भोपाल। 5 से 11 सितंबर आत्महत्या रोकथाम जागरूकता सप्ताह के रूप में मनाया जा रहा है। आत्महत्या मृत्यु के उन कारणों में से एक है जिसकी पूर्णतः रोकथाम संभव है। शोध के अनुसार आत्महत्या मानसिक ,सामाजिक और आर्थिक कारणों का मिलजुला परिणाम होती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार आत्महत्या की संवेदनशील रिपोर्टिंग बेहद आवश्यक है।
जीवन का महत्त्व बताने वाले अभियान SAY YES TO LIFE चला रहे मनोचिकित्सक डॉ. सत्यकान्त त्रिवेदी ने मीडिया समूहों को आत्महत्या से जुड़े विषयों पर रिपोर्टिंग को लेकर जागरूक करने के उद्देश्य से जनसम्पर्क आयुक्त डॉ सुदाम पी खाड़े से भेंट कर एक सुझाव पत्र भी सौंपा है।
सुझाव पत्र में विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा सुझाए गए दिशा निर्देशों का उल्लेख है। डॉ. त्रिवेदी ने बताया कि मीडिया को आत्महत्या के मामलों की रिपोर्टिंग में इन बातों का ध्यान रखना चाहिए जैसे कुछ ऐसी कहानियां जो आत्महत्या से जुड़ी हों, उन्हें प्रमुखता में ना रखें और ऐसे मामलों पर फॉलोअप करने से बचे। आत्महत्या के प्रमुख स्थानों और मामलों के दोहराव का उल्लेख करने से भी बचें। ऐसी भाषा का उपयोग करने से बचें जो आत्महत्या को सनसनीखेज बनाती हैं या फिर इसे समस्याओं के समाधान के रूप में प्रस्तुत करती हैं।
आत्महत्या के लिए उपयोग की गई विधि या आत्महत्या के प्रयास में प्रयुक्त विधि का उल्लेख समाचार में ना करें। आत्महत्या के स्थान (सुसाइड प्वाइंट) जैसे शब्दों को महिमामण्डित करने से बचें। आत्महत्या के मामले की रिपोर्टिंग या समाचार प्रकाशन के दौरान फोटोग्राफ, वीडियो फुटेज या सोशल मीडिया लिंक का उपयोग करने से बचें।