मध्यप्रदेश की आर्थिक राजधानी और भाजपा के 'गढ़' इंदौर में महापौर और पार्षद प्रत्याशियों की किस्मत वोटिंग मशीन में कैद हो गई है। लेकिन, पिछली बार की तुलना में कम हुए मतदान के बाद ऐसी बातें खुलकर सामने आ रही हैं जो मध्यप्रदेश में सत्तारूढ़ भाजपा के लिए चिंता का सबब बन सकती हैं। हालांकि भाजपा के नेताओं का दावा है कि महापौर प्रत्याशी लाखों वोटों से जीत हासिल करेगा, लेकिन मतदाताओं का मूड कुछ और कहानी बयां कर रहा है।
विधानसभावार वोट प्रतिशत का आकलन करें तो इसमें कोई संदेह नहीं कि इंदौर में इस बार चौंकाने वाले परिणाम मिल सकते हैं। इससे एक बात और तय है कि परिणाम चाहे कुछ भी हो लेकिन हार-जीत का अंतर काफी कम होगा। इस बार 60.88 फीसदी वोटिंग हुई है, जो पिछली बार के महापौर चुनाव के 62.35 फीसदी की तुलना में कम है। इस बार शहर के 18.35 लाख मतदाताओं में से केवल 11.17 लाख मतदाताओं ने ही वोट डाले। इनमें से 1 लाख के लगभग ऐसे मतदाता थे, जो मतदान स्थल तक तो गए, लेकिन नाम नहीं मिलने के कारण वोट नहीं डाल पाए। हालांकि 2018 के विधानसभा चुनावों की तुलना में सभी क्षेत्रों में वोट प्रतिशत कम रहा है।
भाजपा के लिए चिंता की बात इसलिए भी है क्योंकि विधानसभा क्षेत्र क्रमांक 1 में सर्वाधिक 63.88 प्रतिशत वोटिंग हुई है, यह इलाका कांग्रेस के महापौर प्रत्याशी संजय शुक्ला का है, जो यहां से विधायक भी हैं। हालांकि विधानसभा चुनाव (68.63 प्रतिशत) की तुलना में यह कम है। राऊ विधानसभा में 61.36 फीसदी वोटिंग हुई है। इस क्षेत्र से भी कांग्रेस के जीतू पटवारी विधायक हैं। ऐसे में माना जा रहा है कि इस क्षेत्र से भी कांग्रेस बढ़त बना सकती है।
विधानसभा और पिछले नगर निगम चुनाव में बड़ी बढ़त दिलाने वाले 2 नंबर विधानसभा क्षेत्र में भी इस बार वोटिंग कम रही है। यहां 58 फीसदी लोगों ने मतदान किया है। यह वही इलाका है जहां पिछले विधानसभा चुनाव में रमेश मेंदोला मध्यप्रदेश में सर्वाधिक अंतर (करीब 71 हजार) से चुनाव जीता था। 2018 के विधानसभा चुनाव में यहां 64.21 फीसदी मतदान हुआ था। ऐसे में यह तय है कि यहां दोनों पार्टियों के बीच हार-जीत का अंतर तुलनात्मक रूप से कम होगा।
विधायक आकाश विजयवर्गीय के इलाके क्षेत्र क्रमांक में भी इस बार कम मतदान (61.65%) हुआ है। चूंकि इस इलाके में मुस्लिम मतदाताओं की संख्या भी काफी है, इसलिए माना जा रहा है यहां भी भाजपा को नुकसान उठाना पड़ सकता है। आकाश भी यहां बहुत कम अंतर (7000) से चुनाव जीते थे। उस समय कहा गया था कि बड़ी संख्या में मुस्लिमों ने मतदान नहीं किया था।
भाजपा के लिए 'अयोध्या' कहे जाने वाले विधानसभा क्षेत्र क्रमांक 4 से जरूर राहत की खबर है, जहां 63.79 फीसदी वोटिंग हुई है। यहां से पूर्व महापौर मालिनी गौड़ विधायक हैं। इस क्षेत्र से भाजपा 1 नंबर से होने वाले संभावित नुकसान की भरपाई कर सकती है। खास बात यह है कि भाजपा के महापौर प्रत्याशी पुष्यमित्र भार्गव इसी क्षेत्र में निवास करते हैं। ऐसे में उन्हें इस क्षेत्र से फायदा मिलना तय है।
विधानसभा क्षेत्र क्रमांक 5 में वर्तमान विधायक महेन्द्र हार्डिया काफी कम अंतर (1133 वोट) से चुनाव जीते थे। चूंकि इस क्षेत्र में मुस्लिम मतदाताओं की संख्या भी काफी है, ऐसे में कांग्रेस प्रत्याशी संजय शुक्ला को यहां बढ़त मिल जाए तो कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए। मुस्लिम इलाकों के मतदान केन्द्रों पर लंबी कतारें भी देखने में आई थीं।
संजय शुक्ला के पक्ष में एक बात यह है कि उनके नाम की घोषणा काफी पहले हो गई थी, जबकि पुष्यमित्र भार्गव को बहुत कम समय मिला। संजय शुक्ला ने जहां प्रत्यक्ष रूप से मतदाताओं से मिले, वहीं भार्गव कम वक्त होने के कारण ऐसा नहीं कर पाए। ज्यादातर समय वे वाहन से चुनाव प्रचार करते नजर आए।
ऐसा भी कहा जा रहा है कि इस चुनाव में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने भी ज्यादा रुचि नहीं दिखाई। डॉ. निशांत खरे को महापौर उम्मीदवार नहीं बनाए जाने से संघ का एक बड़ा वर्ग नाराज था। इसलिए संघ को जिस तरह चुनाव में सक्रिय होना था, वह सक्रियता कहीं भी दिखाई नहीं दी। भाजपा का बूथ मैनेजमेंट भी इस बार मतदाताओं को मतदान केंद्र पर लाने में विफल दिखाई दिया। हालांकि अभी कुछ भी कहना जल्दबाजी होगी, लेकिन यह तय है कि इस चुनाव कांग्रेस का वोट प्रतिशत जरूर बढ़ेगा।