लोकसभा चुनाव में भाजपा और कांग्रेस दोनों ही बड़े दलों ने मतदाताओं को लुभाने के लिए वादों का पिटारा खोल दिया है। किसानों और गरीबों को आकर्षित करने के लिए बड़ी-बड़ी घोषणाएं की गई हैं। भाजपा ने किसानों को 6 हजार रुपए साल देने के साथ ही पेंशन देने का भी वादा किया है। कांग्रेस ने भी गरीबों को 72 हजार रुपए प्रतिवर्ष देने का भरोसा दिया है। अब सवाल यह उठता है कि पहले से ही कर्ज में डूबी सरकार इतना पैसा कहां से लाएगी? आम लोगों पर इसका क्या असर होगा?
भाजपा ने अपने घोषणा पत्र में दावा किया है कि कृषि क्षेत्र में उत्पादकता बढ़ाने के लिए 25 लाख करोड़ रुपए का निवेश किया जाएगा। देश के सभी किसानों को 6 हजार रुपए साल पीएम किसान सम्मान निधि योजना का लाभ देने की बात भी कही गई है। संकल्प पत्र में छोटे तथा खेतिहर किसानों की सामाजिक सुरक्षा के लिए 60 वर्ष की उम्र के बाद पेंशन का उल्लेख किया गया है। किसान क्रेडिट कार्ड पर 1 लाख का कर्ज 5 साल ब्याज मुक्त रहेगा।
दूसरी ओर कांग्रेस ने भी अपने घोषणा पत्र में चुनावी वादों की बरसात कर दी है। पार्टी ने 31 मार्च 2020 तक 22 लाख सरकारी नौकरियां देने का वादा किया है।
न्याय योजना के तहत हर साल किसानों के खाते में 72 हजार रुपए देने का भी वादा किया है। दावा किया जा रहा है कि इससे सीधे तौर पर अर्थव्यवस्था को फायदा मिलेगा। मनरेगा के अंदर 150 दिनों का गारंटीड रोजगार का वादा किया है। देश की जीडीपी का 6 प्रतिशत हिस्सा शिक्षा पर खर्च किया जाएगा। स्वास्थ्य के क्षेत्र में सरकारी अस्पतालों को मजबूत बनाने का वादा किया गया है। बहरहाल कई विशेषज्ञों का मानना है कि कांग्रेस की इस योजना को लागू करना बहुत ही मुश्किल है क्योंकि इसके लिए पैसा कहां से आएगा।
कांग्रेस की सरकार बनने पर घोषणापत्र का क्या होगा GDP पर असर : माना जा रहा है कि कांग्रेस को न्याय योजना को लागू करने के लिए 3.6 लाख करोड़ रुपए की आवश्यकता होगी, जो कि जीडीपी का 1 प्रतिशत से ज्यादा है। इसमें केंद्र और राज्य दोनों की हिस्सेदारी होगी। कर राजस्व में केंद्र के हिस्से का यह पांचवां भाग है। स्वास्थ्य पर जीडीपी का 3 प्रतिशत और शिक्षा पर जीडीपी का 6 प्रतिशत तक खर्च होने का अनुमान है। इस तरह अगर कांग्रेस की सरकार बनती है तो जीडीपी का लगभग 10 प्रतिशत हिस्सा तो इन तीन योजनाओं पर ही खर्च होने का अनुमान है।
भाजपा राज आने पर GDP पर घोषणापत्र का असर क्या होगा : भाजपा ने अपने संकल्प पत्र में विनिर्माण क्षेत्र से जीडीपी में सुधार लाने की दिशा में काम करने का वादा किया। पार्टी का दावा है कि उत्पादन बढ़ने से जीडीपी ऊपर जाएगी और रोजगार के अवसर भी बढ़ेंगे। बहरहाल भाजपा की किसान सम्मान निधि योजना पर 75 हजार करोड़ रुपए खर्च होने का अनुमान है।
प्रत्यक्ष रूप से क्या होगा आप पर असर : इन योजनाओं को पूरा करने के लिए धन की आवश्यकता होगी जो सरकार द्वारा बजट के माध्यम से जारी किया जाएगा। सरकार कई बार वस्तुओं और सेवाओं पर उपकर लगाकर जनता से प्रत्यक्ष रूप से पैसे ले लेती है। उपकर लगाने की सूचना लोगों को समाचार माध्यमों से मिल जाती है। उदाहरण के लिए अगर पेट्रोल पर सेस लगाया जाता है तो पेट्रोल खरीदने वाले पर इसका प्रत्यक्ष असर पड़ेगा। अन्य लोगों पर इसका भार नहीं आएगा।
अप्रत्यक्ष रूप से कैसे पड़ेगा असर : सरकार टैक्स के माध्यम से जो पैसा इकट्ठा करती है उससे ही देश की व्यवस्था सुचारु ढंग से चलती है। सरकार योजनाएं चलाने के लिए सीधे फंड जारी कर देती है। इससे यह पता नहीं चलता कि किस तरह के करदाता पर इसका क्या असर पड़ रहा है। बहरहाल इस स्थिति में सभी पर इसका असर होता है।
अगर कहीं और से लिया तो ब्याज भी देना होगा : अगर सरकार ने योजनाओं के लिए वर्ल्ड बैंक या कहीं और से पैसा लिया तो भी उसे चुकाना होगा। साथ ही ब्याज भी देना होगा। इसका भार भी अंतत: करदाताओं पर ही आएगा। गौरतलब है कि जब बजट में रुपए का हिसाब पेश किया जाता है तो बढ़ते राजकोषीय घाटे को देख दिग्गज वित्त विशेषज्ञों का भी दम फूलने लगता है।
GST से परेशान व्यापारी का क्या होगा हाल : नोटबंदी और GST के बाद से ही व्यापारियों का हाल बेहाल है। ऐसे में राजनीतिक दलों द्वारा की जा रही चुनावी घोषणाओं ने उसकी नींद उड़ा कर रख दी है। व्यापारी यह बात अच्छे से जानता है कि नकद और उधार में क्या अंतर होता है। अगर टैक्स के पैसे इस तरह की योजनाओं पर पानी की तरह बहा दिए तो भी देश का ही नुकसान है और उधार लेकर यह काम किया तो भी इसका खामियाजा लोगों को ही भुगतना होगा।
सरकार बदलते ही योजनाओं का होता है बुरा हाल : यह बात भी किसी से छिपी हुई नहीं है कि सरकार के बदलते ही सफल योजनाओं के नाम बदल जाते हैं। कई योजनाओं को पैसा आवंटित होना बंद हो जाता है और कई योजनाएं बेकार बताकर बंद कर दी जाती हैं।
बहरहाल दोनों में से कोई भी दल चुनाव जीतकर सरकार बनाने में सफल होता है तो उस पर चुनाव घोषणापत्र में किए गए वादों को पूरा करने का दबाव होगा। सबसे बड़ा सवाल तो यही है कि यह उठता है कि इसके लिए पैसा कहां से आएगा? इसका जवाब है कि सरकार किसी भी वर्ग के लिए कोई भी योजना लाए, उसका भार प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से आम आदमी पर ही पड़ता है।