भारत में बच्चों की तस्करी में इंटरनेट का उपयोग, ऑनलाइन बाल यौन शोषण के शिकार हो रहे मासूम: क्राई
कोविड महामारी के बाद गहराया बच्चों के साथ ऑनलाइन अपराधों का संकट, 99% माता पिता बच्चों द्वारा देखे जा रहे ऑनलाइन कंटेन्ट से अंजान : क्राई अध्ययन
भोपाल। दुनिया भर में आज सुरक्षित इंटरनेट दिवस मानाया जा रहा है। हर साल फरवरी माह के पहले मंगलवार को मनाए जाने safer internet day का उद्देश्य लोगों को सुरक्षित और बेहतर इंटरनेट सुविधान प्रदान करना है। कोविड-19 महामारी के दौरान और उसके बाद ऑनलाइन क्राइम विशेषकर बच्चों के इसमें ज्यादा शिकार होने के मामलों में बड़ा इजाफा देखा गया है।
ऑनलाइन बाल यौन शोषण के शिकार हो रहे मासूम-आज लगभग हर घर मे स्मार्ट फोन एवं इंटरनेट तक बच्चों की पहुँच बेहद आसान हो गई है। वहीं दूसरी और बच्चों तक स्मार्ट फोन और इंटरनेट की पहुंच होने से ऑनलाइन बाल यौन शोषण और दुर्व्यवहार (ओसीएसईए) जैसे गंभीर अपराधों का खतरा और भी बढ़ गया हैं।
ऑनलाइन बाल यौन शोषण के शिकार बच्चे-क्राई-चाइल्ड राइट्स एंड यू एवं सीएनएलयू (चाणक्य नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी) पटना की संयुक्त रूप से किए गए एक अध्ययन के मुताबिक 14-18 वर्ष के आयु वर्ग के किशोर एवं किशोरियों ऑनलाइन बाल यौन शोषण और दुर्व्यवहार (ओसीएसईए) के सबसे आसान शिकार होते हैं।
पॉक्सो यानि प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रन फ्रॉम सेक्सुअल ऑफेंस एक्ट,2012 के लागू होने के 10 साल पूरे होने के उपलक्ष्य मे किए गए इस अध्ययन 'पॉक्सो एंड बियॉन्ड: अंडरस्टैंडिंग ऑन ऑनलाइन सेफ्टी थ्रू कोविड' के अध्ययन के मुताबिक मध्यप्रदेश सहित 4 राज्यों (कर्नाटक, पश्चिम बंगाल एवं महाराष्ट्र) में किया गया अध्ययन यह बताता है कि कोविड-19 के कारण हुए लॉकडाउन के दौरान स्कूलों के लंबे समय तक बंद रहने और ऑनलाइन शिक्षा के चलन में आने से इंटरनेट तक आसान पहुंच और सोशल मीडिया के अनियंत्रित उपयोग से माता-पिता की कम या बिना किसी निगरानी वाले बच्चों के लिए ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स पर उपस्थिति तेजी से बढ़ी है,जिससे ऑनलाइन अपराधियों के लिए पीड़ितों की पहचान करना,उनके व्यक्तिगत विवरण तक पहुंच प्राप्त करना और पीड़ितों से जुड़ना आसान हो गया है।
अध्ययन में शामिल मध्यप्रदेश के शिक्षकों में से 78% ने यह माना की उन्होंने बच्चों में कोविड-19 महामारी के बाद ऑनलाइन बाल यौन शोषण और दुर्व्यवहार की संभावना का संकेत देने वाले व्यवहार परिवर्तन देखे हैं। इन बच्चों मे 95% से भी अधिक लड़कियां हैं।
पुलिस के पास जाने के बचते है माता-पिता-चाइल्ड राइट्स एंड यू (क्राई) की क्षेत्रीय निदेशक सोहा मोईत्रा कहती हैं कि “अध्ययन के दौरान 98 प्रतिशत माता-पिता ने कहा की यदि उनके बच्चों के साथ ऑनलाइन बाल यौन शोषण और दुर्व्यवहार होता है तो वह पुलिस स्टेशन जाकर शिकायत दर्ज नहीं करेंगे, जबकि केवल 2% प्रतिशत ने इस विकल्प को अपनाने की बात कही। इसके अलावा किसी भी माता-पिता ने ऑनलाइन बाल यौन शोषण और दुर्व्यवहार से संबंधित किसी भी कानून के बारे में जानकारी न होने की बात कही। इन निष्कर्षों ने माता-पिता के बीच कानूनी और कानून प्रवर्तन संस्थानों के साथ एक बड़ी सूचना की कमी और कम विश्वास का संकेत दिया”।
