Madhya Pradesh Assembly Elections: भोपाल पिछले 3 दशक में भारतीय जनता पार्टी (BJP) के गढ़ में तब्दील हो गया है, लेकिन इस बार मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव (Madhya Pradesh Assembly Elections) के दौरान सत्तारूढ़ दल इसे हल्के में नहीं ले सकता, क्योंकि कांग्रेस (Congress) ने पिछली बार राज्य की राजधानी में 7 में से 3 सीटें जीतकर उल्लेखनीय प्रदर्शन किया था।
भोपाल जिले में 7 विधानसभा सीटें हैं जिनमें से 6 शहर के भीतर हैं। भोपाल दक्षिण-पश्चिम, भोपाल उत्तर, भोपाल मध्य और नरेला शहरी सीटें हैं, हुजूर और गोविंदपुरा को अर्द्ध-शहरी और बैरसिया को ग्रामीण निर्वाचन क्षेत्र माना जाता है। भाजपा ने 2018 में जिले में 4 सीटें जीती थीं जबकि कांग्रेस ने भाजपा से 2 सीटें भोपाल मध्य और भोपाल दक्षिण-पश्चिम छीनकर 3 सीटों पर जीत हासिल की थी।
शहर में बड़ी संख्या में मुस्लिम आबादी हैं। यह 2018 में 2 मुस्लिम विधायकों को विधानसभा में भेजने वाला मध्यप्रदेश का एकमात्र शहर था। इस चुनाव में भोपाल उत्तर से आरिफ अकील और भोपाल मध्य से आरिफ मसूद ने चुनाव जीता था।
भोपाल उत्तर में दिलचस्प सियासी जंग : कांग्रेस का गढ़ कहे जाने वाले भोपाल उत्तर में इस बार दिलचस्प सियासी जंग देखने को मिल रही है। यह 1990 के बाद पहला चुनाव है, जब 6 बार के विधायक आरिफ अकील स्वास्थ्य कारणों से चुनाव नहीं लड़ रहे और कांग्रेस ने उनकी जगह उनके बेटे आतिफ अकील को मैदान में उतारा है।
आरिफ यहां केवल एक बार 1993 में बाबरी मस्जिद के विध्वंस के बाद भाजपा उम्मीदवार से हारे थे, लेकिन उनके बेटे के लिए जीतना आसान नहीं होगा, क्योंकि उनके चाचा (आरिफ के भाई) आमिर अकील और कांग्रेस के एक अन्य बागी नासिर इस्लाम भी इस सीट से चुनाव लड़ रहे हैं।
आमिर अकील ने कहा कि मैंने 30 वर्ष तक यहां के लोगों की सेवा की है, उनके कठिन समय में उनके साथ खड़ा रहा हूं। इन लोगों ने अब मुझसे चुनाव लड़ने के लिए कहा है। भाजपा ने पूर्व महापौर आलोक शर्मा को मैदान में उतारा है। आम आदमी पार्टी (आप) ने इस सीट से पूर्व पार्षद मोहम्मद सऊद को मैदान में उतारा है।
सरकारी कर्मचारियों की बड़ी आबादी वाले भोपाल दक्षिण-पश्चिम निर्वाचन क्षेत्र में पिछले 4 दशकों में कांग्रेस और भाजपा दोनों के विधायक चुने गए हैं। बड़ी संख्या में मुस्लिम मतदाताओं वाले भोपाल मध्य में 2008 और 2013 में 2 बार भाजपा विधायक चुने गए जबकि 2018 में कांग्रेस के आरिफ मसूद ने तत्कालीन भाजपा विधायक सुरेंद्र नाथ सिंह को हराकर जीत हासिल की।
आरिफ मसूद और ध्रुवनारायण सिंह में मुकाबला : मसूद इस बार भाजपा के ध्रुवनारायण सिंह के खिलाफ मैदान में हैं, जो 2008 में इस निर्वाचन क्षेत्र के अस्तित्व में आने के बाद इससे चुने जाने वाले पहले विधायक थे। भाजपा नेता और राज्य में मंत्री विश्वास सारंग नरेला सीट से अब तक अपराजित रहे हैं। यह सीट भी 2008 में बनाई गई थी। कांग्रेस ने इस सीट से एक नए चेहरे मनोज शुक्ला को मैदान में उतारा है जबकि 'आप' ने रायसा मलिक को इस सीट से टिकट दी है।
हुजूर सीट के 2008 में गठन के बाद से हुए सभी तीनों चुनावों में भाजपा ने जीत हासिल की है। 2 बार के भाजपा विधायक रामेश्वर शर्मा फिर से मैदान में हैं जबकि कांग्रेस ने नरेश ज्ञानचंदानी को मैदान में उतारा है, जो पिछली बार 16,000 से अधिक वोटों से हार गए थे।
बाबूलाल गौर की बहू कृष्णा गौर भाजपा की ओर से : 45 वर्षों से अधिक समय तक भाजपा का गढ़ रहे गोविंदपुरा का प्रतिनिधित्व पूर्व मुख्यमंत्री दिवंगत बाबूलाल गौर ने 8 बार किया। यहां से उनकी बहू और मौजूदा विधायक कृष्णा गौर भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ रही हैं जबकि कांग्रेस ने रवीन्द्र साहू को मैदान में उतारा है। बैरसिया विधानसभा सीट कांग्रेस ने सिर्फ 1 बार 1998 में जीती थी।
