लोकसभा चुनाव के लिए टिकटों के बंटवारे का मामला अंतिम दौर में है और जो उठापटक चल रही है, उससे कई संसदीय क्षेत्रों में समीकरण बिगड़ते नजर आ रहे हैं। लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन द्वारा खुद को उम्मीदवारी की दौड़ से बाहर करने के बाद भाजपा के लिए सबसे ज्यादा उलझन अपने ही गढ़ में इंदौर में हो गई है।
इंदौर में सुमित्रा महाजन के मैदान से हटने के बाद कौन चुनाव लड़ेगा, इसको लेकर शुक्रवार दोपहर बाद से ही अटकलबाजी चल रही है। महापौर मालिनी गौड़, विधायक रमेश मेंदोला, पूर्व महापौर कृष्णमुरारी मोघे, भाजपा के नगर अध्यक्ष गोपीकृष्ण नेमा, प्राधिकरण अध्यक्ष रहे शंकर लालवानी और पूर्व विधायक भंवरसिंह शेखावत तो वे नाम हैं जो खुलकर सामने आ गए। इससे इतर भी कुछ नेताओं ने टिकट के लिए प्रयास शुरू कर दिए हैं। इनमें से कुछ तो महाजन के दरबार में पहुंचकर मदद की दर्खास्ता लगा चुके हैं।
इंदौर से कांग्रेस के टिकट को लेकर भी कम खींचतान नहीं है। मुख्यमंत्री चाहते हैं कि यहां से ज्योतिरादित्य सिंधिया चुनाव लड़ें, लेकिन वे इसके लिए तैयार नहीं है। सिंधिया को इंदौर से लड़ाने के पीछे मुख्यमंत्री का मंतव्य यह है कि मालवा-निमाड़ में 8 सीटों पर इसका सीधा फायदा कांग्रेस को मिलेगा। सुमित्रा महाजन के मैदान से हटने के बाद यहां से कांग्रेस के दावेदारों की संख्या में एकाएक इजाफा हो गया है।
टिकट के एक मजबूत दावेदार पंकज संघवी ने मुख्यमंत्री कमलनाथ को यह स्पष्ट कर दिया है कि वे वर्तमान स्थिति में हर हालत में यह सीट जीत सकते हैं। कांग्रेस की मीडिया कमेटी की चेयरमैन शोभा ओझा खुद तो चुनाव लडऩा नहीं चाहतीं, लेकिन वैश्य मतों की आड़ लेकर अरविंद बागड़ी का नाम आगे बढ़ा रही हैं। वैश्य मतों का ही समीकरण शिक्षाविद स्वप्निल कोठारी की दावेदारी का भी आधार है।
शिक्षामंत्री जीतू पटवारी खुद चुनाव लडऩा चाहते हैं और सबसे मजबूत दावेदार हैं, लेकिन कांग्रेस के प्रदेश नेतृत्व ने किसी विधायक को चुनाव न लड़ाने का जो नीतिगत निर्णय लिया है, वह उनके मार्ग में सबसे बड़ी बाधा है। पटवारी की पत्नी रेणुका पटवारी को भी एक विकल्प के रूप में देखा जा रहा है, पर उनके सामने भी समस्या व्यापक पहचान की है। ठीक ऐसी ही स्थिति डॉ. पूनम माथुर के मामले में बन रही है। इस सबके चलते इंदौर का फैसला नहीं हो पा रहा है।
मालवा-निमाड़ क्षेत्र में कांग्रेस के लिए सबसे सुरक्षित सीट धार मानी जा रही थी, यहां से गजेन्द्रसिंह राजूखेड़ी का टिकट तय था और उनका नाम भी पैनल में सिंगल ही था। जिले के दो विधायकों वन मंत्री उमंग सिंघार और राज्यवद्र्धनसिंह दत्तीगांव द्वारा केंद्रीय नेतृत्व के समक्ष ऐनवक्त पर दर्ज करवाए गए विरोध के कारण राजूखेड़ी का नाम होल्ड पर चला गया और अब वहां से उनके अलावा दिनेश गिरवाल और राधेश्याम मुवेल भी उम्मीदवारी की दौड़ में आ गए हैं।
धार जिले के तीन कांग्रेस विधायक मंत्री हनी बघेल, पांचीलाल मेड़ा और प्रताप ग्रेवाल के साथ ही जिला कांग्रेस के अध्यक्ष बालमुकुंद गौतम और अल्पसंख्यक मोर्चे के प्रदेश अध्यक्ष मुजीब कुरैशी राजूखेड़ी की उम्मीदवारी के पक्ष में हैं। यहां के भाजपा टिकट को लेकर भी खासी उठापटक मची हुई है। विक्रम वर्मा और रंजना बघेल के खेमों में बंटी भाजपा एक दूसरे की टांग खींचने में लगे हैं।
देवास में तमाम दावेदारों को दरकिनार कर भाजपा ने न्यायाधीश महेन्द्र सोलंकी को उम्मीदवार बना दिया है। उनकी उम्मीदवारी को न तो केंद्रीय मंत्री थावरचंद गेहलोत के समर्थक पचा पा रहे हैं, न ही पूर्व सांसद मनोहर ऊंटवाल के समर्थक। गेहलोत यहां से चंद्रशेखर मालवीय को उम्मीदवार बनवाना चाहते थे तो संघ का जोर मनीष सोलंकी के नाम पर था, पर दोनों के ही दावों को दरकिनार कर दिया गया।
भाजपा उम्मीदवार के सामने व्यापक पहचान का अभाव भी एक बड़ा मुद्दा है, क्योंकि कांग्रेस ने यहां से लोकप्रिय कबीर गायक पद्मश्री प्रहलादसिंह टिपाणिया को मैदान में लाकर भाजपा की राह वैसे ही कठिन कर रखी है।
खरगोन सीट पर कांग्रेस ने बिलकुल नए चेहरे डॉ. गोविन्द मुजाल्दा को मौका दिया है। यहां जिला कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष सुखलाल परमार ने उनकी खिलाफत कर दी है। जब तक यहां से गृहमंत्री बाला बच्चन की पत्नी प्रवीणा बच्चन का नाम उम्मीदवारी की दौड़ में था, तब सब एकजुट होकर उनके नाम पर रजामंद थे, लेकिन जैसे ही मुजाल्दा का नाम घोषित हुआ कांग्रेस की गुटबाजी सामने आ गई। मुखरता से विरोध कर रहे परमार पूर्व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अरुण यादव के कट्टर समर्थक हैं।
(इस लेख में व्यक्त विचार/विश्लेषण लेखक के निजी हैं। इसमें शामिल तथ्य तथा विचार/विश्लेषण वेबदुनिया के नहीं हैं और वेबदुनिया इसकी कोई ज़िम्मेदारी नहीं लेती है)