विजयवाड़ा। आंध्रप्रदेश में सबसे लंबे समय तक मुख्यमंत्री रहने वाले एन. चंद्रबाबू नायडू के 'किंगमेकर' बनने के सपने पर गुरुवार को घोषित लोकसभा एवं राज्य विधानसभा चुनावों के नतीजों ने पानी फेर दिया है।
नायडू का राजनीति में 40 साल का अनुभव है और वे खुद के सबसे वरिष्ठ राजनेता होने का दावा करते हैं। नायडू ने कांग्रेस के साथ हाथ मिला कर एक तरह का रिकॉर्ड बनाया। यह वही कांग्रेस थी जिसके खिलाफ उनके ससुर एन टी रामाराव ने तेदेपा की स्थापना की थी।
नायडू 1 सितंबर 1995 से 13 मई 2004 तक अविभाजित आंध्रप्रदेश के मुख्यमंत्री रहे। अविभाजित आंध्रप्रदेश के 8 साल से अधिक समय तक मुख्यमंत्री के पद पर रहना किसी भी व्यक्ति के लिए सबसे लंबा कार्यकाल है। नायडू विभाजित आंध्रप्रदेश के पहले मुख्यमंत्री के रूप में जून 2014 से कार्यरत हैं।
नायडू 28 साल की उम्र में विधायक और मंत्री बने। उनके नाम सबसे कम उम्र में विधायक और मंत्री बनने का रिकॉर्ड है। प्रदेश में 1978 में तत्कालीन टी. अंजैया कैबिनेट में नायडू सिनेमैटोग्राफी मंत्री बने थे। 8 बार के विधायक 69 वर्षीय नायडू ने 2004 से 2014 के बीच सबसे अधिक समय तक (अविभाजित) आंध्रप्रदेश में विपक्ष के नेता के रूप में काम करने का रिकॉर्ड है।
उन्होंने अर्थशास्त्र में परास्नातक की पढ़ाई के दौरान श्री वेंकटेश्वर विश्वविद्यालय में एक छात्र संघ नेता के रूप में शुरुआत की। 1975 में वे युवक कांग्रेस में शामिल हुए और 1978 में पहली बार चंद्रगिरि निर्वाचन क्षेत्र से विधायक चुने गए।
मंत्री बनने के बाद चंद्रबाबू नायडू को अर्थशास्त्र में पीएचडी अधूरी छोड़नी पड़ी था। मंत्री के रूप में कार्य करते हुए चंद्रबाबू तेलुगु फिल्मों के दिग्गज अभिनेता रामाराव से जुड़े और बाद में 1980 में उनकी बेटी से शादी कर ली।
नवगठित तेलुगुदेशम की लहर में नायडू 1983 में कांग्रेस उम्मीदवार के रूप में चुनाव हार गए और कुछ ही महीनों के भीतर वे राव द्वारा स्थापित तेलुगुदेशम में शामिल हो गए। नायडू को एनटी रामाराव सरकार द्वारा स्थापित किसानों के लिए बनाए गए कर्षक परिषद का प्रभारी बनाया गया। बाद में उन्हें तेदेपा महासचिव बनाया गया।
चंद्रबाबू ने 1989 में तमिलनाडु और कर्नाटक की सीमावर्ती कुप्पम विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र का रुख किया और वहां से वे चुने गए। 1994 में एनटीआर मंत्रिमंडल में नायडू वित्त और राजस्व मंत्री बने। लेकिन अगस्त 1995 में अपने ससुर को मुख्यमंत्री पद से हटाने और बहुसंख्यक विधायकों के समर्थन से बागडोर संभालने के लिए एक आंतरिक तख्तापलट का नेतृत्व किया।
जनवरी 1996 में एनटीआर के निधन के बाद चंद्रबाबू पार्टी अध्यक्ष बने और इसका पूर्ण नियंत्रण अपने हाथ में ले लिया। उन्होंने तब राष्ट्रीय राजनीति में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और गैर-कांग्रेस, गैर-भाजपा दलों के साथ संयुक्त मोर्चा सरकार बनाने में मदद की। उन्हें 1997 में प्रधानमंत्री के पद की पेशकश की गई थी, लेकिन उन्होंने इसे अस्वीकार कर दिया और कहा कि वे आंध्रप्रदेश के विकास के लिए खुद को समर्पित करना चाहते हैं।
मुख्यमंत्री के रूप में चंद्रबाबू ने आर्थिक और शासन दोनों में सुधारों की शुरुआत की और ई-गवर्नेंस, ई-सेवा (सरकारी सेवाओं की इलेक्ट्रॉनिक डिलीवरी) और नागरिक चार्टर जैसी अग्रणी पहल शुरू की। वे राज्य के सर्वांगीण विकास के लिए विजन 2020 के साथ आगे आए और इसे जुनून के साथ लागू किया।
नायडू ने मोती और बिरयानी के लिए प्रसिद्ध शहर हैदराबाद को सूचना प्रौद्योगिकी के एक प्रमुख केंद्र में बदल दिया जिसने माइक्रोसॉफ्ट, विप्रो, गूगल और कई अन्य लोगों को आकर्षित किया।
उन्हें कुछ राजनीतिक तूफानों का भी सामना करना पड़ा, विशेषकर के. चंद्रशेखर राव के तेदेपा से बाहर निकलने और तेलंगाना राष्ट्र समिति के शुभारंभ के साथ ही राज्य के विभाजन की मांग भी उठी। नायडू को अंतत: अलग राज्य की मांग के लिए तेदेपा की एकजुट आंध्रप्रदेश की नीति में बदलाव करना पड़ा।