शिवराज ने दिलाई इतिहास की याद : पिछले कुछ महीनों में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने स्थानीय लोगों को भोपाल के इतिहास की याद दिलाने की कोशिश की थी। उन्होंने कहा था कि 'अंतिम हिन्दू शासक' गोंड की रानी कमलापति के साम्राज्य को अफगान सेनापति दोस्त मोहम्मद खान ने धोखे से हड़प लिया था और खान के वंशज ने भोपाल रियासत पर शासन किया।
चौहान ने अपने भाषणों में जिक्र किया कि रानी कमलापति ने युद्ध के दौरान अपना सम्मान बचाने के लिए 'जल जौहर' किया था। नवीनीकरण के बाद भोपाल के हबीबगंज रेलवे स्टेशन का नाम बदलकर रानी कमलापति स्टेशन कर दिया गया है।
वरिष्ठ पत्रकार अलीम बज्मी ने कहा कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) ने लगभग 5 दशक पहले भोपाल को उस समय अपनी प्रयोगशाला बनाया था, जब आरएसएस कार्यकर्ता जगन्नाथ राव जोशी को 1967 में भोपाल लोकसभा सीट से जनसंघ के टिकट पर मैदान में उतारा गया था। उन्होंने कांग्रेस उम्मीदवार मैमूना सुल्तान को हराया था। बज्मी ने कहा कि भोपाल शहर और आसपास के इलाके पिछले 3 दशक में भाजपा का गढ़ बन गए हैं।
उन्होंने कहा कि लेकिन भोपाल उत्तर, भोपाल दक्षिण-पश्चिम, भोपाल मध्य और नरेला में चुनावी लड़ाई इस बार दिलचस्प हो गई है, क्योंकि कांग्रेस और भाजपा दोनों के उम्मीदवारों का राजनीतिक भविष्य जीत पर निर्भर है। बज्मी ने कहा कि शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल और रोजगार के अवसर जैसे बुनियादी मुद्दे अभियान से गायब हैं।
भाजपा की शहर इकाई के अध्यक्ष सुमीत पचौरी ने शहर की सभी सीटें जीतने का भरोसा जताया, लेकिन स्वीकार किया कि भोपाल उत्तर में कड़ी प्रतिस्पर्धा है। पचौरी ने कहा कि भोपाल उत्तर, भोपाल मध्य और नरेला ऐसी सीटें हैं, जहां लोग सांप्रदायिक आधार पर वोट करते हैं। उन्होंने दावा किया कि गोविंदपुरा और हुजूर भाजपा के गढ़ हैं जबकि वह भोपाल दक्षिण-पश्चिम सीट भी वापस ले लेगी।
कांग्रेस को जीत का भरोसा : कांग्रेस की जिला इकाई के प्रमुख प्रवीण सक्सेना ने दावा किया कि उनकी पार्टी राज्य की राजधानी में जीत हासिल करेगी। उन्होंने से कहा कि कांग्रेस की प्रदेश इकाई के अध्यक्ष कमलनाथ ने ब्लॉक, मंडलम, सेक्टर और बूथ स्तर पर एक संगठनात्मक ढांचा तैयार किया है और परिणाम सभी सीटों पर पार्टी के पक्ष में होगा। भाजपा 18 साल से शासन कर रही है, लेकिन इसके पास दिखाने के लिए कोई उपलब्धियां नहीं हैं।
सक्सेना ने कहा कि भाजपा राज्य के लिए कोई भी विकास योजना लाने में विफल रही और उसने अन्य राज्यों में सब्सिडी वाले एलपीजी सिलेंडर जैसी कांग्रेस सरकारों की योजनाओं को ही दोहराया। उन्होंने कहा कि भोपाल उत्तर सीट पर आरिफ अकील का मतदाताओं के साथ लंबा जुड़ाव रहा है और उनका बेटा जीत हासिल करेगा।
वरिष्ठ पत्रकार देशदीप सक्सेना ने कहा कि भोपाल अन्य राज्यों की राजधानियों की तुलना में विकास में पिछड़ गया है। उन्होंने कहा कि हमें बेहतर स्वास्थ्य देखभाल सुविधाओं और शैक्षणिक संस्थानों की आवश्यकता है। भोपाल झुग्गियों और गुमटियों का शहर बन गया है। ट्रैफिक जाम एक नियमित मामला है। दोनों प्रमुख पार्टियों के प्रत्याशियों को शहरीकरण के इन अहम मुद्दों पर बात करनी चाहिए। उन्होंने कहा कि हालांकि शहर को भाजपा के गढ़ के रूप में जाना जाता है, लेकिन कांग्रेस ने 2018 में अच्छा प्रदर्शन किया था।(भाषा)
Edited by: Ravindra Gupta