अध्ययन में 94% शिक्षकों ने बच्चों द्वारा ऑनलाइन प्लेटफार्मों के माध्यम से उनके साथ हुईं संदिग्ध घटनाओं की जानकारी साझा की, इनमे अधिकतम मामले लड़कियों से जुड़े हैं। अध्ययन के निष्कर्षों के अनुसार 94% शिक्षकों ने बताया कि बच्चों को ऑनलाइन प्लेटफार्मों के माध्यम से अजनबियों द्वारा दोस्ती की मांग करने, व्यक्तिगत और पारिवारिक विवरणों के बारे मे जानकारी अर्जित करने और यौन सलाह देने के लिए संपर्क किया गया था। चिंता का विषय यह है की इनमे से 96% मामले 14-18 वर्ष की बच्चियों के थे।
बच्चों पर नहीं माता-पिता की नजर-सुरक्षित इंटरनेट दिवस पर जारी किए गए इस अध्ययन मे शामिल माता-पिता में से 99 प्रतिशत ने यह माना कि वे अपने बच्चों द्वारा देखे जाने वाले ऑनलाइन कंटेट से अंजान थे। उनके बच्चे द्वारा देखे जा रहे वास्तविक कॉन्टेन्ट के विवरण से अनजान है वहीं 53% माता-पिता ने जवाब दिया कि लड़के संगीत सुनने/वीडियो देखने में शामिल होते हैं,48% ऑनलाइन गेम और 57% माता-पिता ने जवाब दिया कि लड़के पढ़ाई से जुड़े कॉन्टेन्ट देखते होंगे। वहीं लड़कियों के मामलों मे यह प्रतिशत 83%, 87% एवं 82% था।
लड़कों एवं लड़कियों के आंकड़ों मे दिख रहे अंतर यह संकेत देता है की माता-पिता लड़कों की तुलना मे लड़कियों के ज्यादा चिंतित है। इसके अलावा 91% ने अपने बच्चों के इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों का उपयोग करने और ऑनलाइन समय बिताने को लेकर कोई आशंका नहीं जताई है। केवल 6% अभिभावकों ने इस पर अपनी चिंता जताई है।
बच्चों की तस्करी में इंटरनेट का उपयोग- क्राई की क्षेत्रीय निदेशक सोहा मोईत्रा ने कहा “इस शोध में पाया गया है कि इंटरनेट का उपयोग भारत में बच्चों की तस्करी के लिए किया जा रहा है। अब तस्करी में इंटरनेट के उपयोग के साथ विशेष रूप से छोटे बच्चों के बीच, जैसा कि इस अध्ययन में संकेत दिया गया है, प्रावधानों का पुनर्मूल्यांकन करने की आवश्यकता हो सकती है।
आईटी अधिनियम और अनैतिक व्यापार रोकथाम अधिनियम, 1956 (आईटीपीए) के तहत प्रावधान विशेष रूप से बच्चों के बारे में बात नहीं करते हैं, लेकिन प्रकृति में सामान्य हैं और इसलिए बच्चों के मामले में भी लागू होते हैं। कई पॉक्सो अपराध तस्करी के लिए या उसके परिणामस्वरूप किए जाते हैं। आईपीसी और पॉक्सो के तहत ओसीएसईए अपराधों की परिभाषाओं में इस तरह के अंतर्संबंधों के साथ स्पष्ट रूप से जुड़ने की आवश्यकता है”।
उन्होंने कहा “बच्चों और किशोरों के बीच सोशल मीडिया प्लेटफार्मों, इंटरनेट और ऑनलाइन संचार की आसान पहुंच के चलते उसकी बढ़ती लोकप्रियता ऑनलाइन बाल यौन शोषण और दुर्व्यवहार की स्थिति को और भी गंभीर स्वरूप दे सकती है। इससे पहले कि यह हमारे सुरक्षा तंत्र के दायरे से बाहर निकल जाए, इससे लड़ने के लिए तत्काल उपायों की मांग किए जाने की आवश्यकता है।“
इस अध्ययन की आवश्यकता पर जोर डालते हुए सोहा मोईत्रा ने कहा कि “शोध का उद्देश्य कानून,नागरिक समाज संगठनों (सीएसओ) और बाल संरक्षण तंत्र से जुड़े अन्य हितधारकों/कर्तव्य-धारकों का ध्यान आकर्षित करना है। साथ ही बाल यौन शोषण एवं दुर्व्यवहार के मामलों को रोकने में माता-पिता और शिक्षकों की भूमिका सुनिश्चित करना है ताकि घर और स्कूल स्तर पर एक सुरक्षातंत्र विकसित किया जा सके।