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एक देश-एक चुनाव का मास्टरस्ट्रोक चल नरेंद्र मोदी I.N.D.I.A की एकता को करेंगे तार-तार?

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विकास सिंह

, शुक्रवार, 1 सितम्बर 2023 (08:33 IST)
क्या लोकसभा चुनाव समय से पहले होंगे? क्या मध्यप्रदेश के विधानसभा चुनाव लोकसभा के साथ होंगे? क्या साल के अंत में होने वाले राज्यों के विधानसभा चुनाव के साथ लोकसभा चुनाव भी होंगे? यह सवाल देश की सियासत में अचानक से गर्म हो गया है। दरअसल मोदी सरकार ने अचानक से सितंबर के महीने में 17 सितंबर से 22 सितंबर के बीच संसद का विशेष सत्र बुला लिया है। यह विशेष सत्र के संसद के मानसून सत्र खत्म होने के एक महीने के बाद ही बुला लिया गया है। माना जा रहा है कि संसद के इस विशेष सत्र में मोदी सरकार 'एक देश-एक चुनाव' सहित कुछ अहम बिल ला सकती है।

अगर मोदी सरकार संसद के विशेष सत्र में एक देश-एक चुनाव को लेकर बिल लाती है और उसको पास करवाने में सफल हो जाती है तो यह भारत की राजनीतिक इतिहास का एक मास्टर स्ट्रोक होगा?

चुनावी वादा पूरा करेंगे मोदी?-प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में केंद्र की भाजपा सरकार समय से पहले लोकसभा चुनाव कराने का फैसला कर विरोधी दलों को चौंका सकती है। दरअसल एक देश-एक चुनाव भाजपा के चुनावी एजेंडे में सबसे उपर है। भाजपा ने 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में अपने घोषणा पत्र में 'एक राष्ट्र एक चुनाव' को प्रमुख चुनावी वादे के रूप में शामिल किया था। ऐसे में जब अगले साल मार्च-अप्रैल महीने में लोकसभा चुनाव प्रस्तावित है तब मोदी सरकार समय से पहले लोकसभा चुनाव करा सकती है। ऐसे में साल के अंत में होने वाले मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ औऱ राजस्थान के साथ होने वाले विधानसभा चुनाव के साथ लोकसभा चुनाव कर लें।

विपक्ष की एकजुटता को रोकने का मास्टस्ट्रोक?-2024 के लोकसभा चुनाव में मोदी के चेहरे को चुनौती देने के लिए इस वक्त कई विपक्षी दल एकजुटता की मुहिम में लगे हुए है। लोकसभा चुनाव में विपक्षी दल एक साझा मोर्चा बनाकर भाजपा को चुनौती देने की तैयारी में है। एक देश-एक चुनाव की खबर ऐसे समय सामने आई है जब मुंबई में लोकसभा चुनाव में मोदी को रोकने के लिए विपक्षी दलों की बैठक हो रही है ऐसे में विपक्षी दलों की एकजुटता मुहिम को रोकने के लिए मोदी सरकार लोकसभा चुनाव के साथ विधानसभा चुनाव कराने का दांव चल सकती  है।
 
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दरअसल विपक्ष की एकजुटता मुहिम में शामिल कई क्षेत्रीय राज्यों के विधानसभा चुनाव में आमने-सामने होंगे। उदाहरण के तौर पर मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में विपक्षी गठबंधन I.N.D.I.A में शामिल आम आदमी पार्टी और समाजवादी पार्टी अकेले चुनाव लड़ रही है। जहां उसका सीधा मुकाबला भाजपा के साथ-साथ कांग्रेस से है। इस तरह विपक्ष को एकजुट करने की मुहिम में लते तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव के लिए राज्य में भाजपा के साथ-साथ कांग्रेस भी एक चुनौती है। ऐसे में  अगर लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ होते है तो क्षेत्रीय दलों के हित राज्यों में आपस में टकराएंगे और उनमें बिखराव तय हो जाएगा। 

