Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia

आखिर अपनी ही प्रजा से क्यों हार गए 'महाराज' ज्योतिरादित्य सिंधिया?

Advertiesment
हमें फॉलो करें आखिर अपनी ही प्रजा से क्यों हार गए 'महाराज' ज्योतिरादित्य सिंधिया?
, शनिवार, 25 मई 2019 (09:35 IST)
भोपाल। लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को पूरे देश में करारी हार का सामना करना पड़ा है। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के अमेठी से और कांग्रेस महासचिव और सिंधिया घराके के महाराज ज्योतिरादित्य सिंधिया के गुना से मिली करारी हार ने सभी को अचरज में डाल दिया है। गुना सीट ग्वालियर राजघराने की परंपरागत सीट रही है। आजादी के बाद से हुए किसी भी चुनाव यहां से सिंधिया घराने के किसी भी सदस्य को हार का सामना नहीं करना पड़ा था। ऐसे में सवाल उठ रहा है कि ऐसे कौन से कारण है कि आखिर ‘महाराज’ सिंधिया को उनकी प्रजा के सामने ही हार का मुंह देखना पड़ा।
 
मोदी मैजिक – गुना-शिवपुरी लोकसभा सीट पर कांग्रेस उम्मीदवार ज्योतिरादित्य सिंधिया का सामना भाजपा के प्रत्याशी केपी यादव से था। भाजपा ने पूरे चुनाव प्रचार के दौरान इस बात को लोगों के सामने रखा कि चुनाव केपी यादव नहीं खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ही लड़ रहे हैं। लोकसभा चुनाव प्रचार के समय जब गुना से भाजपा ने अपने उम्मीदवार के नाम का एलान नहीं किया था तो चुनाव प्रचार करने पहुंचे पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष प्रभात झा ने मंच से बयान दिया कि गुना से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लड़ रहे हैं, चुनाव में लोगों की जुबान पर ऐसा चढ़ा कि महाराज को अपने ही सिपाहसालार से हार का सामना करना पड़ा।
 
जातीय समीकरण – ज्योतिरादित्य सिंधिया को उनके ही गढ़ में घेरने के लिए भाजपा ने यहां पर जातिगत कार्ड खेला था। गुना-शिवपुरी संसदीय सीट पर यादव वोटों की संख्या लगभग ढाई लाख के करीब थी और भाजपा ने केपी यादव को टिकट देकर इस बड़े वोट बैंक को साध लिया है। चुनाव में केपी यादव ने सिंधिया को एक लाख से अधिक वोटों से हराया जिसमें इन ढाई लाख वोटों की भूमिका बहुत अहम मानी जा रही है।
 
अति आत्मविश्वास और क्षेत्र की उपेक्षा – अपने ही गढ़ से सिंधिया के चुनाव हराने की सबसे बड़ी वजह उनका अति आत्मविश्वास और क्षेत्र की उपेक्षा करना है। चुनाव जीतने के बाद क्षेत्र के लोगों के बीच समय नहीं देना, प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनने के बाद भी विकास कार्य शुरू नहीं होने से वोटरों में सिंधिया के खिलाफ एक अंसतोष और नाराजगी दिन प्रतिदिन बढ़ती गई। यहीं कारण है कि 2009 से सिंधिया की जीत का अंतर लगातार घटता जा रहा था और इस बार उन्हें हार का सामना करना पड़ा। इसके साथ ही सिंधिया का अति आत्मविश्वास भी उनकी हार का प्रमुख कारण रहा।
 
अहंकार और महाराज की छवि – अपनी प्रजा से हारने वाले महाराज ज्योतिरादित्य सिंधिया की हार का प्रमुख कारण उनकी छवि माना जा रहा है। चुनाव में भाजपा उम्मीदवार केपी यादव को टिकट मिलने के बाद महारानी प्रियदर्शिनी राजे सिंधिया ने ट्वीट करते हुए लिखा था कि जो कभी महाराज के साथ सेल्फी लेने की होड़ में लगे रहते थे उन्हें भाजपा ने अपना उम्मीदवार चुना है। अब जब सिंधिया चुनाव में केपी यादव से एक लाख से अधिक वोटों से हार गए हैं तो इसी को लेकर सोशल मीडिया पर सिंधिया ट्रोल हो रहे हैं। चुनाव के वक्त खुद सिंधिया भी इस बात से अच्छी तरह से वाकिफ थे कि उनकी महाराज की छवि उनके आड़े आ रही है इसके लिए वो चुनाव प्रचार के आखिरी दौर में मंच पर नीचे बैठे हुए भी दिखाई दिए लेकिन महाराज का ये अंदाज लोगों को रिझा नहीं पाया है।
 
स्थानीय कार्यकर्ताओं का भीतरघात – ज्योतिरादित्य सिंधिया की हार के कारणों का बरीकी से विश्लेषण करन पर पता चलता है कि स्थानीय कांग्रेस कार्यकर्ताओं की नाराजगी इस बार सिंधिया पर भारी पड़ गई। सिंधिया के पूरे चुनाव अभियान में ग्वालियर और बाहर से आए पार्टी के नेताओं का हावी होना उनकी पराजय का बड़ा कारण रहा है। स्थानीय कार्यकर्ताओं को बूथ से दूरी बनाना और पार्टी का भी उनसे कोई संपर्क नहीं होना उनकी हार का प्रमुख कारण रहा है।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

शतरंज के शौकीन अमित शाह ने किया कमाल, जानिए उनकी सफलता के बारे में 5 खास बातें