MP BJP President Hemant Khandelwal : बैतूल से भाजपा विधायक हेमंत खंडेलवाल को मध्यप्रदेश भाजपा का अध्यक्ष नियुक्त किया गया है। वे 2006 के बाद राज्य में भाजपा की कमान संभालने वाले पहले विधायक हैं। मुख्यमंत्री मोहन यादव और आरएसएस की पसंद हेमंत प्रदेश में पार्टी के 28वें अध्यक्ष हैं। हालांकि आने वाले दिनों में उन्हें कड़ी चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है।
60 वर्षीय खंडेलवाल को प्रदेश अध्यक्ष की सीट तक पहुंचने में ज्यादा मुश्किलों का सामना नहीं करना पड़ा। वे इस पद के लिए हुए चुनाव में नामांकन दाखिल करने वाले एकमात्र प्रत्याशी थे। अत: चुनाव अधिकारी धर्मेंद्र प्रधान ने उनकी जीत का एलान कर दिया।
कैसे हुई सक्रिय राजनीति में एंट्री : हेमंत के पिता विजय खंडेलवाल भाजपा के कद्दावर नेता थे। उन्होंने 4 बार बैतूल से लोकसभा चुनाव जीता। 3 सितंबर 1964 को उत्तर प्रदेश के मथुरा में जन्में हेमंत खंडेलवाल की राजनीति में एंट्री 2007 में पिता विजय खंडेलवाल के निधन के बाद हुई। 2008 में पार्टी ने उन्हें बैतूल लोकसभा सीट पर हुए उपचुनाव में पिता की सीट से ही उम्मीदवार बनाया। इस चुनाव में दिग्गज कांग्रेस नेता सुखदेव पांसे को हराकर पहली बार संसद पहुंचे।
2008 में परिसीमन के बाद बैतूल लोकसभा सीट अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित हो गई। बहरहाल 2013 में कार्यकाल समाप्त होने के बाद पार्टी ने उन्हें विधानसभा लड़ाया। इस तरह वे पहली बार विधायक निर्वाचित हुए।
2018 में उन्हें बैतूल विधानसभा सीट पर हार का सामना करना पड़ा। 2020 में उन्होंने ज्योतिरादित्य सिंधिया को भाजपा में लाने में बड़ी भूमिका निभाई। इसी वजह से पार्टी ने राज्य में एक बार फिर सत्ता का स्वाद चखा। 2023 के विधानसभा चुनाव में पार्टी ने उन्हें फिर बैतूल से चुनाव मैदान में उतारा और वे पार्टी की उम्मीदों पर खरे उतरे।
संगठन में भी दिखाया दम : हेमंत खंडेलवाल 2010 में बैतूल जिला भाजपा अध्यक्ष बने। 3 साल उन्होंने यह दायित्य संभाला। 2014 में प्रदेश भाजपा के कोषाध्यक्ष चुने गए। 4 साल तक उन्होंने इस पद पर कार्य किया। वर्ष 2024 के लोकसभा चुनाव में उन्हें प्रदेश चुनाव समिति का संयोजक बनाया गया। पार्टी ने राज्य की सभी 29 सीटें जीतकर इतिहास रच दिया। इस तरह खंडेलवाल ने साबित किया कि वे चुनावी राजनीति में भी माहिर है और उन्हें संगठन भी चलाना आता है।
क्या है चुनौतियां : हेमंत खंडेलवाल के सामने सबसे बड़ी चुनौती सत्ता और संगठन के बीच समन्वय बनाने की रहेगी। नए और पुराने कार्यकर्ताओं के बीच मतभेद को दूर करना भी उनके लिए आसान नहीं होगा। निगम-मंडलों में नियुक्ति के दौरान पार्टी के सक्रिय कार्यकर्ताओं को उचित सम्मान देना भी उनके लिए चुनौती पूर्ण रहेगा। अगर इसमें जमीनी कार्यकर्ताओं की अनदेखी हुई तो उन्हें काफी विरोध का सामना करना पड़ सकता है।
edited by : Nrapendra Gupta