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एक मंच पर मायावती और मुलायम, महागठबंधन को होंगे यह 6 बड़े फायदे

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नृपेंद्र गुप्ता

मैनपुरी। बसपा प्रमुख मायावती और सपा के संस्थापक मुलायम सिंह यादव शुक्रवार को 24 साल बाद एक मंच पर दिखाई दिए। दोनों दिग्गज नेताओं के एक मंच पर आने से महागठबंधन से जुड़ी सभी नेताओं की बांझें खिल गई। इस चुनावी घटना का महागठबंधन को 6 बड़े फायदे होने की संभावना है... 
 
दोनों ही दलों को होगा फायदा, कैश होंगे परंपरागत वोट : दोनों दिग्गजों के एक मंच पर आने से लोकसभा चुनाव के शेष चरणों में दोनों ही दलों को खासा फायदा मिल सकता है। इससे सपा के परंपरागत वोटर्स का रुझान बसपा उम्मीदवारों की ओर बढ़ सकता है, वहीं बसपा के वोटर्स की दिलचस्पी भी सपा उम्मीद्वारों में बढ़ सकती है।
 
टीम के रूप में काम करेंगे कार्यकर्ता : बसपा और सपा भले ही महागठबंधन बनाकर चुनाव मैदान में थी लेकिन मायावती और मुलायम के एक मंच पर आने से दोनों ही दलों के कार्यकर्ता अब पहले से ज्यादा एकजुट होकर कार्य कर सकेंगे। इससे यूपी में दोनों ही दलों के उन उम्मीदवारों को फायदा मिलेगा जिनकी स्थिति कमजोर नजर आ रही है।
 
मुस्लिम, दलित और यादव वोटों का ध्रुवीकरण : मायावती और मुलायम की दोस्ती से यूपी में मुस्लिम, दलित और यादव वोटों का ध्रुवीकरण हो सकता है। इससे कई सीटों पर भाजपा की परेशा‍नी बढ़ जाएगी। 
 
यूपी में बड़ा शक्ति प्रदर्शन : सपा और बसपा दोनों ही इस दुलर्भ अवसर का बड़ा राजनीतिक लाभ उठाना चाहते हैं। इसके लिए बड़े पैमाने पर तैयारियां की गई। इस रैली को महागठबंधन का अब तक का सबसे बड़ा शक्ति प्रदर्शन माना जा रहा है। 
 
दूर हुए गिले-शिकवे : साल 1993 में गठबंधन कर सरकार बनाने वाली सपा और बसपा के बीच पांच जून 1995 को लखनऊ में हुए गेस्ट हाउस कांड के बाद जबर्दस्त खाई पैदा हो गई थी। दोनों नेताओं के एक मंच पर आने से दोनों दलों के कार्यकर्ताओं के गिले-शिकवे दूर करने में मदद मिलेगी। हालांकि लोकसभा चुनाव से पहले सपा से हाथ मिलाने के बाद मायावती स्पष्ट कर चुकी हैं कि दोनों पार्टियों ने बीजेपी को हराने के लिए आपसी गिले—शिकवे भुला दिए हैं।
 
एकजुटता का संदेश : इसके जरिये महागठबंधन ने प्रतिद्वंद्वियों को यह संदेश देने की कोशिश की कि सपा, बसपा और रालोद सभी बीजेपी के खिलाफ एकजुट हैं। इन नेताओं के एक मंच पर आने से यह भी साफ हो गया कि मुलायम अब मायावती के साथ गठबंधन से नाराज नहीं है।
 

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