विधानसभा चुनावों में भाजपा को हार का खतरा?- कर्नाटक विधानसभा चुनाव में भाजपा की करारी हार के बाद अब साल के अंत में तीन प्रमुख राज्यों के विधानसभा चुनाव में भाजपा और कांग्रेस के बीच आमने-सामने का मुकाबला है। इन राज्यों के विधानसभा चुनाव के बाद अगले साल 2024 के अप्रैल-मई महीने में देश में आम चुनाव (लोकसभा चुनाव) होने है। कर्नाटक चुनाव में जिस तरह से भाजपा को हार का सामना करना पड़ा है, उसके बाद बड़े राज्यों में मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनाव में भाजपा और कांग्रेस के बीच कांटे का मुकाबला है। इन तीन राज्यों में केवल मध्यप्रदेश में भाजपा सत्ता में है और कर्नाटक में  भाजपा की हार के बाद राज्य में विरोधी दल कांग्रेस लगातार कर्नाटक जैसे विधानसभा चुनाव के नतीजे आने का दावा कर रहे है। वहीं छत्तीसगढ़ और राजस्थान में सत्तारूढ़ पार्टी कांग्रेस भाजपा पर भारी प़ड़ती दिख रही है। ऐसे में भाजपा मोदी  के चेहरे पर ही विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए लोकसभा चुनाव पहले  कराने का फैसला कर सकती है और पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के साथ ही लोकसभा चुनाव करा सकती है।

सत्ता विरोधी लहर को रोकने का ट्रंप कार्ड?-कर्नाटक में भाजपा की हार का सबसे बड़ा कारण राज्य की भाजपा सरकार के खिलाफ तगड़ी सत्ता विरोधी लहर का होना था। चुनाव में कांग्रेस ने जिस तरह से भाजपा सरकार के खिलाफ भ्रष्टाचार का मुद्दा उठाया वह चुनाव में भारी पड़ गया और कांग्रेस को बड़ी जीत हासिल हुई। कर्नाटक की तर्ज पर मध्यप्रदेश में भी सत्ता विरोधी लहर का सामना भाजपा को करना पड़ रहा है। ऐसे में भाजपा विधानसभा चुनाव में मोदी के चेहरे के साथ सत्ता विरोधी लहर को कम करने का कार्ड चल सकती है।

इसके साथ ही छत्तीसगढ़ जैसे चुनावी राज्य जहां पर भाजपा के पास कोई मजबूत चेहरा नहीं है वहां पर भाजपा मोदी के चेहरे के साथ चुनावी नैय्या पार लगाने की कोशिश में है। राजनीति विश्लेषक मानते है कि लोकसभा चुनाव और विधानसभा चुनाव में आम तौर पर मतदाता अलग-अलग नजरिए से वोट करता है ऐसे में अगर 'एक देश, एक चुनाव' होते है तो इस बात की संभावना बढ़ जाती है कि मतदाता केंद्र और राज्य में एक ही पार्टी के लिए वोट कर देगा।

वन नेशन-वन इलेक्शन का फॉर्मूला?- देश में एक साथ विधानसभा और लोकसभा चुनाव करने के साथ भाजपा वन नेशन-वन इलेक्शन के फॉर्मूले पर आगे बढ़ सकती है। इस साल के अंत में पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव होने के साथ अगले साल लोकसभा  चुनाव के साथ चार राज्यों के विधानसभा चुनाव है। ऐसे में राज्यों के विधानसभा चुनाव और लोकसभा चुनाव कराके भाजपा वन नेशन-वन इलेक्शन के फॉर्मूले पर आगे बढ़ सकती है।

 
अगर देख  देश में विधानसभा सीटों की बात करते हैं। सभी राज्‍यों में कुल मिलाकर विधानसभा की चार हजार से अधिक सीटें हैं। मोटे-मोटे तौर पर एक लोकसभा क्षेत्र में करीब आठ विधानसभा सीटें आती हैं। अगर 2019 के आम चुनावों के खर्च को विधानसभा चुनावों के हिसाब से देखें तो यह 12 से 15 करोड़ के लगभग आता है।

 
कब-कब समय से पहले चुनाव?-अगर लोकसभा चुनाव समय से पहले कराए जाएंगे तो ऐसा नहीं है कि यह पहली  बार होगा। देश में अब तक तीन बार समय से पहले चुनाव कराए गए हैं। पहली बार 1971 में, दूसरी बार 1984 में और तीसरी बार 2004 में समय से पहले चुनाव कराए गए है।

कैसे समय से पहले भंग होती  है लोकसभा?-लोकसभा या विधानसभा के चुनाव समय से पहले कराने अधिकार मौजूदा बहुमत वाली सरकारों को होता है। केंद्र में सत्तारूढ़ दल संविधान के अनुच्छेद 85(2)(b) के तहत लोकसभा भंग करने की सिफारिश राष्ट्रपति से कर सकती है। राष्ट्रपति के पास लोकसभा भंग करने का अधिकार है। इसी तरह से आर्टिकल 174(2)(b) में गवर्नर के पास विधानसभा भंग करने का अधिकार है। सदन भंग की सूचना चुनाव आयोग को दी जाती है। इसके बाद आयोग चुनाव का नोटिफिकेशन जारी करता है।

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