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चकाचौंध छोड़ हथकरघे पर बुने जा रहे हैं सपने

हमें फॉलो करें चकाचौंध छोड़ हथकरघे पर बुने जा रहे हैं सपने
- शोभना जैन
 
कुंडलपुर (मध्यप्रदेश)। न्यूयॉर्क की शानदार चमकती सड़कों और गगनचुंबी इमारतों को छोड़कर इस उनींदे से छोटे कस्बे की धूलभरी उबड़-खाबड़ सड़कों पर विश्वास के साथ लंबे-लंबे डग भरता एक युवक और अगले ही पल वह युवक एक छोटे से कमरे में हथकरघे पर झुककर सूत से कपड़ा बनाता नजर आता है। उसके पास ही रखे कुछ और हथकरघों पर कपड़ा बनाते युवा नजर आते हैं। इन युवकों की तन्मयता देख लगता नहीं है कि वे काम कर रहे हैं, लगता है सपने बुन रहे हैं और इन सपनों से पनप रहा है एक आंदोलन... 
ये युवक हैं, अमित जैन जो दिल्ली आईआईटी से मैकेनिकल इंजीनियर की परीक्षा पास करने के बाद न्यूयॉर्क की  एक नामी कंपनी में एक करोड़ रुपए से अधिक की नौकरी छोड़कर इस छोटे से कस्बे में हथकरघे को अपनी  दुनिया बना चुके हैं और जैन तपस्वी संत आचार्यश्री विद्यासागर की प्रेरणा से बने हथकरघा प्रशिक्षण/ उत्पादन  केंद्र में रच-बस गए, जहां विशेष तौर पर बदहाल किसानों/ महिलाओं/ गांवों के बेरोजगार युवाओं को उनके अपने  गांव-देहात में ही काम मिल रहा है, रोजगार मिल रहा है।
 
दरसल इन्हें हथकरघा पर 'अहिंसक कपड़ा' बनाना सिखाया जाता है और फिर बाजार में बेचा जाता है, जिससे न  केवल उनकी आय होती है बल्कि गांवों के गरीब बेरोजगार युवाओं को हुनर भी सिखाया जाता है। उनका बना  कपड़ा बाजार में बेचा जाता है। कोई बिचौलिया नहीं होने के कारण उन्हें पारिश्रमिक भी अच्छा मिलता है। 
 
सभी का प्रयास रहता है कि श्रमकर्ता का शोषण नहीं हो श्रमिक बाजार से सीधा जुड़े, जिससे अपने उत्पाद का  उन्हें अधिकतम लाभ मिले। हथकरघा केंद्र से जुड़े एक सज्जन बताते हैं कि अमित की ही तरह आईआईटी, बीई,  सीए, एमबीए जैसी उच्च शिक्षा प्राप्त प्रोफेशनल्स अब इस स्वदेशी आंदोलन की धुरी हथकरघे से जुड़कर प्रशिक्षण  लेते हैं और बाद में गांव-देहात के कितने ही बेरोजगार युवाओं को यह काम सिखा कर उनकी जिंदगी में रोशनी  बिखेर रहे हैं। उन्हें स्वावलंबी बना रहे हैं।
 
अमित जैन ने कहा कि केन्द्र के युवाओं की टीम देश के प्राचीन कुटीर उद्योग हथकरघा को पुनर्स्थापित करने में  जुटी है। उनका मानना है कि इस काम से लाखों लोगों को रोजगार मिल सकता है। जरूरत है इस दिशा में दृढ़  संकल्प के साथ काम करने की। वे बताते हैं कि वे विशुद्ध रूप से हथकरघे पर ही कपड़ा बनाते हैं जबकि दु:ख की  बात है कि आज बाजार में नामी कंपनियां हथकरघे के नाम पर पॉवरलूम का कपड़ा बेच रही हैं।
 
अमित अमेरिका की न्यूयॉर्क सिटी में फाइनेंशियल कंपनी डिलॉइट में 1 करोड़ से अधिक के पैकेज पर कार्यरत थे,  लेकिन जल्द ही उन्हें लगने लगा बेरोजगारी और गरीबी से जुझ रहे उनके जिस देश ने उन्हें शिक्षा दी, उसका  ज्यादा से ज्यादा फायदा देश में ही समाज की भलाई में करना ही उन्हें असली संतोष देगा और दो वर्ष पूर्व एक  शाम वे सब कुछ समेटकर वापस आ गए।
 
यहां आचार्यश्री के मार्गदर्शन में आचार्यश्री से जुड़े 25 श्रद्धालुओं की टीम बनी और दो वर्ष पूर्व हथकरघा उद्योग  शुरू किया गया। उनके साथ दर्जन भर से अधिक ऐसे युवा हैं, जो खासतौर पर विदेशो में लाखों रुपए के पैकेज  और पोस्ट छोड़कर इस कार्य में लगे गए हैं। अब तक 300 युवा इन केंद्रों में प्रशिक्षण पा चुके हैं। 
 
उन्होंने बताया कि पहले सिर्फ आचार्यश्री से जुड़े लोग ही इस काम से जुड़े, लेकिन धीरे-धीरे अब सभी वर्गों के लोग इससे जुड़ रहे हैं। अमित बताते हैं कि आज देश में बेरोजगारी जिस गति से बढ़ रही है, उस स्पीड से काम नहीं बढ़ रहा है जबकि देश में कार्य करने वालों की कमी नहीं है। शिक्षित और अशिक्षित वर्ग में भी बेरोजगारी है। दुनिया के विकसित देशों की अपेक्षा भारत में 2 से 3 प्रतिशत कला जानने वाले हैं। यहां श्रमिकों का शोषण हो रहा है। सबसे कम मेहनताना मिलता है। 
 
