इंदौर। शहर के सेंट रैफियल्स हायर सेकंडरी स्कूल की छात्रा वृंदा मंडोवरा ने न सिर्फ सबसे प्रतिष्ठित यूरोपीय मॉडल संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन 'द यूरोपियन इंटरनेशनल मॉडल यूनाइटेड नेशंस' (TEIMUN) में भाग लिया, बल्कि वे इस सम्मेलन की जज भी बनीं।
इस सम्मेलन का आयोजन 12 से 15 जुलाई तक किया गया था। यूं तो यह सम्मेलन नीदरलैंड के हेग में आयोजित होने वाला था, लेकिन कोरोना महामारी के चलते इसे एक ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर आयोजित किया गया।
एमयूएन की स्थापना के 34 साल के लंबे इतिहास में यह पहला अवसर था, जब 16 साल की वृंदा सबसे कम उम्र की जज चुनी गईं। इस आयोजन के लिए वृंदा भारत से चुनी गईं एकमात्र प्रतिभागी थीं। '1979 की ईरानी क्रांति का वैश्विक प्रभाव' विषय पर उनके शोध पत्र (सह-लेखक) को भी मान्यता प्रदान की गई। यह संगठन सीधे तौर पर नाटो और डच सरकार से संबद्ध है।
वृंदा ने वेबदुनिया से बातचीत में बताया कि इस आयोजन का मुख्य उद्देश्य ऐसे युवाओं को आगे लाना है, जो अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर चर्चा करें। उन्होंने बताया कि उनकी परिषद में ईरानी बंधक संकट से लेकर ईरान-इराक युद्ध से जुड़े मुद्दों पर चर्चा हुई। उन्होंने बताया कि विषय से जुड़े कई मुद्दों पर चर्चा हुई। जैसे- संधियों का किस तरह उल्लंघन हुआ, क्या युद्ध को टालने के लिए नई संधि की जा सकती थी? संयुक्त राष्ट्र ऐसा क्या कर सकता था जो उसने नहीं किया, जिससे दोनों देशों के बीच युद्ध टाला जा सकता था। इससे जुड़े और भी कई मुद्दों पर चर्चा हुई।
सिलेक्शन प्रोसेस के बारे में वृंदा ने बताया कि इसके लिए उन्होंने 7-8 महीने की तैयारी की तथा 3-4 स्तर पर चयन प्रक्रिया से गुजरना पड़ा। उन्होंने बताया कि इस पूरे आयोजन में दुनिया भर से 200 युवाओं ने भाग लिया, जबकि उनकी परिषद में 17 प्रतिभागी शामिल थे। उन्होंने इस आयोजन के लिए शोध पत्र भी लिखा था। इस विषय पर वृंदा की समझ और विशेषज्ञता की काफी सराहना भी हुई।