी भी प्रकार का कोई गठबंधन नहीं था। भाजपा के अलावा बसपा व कांग्रेस ने मुलायम के खिलाफ अलग-अलग प्रत्याशी मैदान में उतारे थे। उस समय मुलायम को 37 प्रतिशत वोट मिले थे और मुलायम विजयी रहे थे।
 
वहीं, 28 प्रतिशत वोट भाजपा के खाते में आया था और भाजपा के प्रत्याशी रमाकांत यादव को हार का सामना करना पड़ा था। इस समय अखिलेश यादव गठबंधन के प्रत्याशी हैं और कांग्रेस ने अखिलेश के खिलाफ प्रत्याशी नहीं उतारा है जिससे सीधे तौर पर लड़ाई अखिलेश यादव व बीजेपी के दिनेश निरहुआ की मानी जा रही है।
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क्या कहते हैं जानकार : वरिष्ठ पत्रकार नीरज चौधरी व अजय कुमार की मानें तो आजमगढ़ के गढ़ को बचाना अखिलेश यादव के लिए कठिन नहीं है। उसके पीछे की मुख्य वजह एमवाई और डी फैक्टर है। पत्रकारद्वय कहते हैं कि आजमगढ़ लोकसभा में यादवों के साथ- साथ मुसलमानों का ठीक-ठाक वोट बैंक है। इस वक्त कांग्रेस का प्रत्याशी मैदान में नहीं है, ऐसे में मुसलमान वोट 100% अखिलेश यादव को मिलना है। यादव समुदाय के वोटों का बड़ा हिस्सा भी भाजपा के पक्ष में जा सकता है।
 
2014 में अगर 28 प्रतिशत वोट बीजेपी को मिलेथे तो उसके पीछे की मुख्य वजह मोदी लहर थी। साथ ही रमाकांत यादव की भूमिका भी कम नहीं थी। रमाकांत आजमगढ़ की सीट से कई बार सांसद रह चुके हैं और रमाकांत यादव का यादव वोट बैंक पर ठीक-ठाक पकड़ भी थी जिसके चलते 2014 में मुलायम सिंह यादव को रमाकांत यादव ने कांटे की टक्कर दी थी। रमाकांत ने यादव वोट बैंक में अच्छी खासी सेंधमारी कर दी थी।
 
2019 लोकसभा चुनाव की टक्कर अखिलेश और दिनेश लाल यादव उर्फ निरहुआ के बीच होनी है अब ऐसे में देखने वाली बात यह है कि निरहुआ कितना यादव वोट बैंक में सेंधमारी कर लेते हैं। यह वक्त ही तय करेगा की जीत का सेहरा किसके सिर होगा, लेकिन यह कहना अखिलेश के लिए कठिन है तो यह गलत होगा क्योंकि अगर निरहुआ फिल्म स्टार हैं तो अखिलेश यादव उत्तर प्रदेश के अंदर राजनीति की दुनिया में स्टार हैं सीधे तौर पर एक फिल्म स्टार और राजनीतिक स्टार की लड़ाई आजमगढ़ में देखने को मिलेगी।

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