Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

इस दिवाली झाबुआ की शि‍वगंगा के 'बांस के दीये' 'कनाडा और अमेरिका' में जगमगाएंगे

हमें फॉलो करें इस दिवाली झाबुआ की शि‍वगंगा के 'बांस के दीये' 'कनाडा और अमेरिका' में जगमगाएंगे
webdunia

नवीन रांगियाल

  • पिछड़े हुए समाज में रोशनी की लौ प्रज्‍वलि‍त करती शि‍वगंगा संस्‍था
  • 40 आदिवासी युवाओं की टोली दीपावली के लिए कर रही बांस के दीयों का निर्माण
  • झाबुआ जिले के करीब 20 हज़ार परिवार शि‍वगंगा में विभि‍न्‍न उत्‍पादों के निर्माण से जुड़े हैं

आईआईटी रुड़की से पढ़ाई के बाद अगर किसी को आईटी हब बेंगलौर जैसे शहर में मोटी सैलरी पर जॉब ऑफर हो उसे और क्‍या चाहिए। लेकिन कुछ विरले होते हैं, जो ‘दिल मांगे मोर’ की तर्ज पर चलते हैं।

दरअसल, वे दिल की सुनते हैं और कुछ ऐसा करते हैं, जिसका संबंध कार्पोरेट जॉब और मोटी सैलरी से नहीं, बल्‍कि समाज के एक ऐसे तबके से होता है, जि‍से मुख्‍यधारा से बाहर माना जाता है, लेकिन वे होते बेहद समृद्ध हैं। समूह में काम करने की उनकी क्षमता किसी भी दूसरे समाज से कई गुना ज्‍यादा होती है।

मध्‍यप्रदेश के झाबुआ के आदिवासी समाज के एक ऐसे ही कर्मठ तबके से प्रभावित होकर नि‍ति‍‍न धाकड़ ने उनके साथ रहने और काम करने का फैसला किया। इसके लिए उन्‍होंने बेंगलोर की अपनी सिक्‍स डि‍जिट वाली डाटा एनलिस्‍ट की नौकरी के ऑफर को भी ठुकरा दिया।

आज वे झाबुआ में आदिवासी समाज के सदस्‍यों के साथ मिलकर काम कर रहे हैं।

आइए जानते हैं क्‍या कैसे अपने हुनर से समाज में रौशनी फैला रहा है यह समाज और उनकी संस्‍था और कैसे पढ़े-लिखे आधुनिक युवा पीछे छूट चुके इस समाज की कहानी को आगे बढ़ाने में सहयोग कर रहे हैं।

दरअसल,  झाबुआ जिले में ‘शिवगंगा’ नाम की एक सामाजिक संस्था है जो, पिछले दो दशकों से समग्र ग्राम विकास को लेकर काम कर रही है। नि‍तिन और उनकी टीम इसी संस्‍था के लिए मार्केंटिंग का काम करते हैं।
शि‍वगंगा संस्‍था वैसे तो कई तरह के हस्‍तशि‍ल्‍प का निर्माण करती है, लेकिन अब संस्‍था से जुड़े हुनरमंदों ने बांस के दीये बनाने का काम भी शुरू किया है। उनके हाथों से बनाए गए ये दीये दीपावली पर न सिर्फ देश में बल्‍क‍ि विदेशों में भी जगमगाएंगे। इस अथक और रचनात्‍मक सोच के पीछे दो नाम हैं, एक शंकर सिंह जमरा और राकेश भूरिया।

शंकर सिंह झाबुआ के ही एक छोटे से गांव सिलखोदरी के रहने वाले हैं। वे अद्भुत हुनर के धनी हैं और बचपन से ही शिवगंगा से जुड़े हैं।

संस्‍था में रहते हुए उन्होंने बांस के हस्तशिल्प बनाने का प्रशिक्षण लिया और अब झाबुआ के युवाओं को प्रशिक्षित कर रहे हैं। आलम यह है कि अब उनके साथ करीब 40 आदिवासी युवाओं की टोली इस दीपावली के लिए बांस के दीयों का निर्माण कर रही है। यह काम पिछले 6 महीने से जारी है।

राकेश भूरिया झाबुआ के गांव उमरिया के रहने वाले हैं। वे मेघनगर में स्थित शिवगंगा के सामाजिक उद्यमिता एवं कौशल विकास केंद्र के प्रबंधक भी हैं। वे केंद्र में रह रहे सभी कलाकारों को मैनेज करते हुए देश- विदेश से आए दीयों के ऑर्डर को देशभर के साथ ही सात समुंदर पार पहुंचाने की व्यवस्था करते हैं।

राकेश जी कहते हैं, हम इस काम को सीखेंगे और गांव में सबको सिखाएंगे, और झाबुआ की मजदूरी की मजबूरी को दूर करेंगे

20 हजार परिवार को बनाएंगे हुनरमंद
फि‍लहाल करीब 40 युवा आदिवासी संस्‍था के साथ काम कर अलग अलग तरह के उत्‍पाद तैयार कर रहे हैं। लेकिन संस्‍था का मकसद है झाबुआ जिले में करीब 20 हज़ार परिवारों को इस हुनर के माध्यम से उद्यमी बनाने का सपना पूरा करना। कमाल की बात यह है कि लगातार शि‍वगंगा से लोग जुड़ते जा रहे हैं। यहां तक कि उच्‍च शि‍क्षा हासिल कर संस्‍था के साथ जुड़ने वाले नितिन एक नई उम्‍मीद है।

कनाडा और अमेरिका में दीयों की मांग
शि‍वगंगा के बनाए दीयों की मांग न सिर्फ देश में बल्‍कि विदेशों में भी है। इस दीपावली पर्व पर देश विदेश से इनकी मांग आ रही है। इनमें कनाडा और अमेरिका जैसे देश भी शामिल हैं।

बेंगलोर का जॉब छोड़कर आए नि‍तिन धाकड़ ने वेबदुनिया को बताया कि यहां के समाज को जमीन और जानवर की बहुत समझ है। यह बेहद समृद्ध समाज है। बांस के काम, दीये, और कई तरह के हैंडि‍क्राफ्ट समेत कई तरह के उत्‍पाद बनाने में यह वर्ग सक्षम है। दीपावली के बहुत आकर्षक दीयों की विदेशों में भी मांग है। वे कहते हैं,

मैं इस समाज की समझ और ज्ञान से प्रेरित होकर ही यहां आया। पहले मैंने इनके बारे में जान और समझा। आदिवासी समाज बहुत गुणों से सपन्‍न है। मैं अपनी टीम के साथ इनके हुनर की मार्केटिंग का काम देखता हूं।

नेशनल वाटर मिशन अवार्ड- 2019
शिवगंगा समग्र विकास संस्थान जल के लिए भी काम करती है। इस संस्‍था को भारत सरकार का नेशनल वाटर मिशन अवार्ड 2019 में फोकस्ड अटेंशन टू वल्नरेबल एरियाज इंक्लूडिंग ओवर एक्सप्लॉइटेड केटेगरी में पहला स्थान मि‍ल चुका है।
हलमा क्या है : कैसे बना यह जल आंदोलन, जन-जन का आंदोलन
 

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

राज्यपाल मलिक के निशाने पर मोदी सरकार, कहा- कुत्ते की मौत पर शोक, किसानों की मौत पर कोई ध्यान नहीं