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हे राम! ऐसी जिंदगी से मौत बेहतर..

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कीर्ति राजेश चौरसिया

छतरपुर , शुक्रवार, 27 जनवरी 2017 (23:36 IST)
छतरपुर जिले में 16 साल की एक लड़की ऐसी बीमारी से जूझ रही है, जो कि उसके लिए मौत से भी ज्यादा भयानक है। बीमारी के कारण न तो उसका आधार कार्ड बन पा रहा है, न ही वह स्कूल जा पा रही है। स्कूल जाती है तो शिक्षक यह कहकर लौटा देते हैं कि मत आया करो स्कूल, दूसरे बच्चे डरते हैं। 

मध्यप्रदेश के छतरपुर जिले के नौगांव नगर के वार्ड नंबर 19 हल्लू कालोनी की रहने वाली 16 वर्षीय शालिनी यादव बचपन से ही त्वचा की गंभीर बीमारी से ग्रस्त है। लड़की के शरीर से त्वचा की शल्कें निकलतीं हैं और निकालने का यह दर्द भयानक और असहनीय होता है। ऐसा लगता है ‍मानो वह रोज मौत से सामना करती हो। अब तो यह शालिनी की रोज की आदत बन गई है।
 
मां देवकुंवर यादव की मानें तो शालिनी को यह बीमारी जन्मजात है। पहले हमने डॉक्टरों को दिखाया तो उन्होंने कहा कि समय रहते ठीक हो जाएगी पर यह ठीक होने की बजाय बढ़ती गई, जो कि अब यह भयानक रूप ले चुकी है। दर्द भी बीमारी के साथ बढ़ता ही जा रहा है। मेरे दो और बच्चे हैं- सेजल (15) और प्रिंस (8) जो इससे छोटे हैं। दोनों ही स्वस्थ हैं। हम शालिनी का इलाज करवाकर परेशान हो गए हैं, अब बस के बाहर है। घर में खाने के लाले हैं, बमुश्किल परिवार का भरण पोषण कर पाती हूं। मैं आंगनबाड़ी में काम करती हूं, जबकि बच्ची पड़ोस में ही अपने मामा-नानी के पास रहती है। वही इसकी देखभाल करते हैं। 
 
देवकुंवर ने कहा कि ऐसी जिंदगी से तो मौत बेहतर है। बेटी की बीमारी और उसका दर्द अब देखा नहीं जाता। मैं पिछले 16 सालों से झेल रही हूं। शासन और प्रशासन से अब तक कोई मदद नहीं मिली। जहां भी मदद के लिए गुहार लगाते हैं आश्वासन के सिवाय कुछ नहीं मिलता। 
 
मामा अखिलेश, कैलाश और 64 वर्षीय नानी भुमानीदेवी की मानें तो शालिनी के पिता राजबहादुर बेरोजगार हैं। मां देवकुंवर आंगनबाड़ी में काम करने जाती है तो यह हमारे यहां बनी रहती है। बिलकुल अकेली एक जगह बैठी रहती है, कोई भी बच्चा इसके पास नहीं फटकता कोई भी इसके साथ खेलना नहीं चाहता। पहले स्कूल भी जाती थी तो वहां बच्चे डरते थे। मास्टरों ने आने को मन कर दिया। शालिनी चौथी कक्षा तक ही पढ़ाई कर पाई। उसका मन होता है तो खुद ही किताब लेकर पढ़ने बैठ जाती है। 
 
बढ़ ही रही है परेशानी : बढ़ती उम्र और बीमारी के साथ शारीर की हड्डियाँ टेढ़ी हो चली हैं। अब तो शालिनी को चलने में भी दिक्कत होती है। ठंड में त्वचा सूखने और फटने पर दर्द होता है, तो वहीँ गर्मियों में पसीना आने पर नमक जैसी जलन होती है। उसकी आंखों से हमेशा पानी बहता रहता है। 
 
शालिनी का पढ़ना चाहती है, लेकिन स्कूल इसलिए नहीं जा पाती क्योंकि दूसरे बच्चे उससे डरते हैं। बच्चे उसके साथ नहीं खेलते क्योंकि उसके पास आने से डरते हैं। हर पल दर्द इतना भयानक होता है कि जिसकी कोई कल्पना भी नहीं करा सकता। सोने, उठने, चलने, बैठने, में परेशानी होती है। शालिनी कहती है कि मेरी बीमारी ठीक होती ही नहीं घर के सभी लोग परेशान हैं। पापा बेरोजगार हैं, जब काम मिल जाता है तब कर लेते हैं, मां आंगनबाड़ी में जाती है। मेरी वजह से सभी परेशान हैं, मुझे भी बहुत दुख होता है पर मैं कर भी क्या सकती हूं। 
 
डॉक्टरों की मानें तो यह स्क्लोरोसिस नाम की बीमारी है, जो दुनिया भर के 10 लाख लोगों को है। इसका स्थायी इलाज संभव नहीं है। इसमें त्वचा के बाहर के सेल्स मरते रहते हैं और शारीर छोड़ देते हैं, सूरज की किरणें इसके लिए फायदेमंद हैं। जब छतरपुर कलेक्टर रमेश भंडारी से बात की गई तो उन्होंने पीड़ित द्वारा मदद मांगने पर हरसंभव मदद की बात कही।
 

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