Madhya Pradesh Assembly Election 2023: दो संसदीय क्षेत्रों में फैली खंडवा जिले की 4 विधानसभा सीटों में से 3 पर इस बार कड़ी टक्कर बताई जा रही है, जबकि बैतूल संसदीय क्षेत्र में आने वाली हरसूद विधानसभा सीट पर हमेशा की तरह इस बार भी भाजपा मजबूत है। खंडवा, पंधाना और मांधाता में मुकाबला कश्मकश भरा रह सकता है। हालांकि 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को सिर्फ मांधाता सीट पर ही जीत हासिल हुई थी। यह सीट भी उपचुनाव में कांग्रेस के हाथ से छिटक गई थी।
हरसूद में 'विजय' : हरसूद विधानसभा सीट 1952 से 1972 तक अनारक्षित रही, जबकि 1977 से इस सीट को अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित कर दिया गया था। वर्तमान में इस सीट से कुंवर विजय शाह विधायक हैं और प्रदेश की शिवराज सरकार में वन मंत्री हैं। 7 बार लगातार विधायक रहे शाह एक बार फिर भाजपा के टिकट पर मैदान में हैं। हमेशा की तरह इस बार भी उनकी स्थिति मजबूत बताई जा रही है। कांग्रेस ने एक बार फिर सुखराम साल्वे को ही दोहराया है। 2018 में साल्वे को विजय शाह ने करीब 19 हजार वोटों से हराया था। शाह राज्य के उन चुनिंदा विधायकों में शामिल हैं, जो लंबे समय से चुनाव जीतते आ रहे हैं।
खंडवा में झेलनी पड़ सकती है 'अपनों' की नाराजगी : खंडवा (अजजा) सीट पर भाजपा ने 3 बार के विधायक देवेन्द्र वर्मा का टिकट काटकर कंचन मुकेश तन्वे को उम्मीदवार बनाया है। कंचन महिला होने के साथ ही जिला पंचायत अध्यक्ष भी हैं। वहीं, कांग्रेस ने एक बार फिर कुंदन मालवीय पर दांव लगाया है।
2018 के चुनाव में देवेन्द्र वर्मा ने कुंदन मालवीय को 19 हजार से ज्यादा वोटों से हराया था। बड़ी जीत के बावजूद भाजपा ने इस बार नए चेहरे पर भरोसा जताया है। जानकारों का मानना है कि भाजपा प्रत्याशी तनवे को भितरघात का सामना करना पड़ सकता है। ऐसे में कंचन के लिए यह मुकाबला आसान नहीं होगा। कुंदन मालवीय भी पिछली हार का बदला चुकाने के लिए पूरी ताकत से जुटे हुए हैं।
पंधाना में भाजपा का 'कांग्रेसी' दांव : खंडवा की तरह भाजपा ने पंधाना में भी वर्तमान विधायक राम दांगोरे का टिकट काट दिया है। उनके स्थान पर कांग्रेस से भाजपा में आईं छाया मोरे को उम्मीदवार बनाया है। पिछले चुनाव में भाजपा के दांगोरे ने कांग्रेस की छाया मोरे को 23 हजार से ज्यादा मतों से हराया था। बावजूद इसके वे टिकट की दौड़ में चूक गए।
कांग्रेस से आई छाया को टिकट मिलने से स्थानीय भाजपा कार्यकर्ताओं में भी असंतोष बताया जा रहा है। ऐसे में छाया को भितरघात का खतरा हो सकता है। दूसरी ओर कांग्रेस ने रूपाली बारे को उम्मीदवार बनाया है। रूपाली 2018 में निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में मैदान में थीं और तीसरे स्थान पर रही थीं। उन्हें 25 हजार से ज्यादा वोट मिल सकते हैं। ऐसे में इस सीट पर रोचक मुकाबला देखने को मिल सकता है।
मांधाता में भी कड़ा मुकाबला : 2020 में ज्योतिरादित्य सिंधिया की बगावत के समय कांग्रेस छोड़कर भाजपा में आए नारायण पटेल को ही भाजपा ने एक बार मांधाता सीट से उम्मीदवार बनाया है। हालांकि पटेल ने 2018 का चुनाव कांग्रेस के टिकट पर महज 1200 वोटों से जीता था, लेकिन उपचुनाव में उन्होंने भाजपा के टिकट पर कांग्रेस के उत्तम पाल सिंह को 22 हजार से ज्यादा वोटों से हराया था।
कांग्रेस से एक बार फिर उत्तम पाल नारायण पटेल के सामने हैं। हालांकि इस बार मुकाबला कड़ा माना जा रहा है क्योंकि नारायण पटेल के खिलाफ भाजपा कार्यकर्ताओं में गुस्सा है। यह नाराजगी पटेल के लिए भारी पड़ सकती है।
जानकारों की मानें तो पूर्व निमाड़ में अपनी उपेक्षा के चलते राजपूत मतदाता भी भाजपा से नाराज हैं। बुरहानपुर सीट पर भाजपा के दिग्गज नेता और पूर्व सांसद स्व. नंदकुमार सिंह चौहान के बेटे हर्षवर्धन सिंह भाजपा से टिकट नहीं मिलने के कारण निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ रहे हैं। संगठन में भी राजपूत नेताओं की उपेक्षा की गई है। ऐसे में भाजपा को इसका नुकसान उठाना पड़ सकता है।