Lok Sabha Election Results 2024 : लोकसभा चुनाव 2024 के नतीजों की तस्वीर अब स्पष्ट होती दिखाई दे रही है। भाजपा अपने दम पर बहुमत से अब भी दूर है। 400 पार का नारा देने वाली भाजपा के लिए यह नतीजे किसी झटके से कम नहीं हैं। हालांकि एनडीए ने बहुमत का आंकड़े को छू लिया है। इंडिया गठबंधन भी 231 सीटों पर आगे चल रहा है। वह बहुमत के आंकड़े से 72 सीट दूर है। इंडिया गठबंधन जिस तरह से कांटे की लड़ाई लड़ रहा है उससे संभावनाएं अभी उसके लिए खत्म नहीं हुई हैं। अब निगाहें नीतीश कुमार और चन्द्रबाबू नायडू पर हैं।
वर्तमान राजनीतिक परिदृष्य में नीतीश कुमार की भूमिका महत्वपूर्ण हो गई है। नीतीश कुमार अब किंग मेकर की भूमिका में आ गए हैं। क्या नीतीश कुमार फिर से पाला बदलेंगे। माना जा रहा है कि अगर INDIA ब्लॉक नीतीश को अच्छी पोजिशन ऑफर करता है, तो उनकी वापसी हो सकती है।
INDIA गठबंधन की पहल : यहां यह बात भी ध्यान रखना जरूरी है कि इंडिया गठबंधन की पहल नीतीश कुमार ने ही की थी। नीतीश ने ही INDIA ब्लॉक की पहली बैठक पटना में आयोजित की थी। नीतीश कुमार इंडिया गठबंधन के संयोजक बनना चाहते थे, लेकिन बात बनी नहीं और उन्होंने इंडिया गठबंधन छोड़ दिया। नीतीश ने गठबंधन छोड़ा, तब भी लालू यादव ने उनकी वापसी की संभावना जताई थी। उनके पिछले राजनीतिक रिकॉर्डों को देखें तो वे पलटी मारने में माहिर हैं।
डिप्टी पीएम का ऑफर : राजनीति गलियारों में ये चर्चाएं जोरों पर हैं कि क्या इंडिया गठबंधन के लिए नीतीश कुमार फिर से पलटी मार सकते हैं। सूत्रों के अनुसार के मुताबिक बिहार के मुख्यंमत्री और जनता दल (यूनाइटेड) के मुखिया नीतीश कुमार से कांग्रेस के नेताओं ने संपर्क साधा है। बताया गया कि नीतीश कुमार को डिप्टी पीएम के पद का ऑफर दिया गया है। खबरें तो यहां तक आई हैं कि नीतीश कुमार से फोन पर बात की गई। हालांकि शरद पवार ने पत्रकारों से इस बात से इंकार किया है।
भाजपा के साथ नीतीश कुमार का रिश्ता 1990 के दशक के मध्य में उस समय से चला आ रहा है, जब कुमार ने बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद के खिलाफ विद्रोह के बिगुल फूंकते हुए अनुभवी समाजवादी नेता दिवंगत जॉर्ज फर्नांडीस के साथ मिलकर समता पार्टी बनाई थी। वर्ष 1998 से 2004 तक देश पर शासन करने वाली भाजपा के साथ गठबंधन के दौरान कुमार ने दिवंगत अटल बिहारी वाजपेयी के मंत्रिमंडल में कृषि, रेलवे और भूतल परिवहन जैसे प्रमुख विभाग संभाले थे।
शरद यादव के गुट लोक शक्ति और समता पार्टी का बाद में विलय कर जदयू बनाने वाले कुमार ने भाजपा के साथ गठबंधन में 2005 में बिहार विधानसभा चुनाव जीता और पहली बार मुख्यमंत्री बने। अपनी धर्मनिरपेक्ष छवि के प्रति सजग रहने वाले कुमार को भाजपा के भीतर नरेन्द्र मोदी की बढ़ती पकड़ ने आशंकित कर दिया और उन्होंने 2002 के गुजरात दंगों को लेकर 2013 में भाजपा के साथ अपनी 17 साल पुरानी साझेदारी को समाप्त करते हुए संबंध तोड़ लिए।
वर्ष 2014 में लोकसभा चुनाव में अपनी पार्टी की पराजय की नैतिक जिम्मेवारी लेते हुए कुमार ने मुख्यमंत्री पद छोड़ दिया था और अपने पुराने विश्वासपात्र जीतन राम मांझी को यह कुर्सी सौंप दी।
बाद के दौर में राजनीतिक अवसरवादिता के कारण जदयू सुप्रीमो को दो मौकों पर प्रसाद के राजद के साथ अल्पकालिक गठबंधन करना पड़ा लेकिन दोनों बार उनकी अचानक राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन में वापसी हुई।
राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, बिहार के सबसे लंबे समय तक मुख्यमंत्री पद पर बने रहने वाले कुमार बार-बार पाला बदलने के कारण ही सत्ता में बने रहने में कामयाब रहे लेकिन इससे उनकी लोकप्रियता में कमी आई है।
पिछली बार स्पष्ट बहुमत के साथ केंद्र में सत्ता में आयी भाजपा के पिछली सरकार में सम्मानजनक प्रतिनिधित्व नहीं दिए जाने से नाखुश रहे नीतीश कुमार को इसबार नाराज करना शायद जोखिम भरा कदम होगा ।