हालत यह है कि रोजगार और कमाई होती है तो भी बिचौलिए लाभ ले लेते हैं, इसीलिए सोचा गया जितने  बिचौलिए कम होंगे उतना लाभ मिलेगा और आचार्यश्री इन सबको ध्यान में रखते हुए आचार्यश्री के मार्गदर्शन में  हथकरघा प्रशिक्षण केंद्र खोलने की योजना बनाई गई जिसमें हाथ से कपड़ा बनाना सिखाएंगे और बाद में व्यापार  करने प्रेरित करेंगे। इस उद्योग में लगातार वृद्धि हो रही हैं और इस का विस्तार तेजी से हो रहा है। शायद  आचर्यश्री इसी वजह से इसे आंदोलन बता रहे हैं।
 
अमित बताते हैं कि दरअसल मध्यप्रदेश के बीना बारॉ के पहले केंद्र के बाद जल्द ही एक-एक कर अन्य हथकरघा  प्रशिक्षण केंद्र खुलने शुरू हो गए। अब तक 28 से अधिक केंद्र खोले जा चुके हैं। वे बताते हैं कि 'प्रशिक्षण के दौरान युवाओं को मेहनताना देते हैं, जो प्रशिक्षण के बाद हमारे साथ रहकर कपड़ा बुन सकते हैं या फिर अपने घर पर जाकर हथकरघा या चरखा लगाकर आजीविका चला सकते हैं।
 
वे प्रशिक्षक भी बन सकते हैं। ऐसे प्रशिक्षण केंद्र मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र में हैं। मध्यप्रदेश के बीना वारहा,  कुंडलपुर, मंडला, खिमलाशा, मुंगावली, आरोन, जबलपुर, राहतगढ़ और छत्तीसगढ़ के डोंगरगढ़ व महाराष्ट्र के  रामटेक में 8 सेंटर शुरू किए हैं। इन दोनों राज्यों में जल्द ही इन कपड़ों के बिक्री केंद्र भी खुलने लगे हैं।
 
अमित ने बताया कि अपना दायरा बढ़ाने के लिए केंद्र ने कपड़ों के डिजाइन तैयार करने के लिए निफ्ट के  डिजाइनरों को भी जोड़ा है। उन्होंने बताया कि अब मध्यप्रदेश हथकरघा विकास केंद्र भी उन्हें सहयोग दे रहा है।  महिला बुनकरो में भी ये केंद्र काफी लोकप्रिय हो रहे हैं। ऐसा ही एक केंद्र चलाने वाली ऋतु जैन के मुताबिक  190 महिलाओं को ट्रेंड कर लूम खुलवाए गए हैं, जो अब इन करघों के माध्यम से रोजाना 200 से 300 रुपए की  कमाई कर रही हैं। 
 
आमित बताते है उनका सपना है 'जिस तरह दूसरे देशों में बच्चे अध्ययन के दौरान ही अपनी फीस के लिए रुपए  कमा लेते हैं, वैसा कल्चर यहां लाना है, इसीलिए हथकरघा को स्कूलों में प्रारंभ करने की कोशिश की जा रही है।  इस काम से बेरोजगारी कम की जा सकती है। आज जो आर्थिक विकास कुछ ही लोगों का बनकर रह गया है,  उस का विस्तार भी धीरे-धीरे होगा।
 
आचार्यश्री विद्यासागर महाराज के अनुसार 'हथकरघा दररसल एक आंदोलन है, श्रम का सम्मान है। शहरों की  तरफ रोजगार की तलाश में लगी अंधाधुंध दौड़ की बजाए काम अपने गांव में ही मिले, किसान, खेतिहर मजदूर,  महिलाओं गांवो के बेरोजगार लोगो को अपने श्रम का पूरा दाम मिले, समाज में खुशहाली हो, राष्ट्र स्वालंबी बने।
 
उनके इस 'आंदोलन' में लगे लोगो के लिए सीख है। हथकरघे के लिए मन तो आपने बना तो लिया, लेकिन मन  को स्थिर रखना बहुत है। यह संकल्प लेना होगा। कितने ही सपने, दृढ़ संकल्प से भरे... अमित की तरह ही है  मनीष। बनारस आईआईटी से मैकेनिकल में इंजीनियरिंग की डिग्री लेने के बाद मारुति कार उद्योग में मैकेनिकल  इंजीनियर थे। 
 
मनीष कंपनी के उन 4 प्रमुख इंजीनियरों में शामिल थे, जो मारुति कार की फाइनल ओके रिपोर्ट देते थे। अब वे  बीना वारहा में हथकरघा सेंटर चला रहे हैं। ऐसे ही कितने ही नाम, कितने ही सपने चाहे शैलेंद्र और सुलभ जो  चार्टड अकाउंटेंट हैं, जो अब युवाओं को रोजगार से जोड़ने के लिए वह बीना वारहा में हथकरघा प्रशिक्षण केंद्र चला रहे हैं। सपने तेजी से आंदोलन बन रहे है...
(वीएनआई)
 

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