बागली। मध्यप्रदेश को टाइगर स्टेट का दर्जा मिलने में देवास जिले का भी योगदान है। पिछले कुछ वर्षों में वन्य जीव संरक्षण का जो कार्य हुआ है, उसमें जिले के वनों में बाघों का कुनबा बढ़ गया है। 1 साल पहले तक वनों में 6 बाघों का अनुमान लगाया जाता था। लेकिन अब बाघों की संख्या बढकर 8 हो गई है।
जिले में मांसाहारी पशुओं की संख्या बढ़ने का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि बागली उपवन मंडल में वर्ष 2019 में 126 पशु हानि के प्रकरण दर्ज हुए थे। जबकि इस वर्ष 7 माह में ही पशु हानि के 91 मामले दर्ज हो चुके हैं। सबसे बडी बात है कि यहां पर केवल बाघों की संख्या ही नहीं बढ़ी है, तेंदुओं की संख्या भी बढ़ी है।
माना जा रहा है कि वन्य जीवों की अगली गणना में पशुओं की संख्या और बढ़ेगी। दो वर्ष पहले तक जिले में तेंदुओं की संख्या 40 थी, लेकिन अब लगभग 50 से अधिक तेंदुए वनों में विचरण कर रहे हैं, जबकि विगत 1 वर्ष में लगभग 4 से अधिक तेंदुए असमय मौत का शिकार हुए हैं।
हालांकि जिले में खिवनी अभयारण्य भी है कि लेकिन नए वन्य प्राणी खुले जंगलों में विचरण करना अधिक पसंद करते हैं। बागली उपवन मंडल में पशु हानि के बढ़ते प्रकरण इसी और इशारा करते हैं।
पानी के लिए खोदी जाती है झीरी : वैसे तो वन्य प्राणियों के लिए प्रतिवर्ष वनों में झीरी खोदी जाती है, जिसमें अलग-अलग समय में सभी प्रकार के वन्य प्राणी आकर पानी पीते हैं। लेकिन, यदि झीरियों में पानी नहीं होता है तो गर्मियों के दिनों में विशेष रूप से ठेल रखकर उसे टैंकर की सहायता से भरा जाता है। वनों में चरनोई में गए पशुओं की हानि होने पर ट्रैप कैमरों से वन्य प्राणियों पर नजर रखी जाती है। दो वर्ष पहले एक बाघ देवास शहर के नागदा क्षेत्र के वनों के आसपास आबादी क्षेत्र तक पहुंच गया था, जिसे पकड़ने के प्रयास विफल रहे। इसके बाद से ही जिले में बाघों की सुरक्षा व गोपनीयता बनाए रखने के कार्य आरंभ हुए।
2015 में मृत बाघ और शावक मिले थे : बागली उपवन मंडल के लिए नवबंर 2015 बड़ा ही खास था। इससे पहले तक उप-वनमंडल में बाघों की उपस्थिति का अनुमान ही लगाया जाता था। साथ ही ग्रामीणों द्वारा कई स्थानों बाघों को देखने के या उनके पगमार्ग दिखाई देने के दावे किए जाते थे। लेकिन वर्ष 2015 के नवंबर महीने में उदयनगर वन परिक्षेत्र के महुड़ा घाट पर 600 गहरी खाई में बाघ का शव मिला था, जिसके नाखून निकालने के लिए पंजों को काटा गया था।
विभाग ने राष्ट्रीय सम्मान के साथ बाघ का अंतिम संस्कार किया था। बाद में बाघ के नाखून और मूंछ बरामद करके आरोपियों को हिरासत में लिया था। इसी प्रकार इसी महीने में जिनवानी वन परिक्षेत्र के टप्पा वन क्षेत्र में बाघ के तीन शावक दिखाई दिए थे। जिनकी सुरक्षा और बाघ को ट्रैप करने के लिए विभाग ने कमर कसी थी। कई दिनों की कवायद के बाद बाघ क्षेत्र छोड़ चुका था, लेकिन मार्च 2016 में ट्रैप कैमरे में एक बार फिर बाघ दिखाई दिया था।
बाघों की स्थली होने के कारण नाम पड़ा बागली : बागली मारवाड़ के राजपूतों का ठिकाना रहा है। यहां पर 4 दिसंबर 1952 तक चांपावत राठौड़ राजपरिवार के 8 शासकों ने राज किया था। यहां पर हिंदू लुटेरे (गरासिये) लूटपाट करते थे। ठा. गोकुलदासजी ने उन्हें युद्ध में पराजित करके चांपावत राठौड़ राजपरिवार की स्थापना की थी। राजा छत्रसिंहजी ने बताया कि बाघों की प्रचुर उपस्थिति के कारण बागली का नाम बाघली हुआ करता था।
इसी वंश के राजा रघुनाथसिंहजी ने बाघली से नाम परिवर्तित करके बाघानेर कर दिया था, लेकिन वह चलन में नहीं आया इसीलिए दस्तावेजो में फिर से बाघली नाम ही चला बाद में अपभ्रंश होकर यह बागली हो गया।
देवास के वन संरक्षक पीएन मिश्रा ने कहा कि वन्य प्राणियों की गणना प्रत्येक 4 वर्ष में होती है। जिसमें सही आंकडे के लिए कई तरीकों का प्रयोग होता है। जिले में बाघों का कुनबा बढ़ा है। यह खुशी की बात है। हम वन्य प्राणियों को बेहतर माहौल प्रदान करने का प्रयास करते हैं। विभाग के प्रयासों से कटाई में कमी आई है और जंगल अब फिर से सघन होने लगे हैं। इसलिए ही वन्य प्राणियों की संख्या बढ़ रही है।
क्षेत्रीय सांसद नंदकुमार सिंह चौहान ने कहा कि यह प्रसन्नता की बात है कि हमारे मध्यप्रदेश को फिर से टाइगर स्टेट का दर्जा मिला है। देवास जिले के वनों में बाघों सहित अन्य पशुओं की बढ़ती संख्या इस बात को इंगित करती है कि वन्य प्राणियों को अब फिर से प्राकृतिक माहौल मिल रहा है। हमारा प्रयास औंकारेश्वर अभयारण्य के कार्य को तेजी से पूर्ण करवाना है। इससे रोजगार के अवसरों में इजाफा होगा और जिले फॉरेस्ट सफारी और पर्यटन का केन्द्र बनकर उभरेगा।