मध्यप्रदेश में चुनावी साल में सत्तारूढ दल भाजपा के शीर्ष नेता इन दिनों बैचेन नजर आ रहे है। नेताओं की बैचेनी की बड़ी वजह पद से लेकर उनकी प्रतिष्ठा तक दांव पर लगा होना है। चुनावी साल का आगाज होने के साथ प्रदेश में व्यापमं और हनीट्रैप का जिन्न एक बार बाहर आने से कड़ाके की ठंड में भी राजधानी भोपाल का सियासी पारा गर्मा गया है।
हनीट्रैप मामले में भाजपा नेताओं की अश्लील सीडी होने का दावा कर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ और नेता प्रतिपक्ष डॉ गोविंद सिंह ने चुनावी साल में कई नेताओं के माथे पर पसीना ला दिया है। प्रदेश की सियासत में हनीट्रैप का मामला ऐसे समय सुर्खियों में आया है जब आने वाले समय में भाजपा के कई नेताओं के सियासी भविष्य का फैसला होने जा रहा है।
हनीट्रैप और अश्लील सीडी को लेकर कांग्रेस और भाजपा के शीर्ष नेताओं के बीच जुबानी जंग तेज है। भाजपा और कांग्रेस एक दूसरे पर ब्लैकमेल की ओछी सियासत करने का आरोप लगा रहे है। दोनों तरफ से सीडी को लेकर तमाम दावे से लेकर एक दूसरे को चैलेंज देने की नूराकुश्ती चल रही है।
मध्यप्रदेश की सियासत को अंदर से हिलाकर रख देने वाले हनीट्रैप के मामले के तीन साल से अधिक समय बीत चुके है और आज उस मामले के ज्यादातर आरोपी खुलेआम घूम रहे है। पूरे मामले में कार्रवाई के नाम पर जिस तरह से लीपापोती की गई वह किसी से छिपी नहीं है। पिछले दिनों शिवराज सरकार के एक मंत्री पर जिस तरह से एक महिला ने गंभीर आरोप लगाए उसको भी हनीट्रैप की अगली कड़ी के रूप में देखा जा रहा है।
मध्यप्रदेश में व्यापमं और हनीट्रैप का मामला ऐसे समय सुर्खियों में आय़ा है जब चुनावी साल में प्रदेश में सत्तारूढ़ पार्टी भाजपा में सरकार से लेकर संगठन तक होने वाले बदलाव को लेकर अटकलों का दौर तेज है। 14 जनवरी के बाद सरकार के साथ संगठन में होने वाले संभावित बदलाव को लेकर सियासी गलियारों से लेकर भाजपा के अंदरखाने जबरदस्त सियासी हलचल देखने को मिल रही है।
व्यापमं मामले में प्रदेश में सत्ता में रहते हुए भी जिस तरह से एसटीएफ की एफआईआर में भाजपा नेताओं औऱ मंत्री का जिक्र हुआ, उसके शिकायत दिल्ली तक पहुंची और पूरे मामले में सत्ता और संगठन के बीच तल्खी की खबरें में छन-छन कर बाहर आती रही।
दरअसल गुजरात विधानसभा चुनाव में भाजपा की प्रचंड जीत के बाद मध्यप्रदेश में भी गुजरात मॉडल को लेकर चर्चा गर्म है। अगर मध्यप्रदेश में भाजपा गुजरात मॉडल को लागू करती है तो सरकार से लेकर संगठन तक बड़े फेरबदल निश्चित है। ऐसे में भाजपा के वह दिग्गज नेता जो लंबे समय से सरकार में मंत्री पदों पर काबिज है उनकी छुट्टी होना तय है।
चुनावी साल का आगाज होने के साथ भाजपा के अंदर कांग्रेस से अधिक अपने अंदरखाने की चुनौती अधिक दिखाई दे रही है। भाजपा के अंदर निपटाने की सियासत को लेकर जिस तरह का दौर देखा जा रहा है, वह चुनाव के समय भितरघात में खुलकर सामने आ सकता है और जिससे निपटना भाजपा के लिए आसान नहीं होगा।